विधि पूर्वक करें अविवेकहारिणी मां सरस्वती पूजा

धर्म

देवी सरस्वती की पूजा-उपासना के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी (बसंत पंचमी) तिथि निर्धारित की गयी है । जानें, विद्या और ज्ञान प्राप्ति के लिए इस दिन किस प्रकार और किन वस्तुओं से देवी सरस्वती की पूजा करनी चाहिए ?

‘देवी गंगा और सरस्वती दोनों ही पवित्र करने वाली हैं । एक पापहारिणी है तो दूसरी अविवेकहारिणी है ।’ (गोस्वामी तुलसीदासजी)
देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं और शब्द-ब्रह्म के रूप में इनकी उपासना की जाती है । विद्या को ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धन माना गया है । देवी सरस्वती की पूजा-उपासना के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी (बसंत पंचमी) तिथि निर्धारित की गयी है । इस दिन इनका ‘आविर्भाव दिवस’ माना जाता है ।

ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया । वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से प्रकट हुईं थीं ।

उस समय श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ इसीलिए इनके नाम वाणी से सम्बन्धित अधिक हैं जैसे—वाक्, वाणी, भाषा, वाचा, वागीश्वरी, वाग्देवी, वाग्देवता आदि । सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने गोलोक में सरस्वतीजी की पूजा की जिनके प्रसाद से मूर्ख भी पण्डित बन जाता है।

देवी सरस्वती की पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री!!!!!!!!

देवी सरस्वती की उत्पत्ति सत्त्वगुण से हुई है इसलिए इनकी पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्रियों मे अधिकांश श्वेत वर्ण की होती हैं । जैसे—
• दूध
• दही
• मक्खन
• धान का लावा (खील)
• तिल का लड्डू
• गन्ना या गन्ने का रस
• गुड़
• शहद
• सफेद चन्दन
• श्वेत पुष्प
• श्वेत वस्त्र
• चांदी के आभूषण
• खोये की मिठाई
• अदरक
• मूली
• खांड-बूरा
• मिश्री
• अक्षत
• धान का चिउड़ा
• सफेद मोदक
• घी
• सैंधा नमक से तैयार किये गए व्यंजन
• पके केले
• नारियल का जल
• बेल
• जौ या गेंहू के आटे से घी में बने पदार्थ (हलुआ)
• मीठे चावल
• श्रीफल
• बेर
• ऋतु के फल व पुष्प

देवी सरस्वती की पूजाविधि!!!!!!

बसंत पंचमी को प्रात:काल स्नान आदि के बाद शुद्ध व श्वेत वस्त्र धारण करें । एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर देवी सरस्वती की प्रतिमा या चित्रपट स्थापित करें ।
पूजन की सभी सामग्री अपने पास रखें ।

शुद्ध घी का दीपक जला कर हाथ में जल लेकर सरस्वती पूजन का संकल्प करें—‘यथोपलब्ध पूजन सामग्रीभि: भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये ।’ संकल्प पढ़कर जल छोड़ दें । इसके बाद हाथ में श्वेत पुष्प लेकर देवी सरस्वती का ध्यान करें—
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्दैवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ।।

ध्यान के बाद हाथ का पुष्प चित्र पर चढ़ा दें ।
देवी सरस्वती का पंचोपचार—सफेद चंदन, अक्षत, श्वेत पुष्प या पुष्पमाला, नैवेद्य (सफेद मिठाई व केले, बेर आदि) व नीराजन (आरती) करें—
जय जय जय हे वीणापाणि,
शिव कल्याणी मातु भवानी ।
सप्त सुरों की तू महारानी,
वेदों ने भी महिमा जानी ।।
जय जय ……..
आज सुरों के दीप जला दे,
रोम-रोम संगीत जगा दे ।
बोलत घुंघरु बाजे पायलिया,
झूम रही है सगरी नगरिया ।।
जय जय ………

दण्डवत प्रणाम व क्षमा-प्रार्थना कर देवी की कृपा की याचना करें । देवी सरस्वती की कृपा से ही मनुष्य ज्ञानी-विज्ञानी व मेधावी हो जाता है । कालिदास ने देवी सरस्वती की उपासना काली रूप में करके कवियों के गुरु के रूप में ख्याति पाई ।

पुस्तक व कलम में भी देवी सरस्वती का निवास माना जाता है । अत: एक नये पेन व कॉपी की पूजा कर विद्यार्थियों को उनका आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए ।

देवी सरस्वती के कई मन्त्र हैं—

  1. भगवान नारायण द्वारा वाल्मीकि ऋषि को दिया गया मन्त्र!!!!!!

यह आठ अक्षरों का मन्त्र है । इसके जप से वाल्मीकि ऋषि में कवित्व शक्ति का उदय हुआ। मन्त्र इस प्रकार है—
‘श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा ।’
इसका चार लाख जप करने से मन्त्रसिद्धि होती है और मनुष्य में गुरु बृहस्पति के समान योग्यताआ जाती है ।

  1. दशाक्षर मन्त्र
    ‘ऐं वाग्वादिनी वद वद स्वाहा ।’
  2. ब्रह्मवैवर्तपुराण में लिखित सरस्वती मन्त्र
    ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।’

ये सभी मन्त्र समस्त विद्या व सिद्धियों के देने वाले माने जाते हैं । महर्षि वाल्मीकि, वसिष्ठ, विश्वामित्र व शौनक आदि ऋषि इन्हीं मन्त्रों की साधना से ब्रह्मर्षि हुए ।

देवी सरस्वती की साधना करने के नियम
सरस्वतीजी के साधक को वेद, पुराण, रामायण, गीता आदि ग्रन्थों का आदर करना चाहिए और इन ग्रन्थों को देवी सरस्वती की वांग्मयी मूर्ति मानकर उन्हें पवित्र स्थान पर रखना चाहिए । अनादर से इधर-उधर फेंकना नहीं चाहिए ।

सद् ग्रन्थों को झूठे हाथों से व अपवित्र अवस्था में स्पर्श नहीं करना चाहिए ।

सरस्वतीजी की इस वार्षिक पूजा (बसन्त पंचमी) के अलावा जब बच्चा पढ़ना शुरु करे, तब भी उनकी पूजा का विधान है, वैसे विद्यार्थियों को तो नित्य ही उनके 21 नामों का पाठ करना चाहिए ।

मां सरस्वती के विद्या-प्रदायक 12 नाम!!!!!!!

ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार सृष्टि काल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था । वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से प्रकट हुई थीं । भगवान श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम ‘सरस्वती’ हुआ । ये ही विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं । पुस्तक और कलम में मां सरस्वती का निवास-स्थान माना जाता है, इसलिए इनको कभी भी जूठे हाथों से नहीं छूना चाहिए और अपवित्र जगह पर नहीं रखना चाहिए ।

‘श्रीदेवीभागवत’ के अनुसार आद्याशक्ति ने अपने-आपको तीन भागों में विभक्त किया, जो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से जानी जाती हैं ।

मां सरस्वती की महिमा अपार है । इन्हें वेद में ‘वाग्देवी’ कहा गया है । वाग्देवी को प्रसन्न कर लेने पर मनुष्य संसार के सारे सुख भोगता है क्योंकि विद्या को सभी धनों में सर्वश्रेष्ठ धन कहा गया है । विद्यार्थियों को विशेष रूप से मां सरस्वती का नाम-जप करना चाहिए । मां सरस्वती की कृपा से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेधावी, महर्षि और ब्रह्मर्षि हो जाता है ।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने गंगा और सरस्वती को एक समान माना है । गंगा पापहारिणी है तो मां सरस्वती अविवेकहारिणी हैं ।

मां सरस्वती का द्वादश (12) नाम स्तोत्र
प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती ।
तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी ।।
पंचमं जगती ख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा ।
सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी ।।
नवमं बुधमाता च दशमं वरदायिनी ।
एकादशं चन्द्रकान्तिर्द्वादशं भुवनेश्वरी ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: ।
जिह्वाग्रै वसते नित्यं ब्रह्मरूपा सरस्वती ।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विश्वरूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ।।

मां सरस्वती के द्वादश (12) नाम हिन्दी में

  1. भारती
  2. सरस्वती
  3. शारदा
  4. हंसवाहिनी
  5. ख्याता
  6. वागीश्वरी
  7. कुमुदी
  8. ब्रह्मचारिणी
  9. बुधमाता
  10. वरदायिनी
  11. चन्द्रकान्ति
  12. भुवनेश्वरी

मां सरस्वती के इन चमत्कारी सिद्ध 12 नामों के नित्य तीन बार पाठ करने से मनुष्य की जिह्वा के अग्र भाग पर सरस्वती विराजमान हो जाती है अर्थात् जो भी बात वह कहता है वह पूरी हो जाती है । महर्षि वाल्मीकि, व्यास, वशिष्ठ, विश्वामित्र और शौनक आदि ऋषि सरस्वतीजी की साधना से ही सिद्ध हुए