भूमि सुधार और कृषि आधारित उद्योग-धंधे लगाये बिना इस राज्य का कुछ नहीं हो सकता है

पटना

माले का आरोप, भूस्वामियों-भूमिचोरों को बचा रही है सरकार , बिहार के पीछे जाने का यही है राज!

स्टेट डेस्क/पटना : बिहार विधान मंडल के संयुक्त अधिवेशन के दौरान भाकपा-माले विधायक सत्यदेव राम ने सरकार पर भूमि सुधार से के ऐजेंडा से विश्वासघात करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, आखिर बिहार का यह हाल क्यों है? मैं कोई नई बात नहीं बोलने जा रहा हूं. फिर से पुरानी बात ही दुहरा रहा हूं.

सारे अर्थशास्त्रियों व विद्वानों ने बारंबर कहा है कि राज्य में जबतक भूमि सुधार को लागू नहीं किया जाता, कृषि आधारित उद्योग-धंधो नहीं लगते, इस राज्य का कुछ नहीं होने वाला. हम बार-बार बोलेंगे कि यह सरकार भूस्वामियों-भूमिचोरों को बचा रही है. और यही वजह है कि बिहार आगे बढ़ने की बजाए पीछे जा रहा है. हम जब कहते हैं कि गरीबों-बटाईदारों में जमीन बांटो, नीतीश जी कहते हैं कि जमीन क्या आसमान से आएगी? आपने जो बंद्योपाध्याय आयोग का गठन किया था, उसने बताया था कि 21 लाख एकड़ सीलिंग की जमीन है, इसका वितरण गरीबों के बीच किया जाना चाहिए. यदि उत्पादकों को उत्पादन साधनों का मालिक नहीं बनायेंगे, तब विकास कैसे होगा?

सरकार बंदोपाध्याय कमिटी की रिपोर्ट पर कहती है कि यह पुराने सर्वे के आधार पर हुआ है. नीतीश कुमार ने कौन सा नया सर्वे करवाया कि वे अपनी ही रिपोर्ट को खारिज कर रहे हैं? बंद्ोपाध्याय आयोग ने बेहद उदार किस्म की सिफारिशें की थीं, विभिन्न किस्मों की सीलिंग खत्म करते हुए एक ही सीलिंग की सिफारिश की थी और उसका आधार 15 एकड़ बनाया था. सरकार इस सच से भाग रही है, तो हम आपसे कहना चाहते हैं कि सीलिंग का दायरा घटाकर 5 एकड़ करिए. आप बताइए कि भूदान में प्राप्त अभी तक अवितरित रह गई जमीन का क्या हुआ? कहां उसका बंदरबाद हुआ? उलटे आज पूरे राज्य में गरीबों को जगह-जगह बेदखली का शिकार बनाया जा रहा है. जल जीवन हरियाली योजना के नाम पर उनके लिए वैकल्पिक आवास की व्यवस्था तो नहीं हुई, लेकिन उजाड़ जरूर दिया गया. चंपारण से दरभंगा तक एक बार फिर भूमाफियाओं की सक्रियता बढ़ गई है और वे गरीबों व पर्चाधारियों को उनकी जमीन से बेदखल करने पर आमदा हैं. हत्याएं कर रहे हैं और यहां तक कि जलाकर मार दे रहे हैं. ऐसा लगता है कि भाजपा-जदयू की सरकार ने इस प्रदेश को 1990 के पहले वाले सामंती दबंगई व भूस्वामियों के आतंक के दौर में ले जाने का मन बना लिया है.

कृषि का परंपरागत पिछड़ापन व उद्योग

बिहार में कृषि का परंपरागत पिछड़ापन जारी है. बाढ़-सुखाड़ की समस्या जस की तस पड़ी है. सोन नहर प्रणाली सहित सभी प्रमुख नहर प्रणालियां अस्त-व्यस्त हैं. नीतीश शासन में बचे-खुचे उद्योग भी समाप्त हो गए. चंपारण के चीनी मिलों का हाल हम सब लगातार देख रहे हैं. किसानों का बकाया बदस्तूर जारी है. अब इस सरकार ने फैसला किया है कि धान, गेहूं, जौ सहित 7 खाद्य पदार्थों से एथेनाॅल बनाया जाएगा. यह भूख से जूझते बिहार को भुखमरी के कगार पर धकेल देना है. हम खाद्य पदार्थों से अखाद्य पदार्थों के निर्माण को विनाशकारी कदम समझते हैं और इसपर अविलंब रोक लगनी चाहिए.

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