धर्म। जब भगवान का प्राकट्य अयोध्या जी में हुआ तो सूर्य नारायण भगवान बड़े प्रसन्न हुए कि मेरे वंश में भगवान का प्राकट्य हो गया, और आनंद में भर कर एक क्षण के लिए रुक गए। सूर्य की गति कभी नहीं रुकती परन्तु एक क्षण को रुकी गई, जब देखा राजभवन में अति कोमल वाणी से वेद ध्वनि हो रही है।
अबीर-गुलाल उड़ रहा है, अयोध्या में उत्सव को देखकर सूर्य भगवान अपना रथ हाँकना ही भूल गए। मास दिवस कर दिवस भा मरम ना जनाइ कोई, रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन विधि होई। अर्थात महीने भर का दिन हो गया, इस रहस्य को कोई नहीं जानता, सूर्य अपने रथ सहित वही रुक गए फिर रात किस तरह होती।
सब जगह आनंद ही आनंद छाया था परन्तु चंद्रमा रो रहे थे। भगवान ने पूंछा – चन्द्रमा ! सब ओर आनंद छाया है, क्या मेरे प्राकट्य पर तुम्हे प्रसन्नता नहीं हुई..? चन्द्रमा बोला – प्रभु ! सब तो आपके दर्शन कर रहे है इसलिए प्रसन्न है परन्तु मै कैसे दर्शन करूँ ? प्रभु बोले- क्यों, क्या बात है ? चंद्रमा बोले – आज तो सूर्य नारायण हटने का नाम ही नहीं ले रहे और जब तक वे हटेगे नहीं मै कैसे आ सकता हूँ, प्रभु बोले थोडा इंतजार कर ! अभी सूर्य की बारी है उनके ही वंश में जनम लिया है न इसलिए आनंद समाता नहीं है उनका।
अगली बार चन्द्र वंश में आऊंगा, अभी दिन के बारह बजे आया फिर रात के बारह बजे आऊंगा तब जीभर के दर्शन करना, तब तक आप इंतजार करो। चंद्र बोले – प्रभु ! द्वापर के लिए बहुत समय है. तब तक मेरा क्या होगा.में तो इंतजार करते-करते मर ही जाऊँगा। भगवान बोले – कोई बात नहीं में अपने नाम के साथ तुम्हारा नाम जोड़ लेता हूँ। रामचंद्र, सभी मुझे रामचंद्र कहेगे। सूर्य वंश में जन्म लिया है, फिर भी कोई मुझे रामसिह तो नहीं कहेगा और जिसके नाम के आगे मै हूँ, वह कैसे मर सकता है, वह तो अमर हो जाता है, इसलिए तुम भी अब कैसे मरोगे, इतना सुनते ही चंद्रमा बड़ा प्रसन्न हुआ।
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