पटना: पंचायती राज विभाग ने बैठक या अन्य कार्यों में महिला जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति अनिवार्य कर दी है। उनकी जगह पर अब पति, पुत्र या रिश्तेदार के काम के मामलों को विभाग ने सख्त रूख अपनाने के संकेत दे दिए हैं। पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने इसको लेकर पदाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश जारी कर दिया है। निर्देश के मुताबिक कोई भी महिला जनप्रतिनिधि अब बैठक तथा अन्य तरह के काम के लिए किसी अन्य व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि अधिकृत नहीं करेंगी ।
पंचायती राज मंत्री ने जारी किया निर्देश
पंचायती राज विभाग मंत्री सम्राट चौधरी मंत्री ने त्रिस्तरीय पंचायत संस्थाओं एवं ग्राम कचहरी के निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों को लेकर एक निर्देश जारी किया है। मंत्री ने निर्देश दिया है कि महिला जनप्रतिनिधि, पंचायतों से जुड़ी बैठक में भाग लेने के लिए अपने स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को मनोनीत नहीं करेंगी| उन्होंने पदाधिकारियों को अपने आदेश कर कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया है। मंत्री का कहना है कि इसको लेकर पिछले कार्यकाल में लगातार शिकायतें मिल रही थी और इसलिए अब कार्यकाल शुरू होने के साथ ही ये निर्देश जारी कर दिया गया है ।
समय-समय पर मिलती रहीं हैं शिकायतें
बिहार पंचायत चुनाव में महिलाओं को मिले 50 फीसदी आरक्षण ने राज्य में महिला पंचायत जनप्रतिनिधियों को बढ़ी संख्या में स्थानीय राजनीति में ला खड़ा किया है। आरक्षण ने महिलाओं के सिर पर मुखिया, सरपंच और समिति का ताज तो सजा। लेकिन, पंचायत से जुड़े फैसलों और काम में उनकी असल भागीदारी अब भी नहीं हो पाई है। वजह यह है कि महिला जनप्रतिनिधियों की जगह अब भी गांव की सरकार को उनके रिश्तेदार उनके प्रतिनिधि के नाम पर काम कर रहे हैं।
कुछेक महिला जनप्रतिनिधियों को छोड़कर अधिकांश महिला जनप्रतिनिधियों की असल हकीकत यही है । इसको लेकर लगातार शिकायतें भी सामने आती रहती है। इसे कहने को तो महिलाएं चुनकर असली जनप्रतिनिधि होती हैं, लेकिन पंचायत में उनकी भागीदारी धरातल पर देखने को नही मिली।