-10 साल बाद ऑडिट में हुआ खुलासा, हर छह माह में होता रहा सेटिंग से ऑडिट
-खेल में शामिल मास्टर माइंड अधिकारी का स्थानांतरण
-मामला खुलते ही अधिकारियों ने एजेंटों को दिया नोटिस, 43 अभिकर्ताओं के कमीशन से चालू हुई वसूली
कानपुर/अखिलेश मिश्रा। देश की सबसे बडी बीमा कम्पनी एलआईसी जो कि अपने स्लोगन ‘जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी’ आम नागरिकों को उनके साथ होने का विश्वास दिलाती है। जैसी कम्पनी में उच्च पदों पर बैठे अधिकारी उसकी विश्वसीनयता को अपनी कार्यशैली से खोखला करने में जुटे है, जिस कारण बीमा कम्पनी भी सवालों के घेरे में आ गयी है।
ऐसा ही एक मामला शहर की लाल बंगला शाखा से निकल कर आया है। जहां पर आठ लाख की राशि का शाखा के अधिकारी और कर्मचारियों ने खेल कर दिया। हालांकि ब्रांच का हर छह माह में ऑडिट होता रहता है। लेकिन सक्षम अधिकारियों ने अपनी पहुंच के बल पर ऑडिट टीम को भी मैनेज रखा, जिस कारण यहां मामला पूरे दस बाद ऑडिट टीम ने ही खोला।
शाखा में हुए 8 लाख का खेल खुलते ही खलबली मच गयी। आनन-फानन में खेल के समय मौजूद शाखा प्रबंधक को मालरोड भेज दिया गया। इतना ही नहीं प्रकरण से जुडे अन्य अधिकारियों की नौकरी सेफ करने के लिए पूरा मामला ब्रांच से जुडे 43 अभिकर्ताओं पर थोप दिया गया। पीडित अभिकर्ताओं ने सम्पूर्ण प्रकरण की जानकारी निगम के सभी बडों अफसरों को लिखित रूप से दी। लेेकिन कोई भी एक्शन नहीं हुआ बल्कि एजेंटों को नोटिस देकर उनके कमीशन से कटौती का प्रावधान शुरू हो गया।
परेशान अभिकर्ताओं ने न्यूज चैनल के कार्यालय पहुंचकर लिखित रूप से जानकारी देते हुए देश की सबसे बडी बीमा कम्पनी की तानाशाही कार्यवाही से अगवत कराया। पिछले कई वर्षों से एलआईसी की प्रगति के लिए कदमताल करने वाले वरिष्ठ अभिकर्ता सुशील कुमार शर्मा, जितेन्द्र कुमार विश्वकर्मा, अरविंद पांडेय, आरए यादव, अमर सिंह, सहित दो दर्जन से अधिक लोगों ने एकजुट होकर बताया कि सारा प्रकरण 2010-2011 के बीच का है।
उस समय शाखा प्रबंधक सुनील श्रीवास्तव उसके बाद मनोज श्रीवास्तव थे। दो ही अधिकारी काफी पावर फुल थे। शाखा का लक्ष्य पूरा करने के लिए अभिकर्ताओं पर लगातार दवाब बनाते थे। इतना ही नहीं टारगेट पूरा न होने पर एजेंसी समाप्त करने का दवाब बनाते थे। उपरोक्त राशि का सारा खेल इन्ही दो अधिकारियों ने किया।
सीनियर अभिकर्ता सुशील कुमार शर्मा ने खुलासा करते हुए कहा कि बीमा धारकों का लोन, लैप्स पॉलिसी, या फिर कुछ ऐसी पॉलिसियां जो कि चार साल में एक निश्चित राशि नियमानुसार बीमा धारक को मिलती थी। उनकी सूची बनाकर सारा खेल करते थे। जिन बीमा धारकों को हर चाल साल में राशि जानी होती उनका पैसा नयी पॉलिसी में बदलकर सारा खेल कर देते।
बीमा धारक को कहीं लोन के नाम पर या फिर कोई उसकी बंद पडी पॉलिसी दोबारा चलाने के नाम पर उसे समझाकर अभिकर्ताओं के माध्यम से राशि मिलने का कागज लिखा लेते और बीमा वाली राशि नयी पॉलिसी में बदल देते। हालांकि इस तरह की नयी पॉलिसी की आठ लाख की राशि घुमा दी गयी। अभिकर्ताओं की मानें तो बीमा धारक भी संतुष्ट रहा और उसने भी किसी भी बीमा के संदर्भ में राशि न मिलने की कोई आज तक शिकायत दर्ज नहीं की।
शाखा की ओपनिंग के समय से जुडे सीनियर अभिकर्ता जितेन्द्र विश्वकर्मा की माने तो सभी अभिकर्ताओं का रोल सिर्फ बीमा धारकों को निगम के प्रति विश्वसनीय रखने का रहा। इस दौरान एजेंटों ने कुछ राशि जो नये बीमा में नहीं बदली उनको अपने स्तर पर मैनेज किया। लेकिन अब दस साल बीमा शाखा के अधिकारी मामला खुलने पर सभी अभिकर्ताओं पर नोटिस के साथ अचाकन उनके कमीशन से पैसा काटना शुरू कर दिया।
यह भी पढ़ें…
परेशान अभिकर्ता नहीं समझ पा रहे है कि अब वे क्या करें। इस संदर्भ में एलआईसी के अधिकारी सुरेश गौतम से बात करने का प्रयास किया तो उन्होंने प्रकरण पर बात करने से मना करते हुए पलडा झाड लिया, जबकि एक और वरीय अधिकारी एम0एम0 शर्मा से फोन पर सम्पर्क करने का प्रयास किया तो उनका फोन स्वीच ऑफ बता रहा था।