मुजफ्फरपुर/ब्रह्मानन्द ठाकुर। बिहार के बोचहां चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की करारी हार हुई है । विगत कुछ चुनावों में पूरे उत्तर बिहार में भाजपा के किसी भी प्रत्याशी की इतनी बड़ी हार नहीं हुई थी। बोचहां में भाजपा की इस हार को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं। इसमें जो सबसे बड़ी चर्चा है वह प्रत्याशी के विरुद्ध में जनता की गोलबंदी । यहां जनता इसलिए लिखा गया है क्योंकि जो मतदाता नहीं भी थे , जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम थी वह भी प्रत्याशी बेबी कुमारी के विरोध में जमकर नारेबाजी कर रहे थे।
मतदाताओं का गुस्सा इतना था कि चुनाव प्रचार करने आए भाजपा के विधान पार्षद अर्जुन सहनी, प्रत्याशी बेबी कुमारी, व बिहार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष संजय जायसवाल तक को भारी विरोध का सामना करना पड़ा। इन तीनों नेताओं को जनसंपर्क और चुनावी सभा को बीच में छोड़कर बाहर निकल जाना पड़ा था, कारण आम लोगों का भयंकर विरोध।मतदाताओं के गुस्सा होने के कई कारण थे।
यदि सोशल साइट पर फेसबुक का अवलोकन करें तो बोचहाँ चुनावी क्षेत्र के पुराने भाजपाई वह आर एस एस के कार्यकर्ता डॉ अरुण कुमार मिश्रा लिखते हैं – बेबी की जितनी गलती नहीं थी उससे अधिक उनके पति उमेश प्रसाद की गलतियों का खामियाजा भाजपा प्रत्याशी बेबी कुमारी को उठना पड़ा । कुछ इसी से मिलती-जुलती प्रतिक्रिया जिले के नामचीन पत्रकार विभेष त्रिवेदी के फेसबुक वॉल पर भी दिखती है। दरअसल बेबी कुमारी के पति उमेश प्रसाद पर यह आरोप लगता रहा कि बगैर कमीशन उन्होंने किसी भी कार्य के लिया अनुमोदन नहीं किया।
एक और बड़ा कारण सोशल साइट पर एंटीसोशल कमेंट करना भाजपा को काफी महंगा पड़ गया। भाजपा से जुड़े कुछ नवयुवकों ने फेसबुक पर अनाप-शनाप लिखना शुरू कर दिया। जिनके हर पोस्ट को विरोधियों ने देखा समझा और अलग-अलग तरीके से फायदा उठाने में अपनी कामयाबी हासिल कर ली। चाहे वह बिहार विधानसभा में बिहार के मंत्री रामसूरत राय जी के द्वारा दिया गया जवाब हो , या मुजफ्फरपुर जिले के पश्चिमी क्षेत्र में रामनवमी जुलूस के दौरान की गई एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना। सोशल साइट की स्थितियां थी कि कोई भी व्यक्ति हो वह यदि राजनीतिक पोस्ट करता था तो बगैर किसी इज़ाजत के उसके पोस्ट पर भाजपा समर्थित युवकों द्वारा अनर्गल प्रलाप सुरु हो जाता था। जातियों का नाम लेकर कॉमेंट करना हमेशा किसी जाति को टारगेट करना और बस नरेंद्र मोदी जी के नाम के बदौलत जीत होने का दावा करना आम जनमानस को खल गया।
ऐसा प्रतीत होता था मानो यदि बोचहा चुनाव भाजपा ने नहीं जीता तो कब्र से निकलकर अकबर और बाबर भारत पर कब्जा कर लेंगे और भारत में पुनः मुस्लिम राज कायम हो जाएगा। नतीजा यह हुआ कि जो भी पढ़े लिखे और बुद्धिजीवी वर्ग के लोग थे वह धीरे-धीरे इस उपचुनाव से खुद को दूर करते चले गए। मतदान के दिन वह मतदान करने निकले ही नहीं।
और जो नई उम्र के लड़के थे जिनमें नया जोश था, नई उमंग थी और जिन्हें यह लगता था कि केवल मेरे प्रयास करने से पूरे देश में क्रांति आ जाएगी। वह जोश खरोश के साथ निकले और उन्होंने युवा प्रत्याशी जो राजद से थे उनको अपना मत दे दिया।
नतीजा यह हुआ की जिस बोचहा में भाजपा ने उपचुनाव के लिए बिहार भाजपा से लेकर केंद्र तक के लगभग छह दर्जन से अधिक नेताओं को जमीन पर उतार दिया था। केंद्रीय मंत्री पूर्व केंद्रीय मंत्री गृह राज्य मंत्री बिहार सरकार के उद्योग मंत्री आर एस एस के दलसानिया सहित लगभग 80 से अधिक नेताओं की फौज बचाने उतर चुके थे। बावजूद उसके भाजपा को 36 हजार से अधिक मतों से करारी हार का सामना करना पड़ा। बोचहाँ उपचुनाव की यह हार भाजपा के लिए निश्चित ही आत्म चिंतन और आत्म मंथन मंथन का विषय है । अभी भी समय है कि समय रहते भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व बिहार भाजपा को सही नहीं करता है तो आने वाले समय में भाजपा को बिहार में बड़े घाटे का सामना करना पड़ सकता है।