रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ रुपया

News दिल्ली

सेंट्रल डेस्क। रूस-यूक्रेन युद्ध का भारत की अर्थव्यवस्था पर तगड़ा असर पड़ा है और दिसंबर के मध्य के बाद से सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है। गत शुक्रवार को रुपये की कीमत 76 प्रति डॉलर के निशान पर पहुंच गई। इससे पहले रुपया दिसंबर में 1 डॉलर के मुकाबले 75.91 पर पहुंचा था लेकिन इस बार उससे भी नीचे चला गया है।

वहीं इस गिरावट को लेकर कारोबारियों ने कहा कि डॉलर/रुपये में शुरुआती गिरावट के बाद आयातक और बैंक चल रहे भू-राजनीतिक जोखिमों के बीच ग्रीनबैक खरीदने के लिए दौड़ पड़े। रूसी सेना द्वारा यूक्रेन में एक परमाणु संयंत्र पर हमला करने की खबरों के बाद निवेशकों की बढ़ती चिंता के बीच अधिकांश उभरती एशियाई मुद्राएं और शेयर शुक्रवार को कमजोर हो गए।

वहीं एक निजी बैंक के एक वरिष्ठ विदेशी मुद्रा व्यापारी ने कहा कि युद्ध समाप्त होने तक बाजार अस्थिर रहने वाले हैं। तेल अभी भी स्थिर है, उच्च मुद्रास्फीति की उम्मी बढ़ गई है। जब तक आरबीआई हस्तक्षेप नहीं करता है रुपया एशियाई साथियों के साथ मिलकर आगे बढ़ने की संभावना है।

पश्चिमी प्रतिबंधों की आशंका के रूप में तेल की कीमतों में फिर से उछाल आया है जो रूसी तेल निर्यात को बाधित कर सकता है और ईरानी आपूर्ति की संभावना से अधिक है। भारत अपनी तेल जरूरतों का दो-तिहाई से अधिक आयात करता है और कच्चे तेल में उछाल से देश का व्यापार और चालू खाता घाटा बढ़ने और रुपये पर दबाव पड़ने का खतरा है।

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बार्कलेज के एक अर्थशास्त्री राहुल बाजोरिया ने कहा कि अब हम उम्मीद करते हैं कि वित्त वर्ष 22-23 में सीपीआई मुद्रास्फीति पहले के 4.5% की तुलना में औसतन 5.1% होगी। व्यापारियों ने बताया है कि अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी कीमतों में उछाल विशेष रूप से कच्चे तेल, चिंता का एक प्रमुख स्रोत है। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें मौजूदा 110 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर बनी रहती हैं तो हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले महीनों में घरेलू पंप की कीमतों में कम से कम 20% की वृद्धि होगी।