कानपुर/ बीपी टीम : आज से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो गई है। कानपुर का एक प्रसिद्ध मंदिर बारह देवी लगभग 1700 साल पुराने पौराणिक मंदिर है। स्थानीय भाषा में लोग इसे बारादेवी मंदिर कहते है।
यह वही मंदिर है, जिसमें विराजी देवियां पत्थर की हो गईं थीं। ये असल में 12 बहनें थीं, जो पिता के गुस्से से बचने घर से भागी थीं। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने यहां सर्वे किया था, जिसमें पता चला कि यहां स्थित मूर्तियां करीब 1700 वर्ष पुरानी हैं। बता दें कि नवरात्र की अष्टमी तिथि पर श्रद्धालु मां बारा देवी को जवारा निकालते हैं। जवारा वह जौ होती है, जो कलश-स्थापना के समय मिट्टी पर छिड़का जाता है। वही जब बड़ा हो जाता है, तो अष्टमी को काटा जाता हैं।
मंदिर के आसपास आस्था का सैलाब उमड़ता है। पूरे यूपी से यहां लोग दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर के पुजारी दीपक के मुताबिक मंदिर से जुड़ी कथा बेहद प्रचलित है। गुरुओं ने बताया था कि पिता से हुई अनबन के बाद उनके क्रोध से बचने के लिए घर से एक साथ 12 बहनें भाग निकली थी। सारी बहनें किदवई नगर में मूर्ति बनकर स्थापित हो गईं। पत्थर बनी यही 12 बहनें सालों बाद बारादेवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
ऐसा कहा जाता है कि बहनों के दिए हुए श्राप से पिता भी पत्थर हो गए थे। पुजारी के अनुसार यहां कोई भी भक्त मां का नाम लेकर चुनरी बांधता है तो उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। मन्नत पूरी होने पर चुनरी की गांठ खोलने जरूर आना पड़ता है। जिस दंपत्ति को संतान सुख प्राप्त नहीं होता है तब चुनरी बांधने से मुराद पूरी होती है। संतान होने पर मुंडन मंदिर में ही कराना होता है। फिर चुनरी की गांठ खोलनी होती है। अष्टमी के दिन जवारे निकाले जाते हैं।
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