चुनाव डेस्क। यूपी के चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की भूमिका बहुत सीमित है। हालांकि पार्टी यूपी की चार सीटों पर प्रत्याशी उतार रही है। लेकिन बाकी क्षेत्र में समाजवादी पार्टी गठबंधन के साथ खड़ी है। सीपीएम पोलित ब्यूरो की सदस्य पूर्व सांसद सुभाषिनी अली सहगल का कहना है कि किसान आंदोलन से भाजपा की सांप्रदायिकता काफी कुछ थमी है। चुनाव को लेकर पार्टी का नजरिया आंकलन को लेकर सुभाषिनी ने पार्टी का नजरिया beforeprint.in के सामने कुछ इस तरह प्रस्तुत किया।
सुभाषिनी कहती हैं कि ‘दरअसल विकास तो भाजपा के एजेंडे में कभी नहीं रहा। दो तिहाई बहुमत से यूपी में सरकार बनने और केंद्र का पूरा सपोर्ट होने के बाद भी क्या विकास किया। सांप्रदायिकता के आधार पर ध्रुवीकरण के बूते सत्ता पर काबिज मोदी-योगी जनता के किसी भी सवाल पर बात नहीं करते। चुप रहते हैं। मीडिया का पूरा फोकस भाजपा पर होने के कारण बेमतलब के मुद्दे टीवी और अखबारों पर छाए रहते हैं।’ चार सीटों पर लड़ रहे हैं पर भाजपा को लाभ नहीं अखिलेश व जयंत चौधरी उर्जावान हैं। बदलाव संभव किसान आंदोलन ने सांप्रदायिकता धार प्रभावित की पिछड़ी जातियों का सपा की तरफ मुड़ना शुभ संकेत महंगाई बेरोजगारी जैसे मुद्दे चुनाव पर प्रभाव डालेंगे। चुनाव आयोग मोदी-योगी के प्रभाव में काम कर रहा है।
उनका कहना है कि ‘आप खुद देखिए। उप चुनाव के नतीजे भाजपा के खिलाफ गए। जिला पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। मीडिया भी यही कह रहा था। जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में तो जैसे होता है कि जिसकी सरकार उसी का जिला पंचायत अध्यक्ष होता है। पर कहिए कि भाजपा के पतन की शुरुआत हो चुकी है। तीन मंत्री और 11 विधायकों का दल बदलकर सपा में आना साफ संकेत देता है कि गैरयादव पिछड़ी जातियां भी भाजपा से नाराज होकर यादव वोट बैंक वाली पार्टी में आ रहा है।
यह परिवर्तन का संकेत है। जाति आधारित राजनीति करने वाले नेता हवा का रुख पहचान लेते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य एंड कंपनी 2017 में भाजपा के साथ इसलिए थी कि तब उनकी जातियां भाजपा की ओर रुख कर रही थी। सही है कि इन्हें तो सम्मान तक नहीं मिला। ठगे गए। तभी सपा की तरफ आ गए। पिछड़ी जातियों का एक मंच आने की शुरुआत यूपी में बड़ी राजनीतिक घटना है।’
माकपा नेता कहती हैं कि ‘विपक्ष के बिखराव के बाद भी जिला पंचायत मे विपक्ष का प्रदर्शन जगजाहिर है। शुरुआत हो चुकी है। यादव और गैरयादव पिछड़ी जातियो के सपा के साथ जुड़ना शुभ संकेत हैं। मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूं पर सपा और रालोद गठबंधन तेजी से बढ़त बना रहा है। कह सकती हूं कि नतीजे चौंकाने वाले होंगे। देखो भई माकपा चार सीटों पर प्रत्याशी लड़ा रही है। 1-चकिया 2-सलेमपुर 3-कुसवां 4-मड़ियांव। पर बाकी क्षेत्रों में हम उसी के साथ हैं जो भाजपा को हरा रहा हो।
हम जानते हैं कि हमारे लड़ने से भाजपा को कोई लाभ नहीं होगा। ऐसे में स्पष्ट है कि सपा और रालोद का गठबंधन तेजी से बढ़ रहा है। माकपा इस गठबंधन के पूरी तरह से साथ है। जहां यह गठबंधन चाहेगा वहां हमारी पार्टी इनके साथ खड़ी दिखेगी।’
उनका कहना है कि ‘किसान आंदोलन बहुत लंबा चला। मैं तो बराबर उनके मंच पर जाती रही हूं। कृषि कानूनों की वापसी बहुत बड़ी जीत है किसानों की। इसने भाजपा की सांप्रदायिकता की धार को भी प्रभावित किया। सरकार ने किसान आंदोलन के आगे घुटने टेक दिए। पर न्यूनतम समर्थन मूल्य फसल लागत जैसे मुद्दे अभी भी हल होना बाकी है। किसानो की भाजपा सरकार से नाराजगी बरकरार है।’
वह कहती हैं कि ‘महंगाई बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। पर मीडिया जनता के बुनियादी मुद्दों को नहीं उठाती। क्राइम अगेंस्ट वूमन पर कोई बात ही नहीं करता। आरक्षण किधर जा रहा है। किससे छुपा है। रही चुनाव आयोग की भूमिका की बात तो साफ है कि आयोग सरकार के प्रभाव में है। मोदी योगी शाह की ताबड़तोड़ सभाओं के बाद अधिसूचना जारी करना साफ सबूत है कि आयोग मोदी-योगी के प्रभाव में काम कर रहा है।