मुजफ्फरपुर के उत्तरी क्षेत्र में प्रवासी मवेशियों के जत्थों का आना शुरू

मुजफ्फरपुर

– अपने मवेशियों के साथ तीन महीना रहेंगे प्रवास में इलाके के किसान हर साल करते हैं इनके आने का इंतजार

मुजफ्फरपुर/ब्रम्हानंद ठाकुर : जिले के कटरा, औराई और गायघाट प्रखंडों के ग्रामीण इलाकों मे प्रवासी पशुपालकों का अपने मवेशियों के साथ आगमन शुरू हो गया है। इलाके के लोग इन्हें बथनियां कहते है।बथनिया शब्द का मायने होता है खेतो मे पशुओं समेत पशुपालकों का डेरा जमाना। वे यहां आसपास के क्षेत्रों में खेत-खलिहानों-बगानों-हरे घास वाले इलाकों आदि में डेरा जमाते और पशुपालन करते हैं।

दक्षिण बिहार के पशुपालको के दल के साथ प्रवासी मवेशियों का झुंड आना शुरू हो गया है। प्रवासी पशुपालकों के अनुसार गर्मी के शुरुआत के साथ हीं दक्षिण बिहार के इलाकों में भीषण गर्मी की वजह से पशुओं के पालन के लिये पेयजल,हरा पशुचारा आदि का भारी संकट उत्पन्न होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में दुधारू मवेशियों को परेशानी होती है।जिसके कारण से प्रत्येक साल रबी फसल के कटने और गर्मी की शुरुआत होने के साथ हीं प्रखंड एवं आसपास के इलाकों में प्रवासी पशुपालकों के दल के साथ दर्जनों या सैंकड़ों मवेशियों की संख्या वाली झुंडों का प्रखंड एवं आसपास के क्षेत्रों में आना शुरू हो जाता है।

आज सैदपुर-पूसा-सखौरा के रास्ते मवेशियों के कई झुंडों का इलाके में आना शुरू हो गया। कई झंडू में पशुपालकों द्वारा पालतू मवेशियों को समूहों में क्षेत्र की सड़कों से लाते दिखे। सासाराम के त्रिवेणी चाचा, जहानाबाद के मनसुख समेत कई पशुपालकों ने बताया कि वे लोग गर्मी के महीने में अपने इलाके में मवेशियों के हरा चारा, पर्याप्त पेयजल आदि के संकट से जूझते रहते हैं।मवेशियों के खाने एवं रहने का संकट हो जाता है।महंगा सूखा चारा खिलाना सम्भव नहीं हो पाता है। ऐसे में दूध उत्पादन पर भी संकट उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में गर्मी का महीना शुरू होने के साथ ही वे लोग किसानों के समूह में मवेशियों को एक साथ झुंड बनाकर निकल जाते हैं। उत्तर बिहार के जिलों एवं प्रखंडों क्षेत्रों में टहलते हुए आगे बढ़ते चले जाते हैं।

किसान और पशुपालक दोनों को होता है फायदा।

जिस किसान के खेत या बगान में मवेशी को ये पशुपालक 2-3 दिन रखते हैं,मवेशियों का मल -मूत्र
उनके खेतों में छोड़ देते हैं। जिसकी बाद में खेतों में जुताई कर जैविक खाद के रूप में किसान उसका उपयोग करते हैं।इससे उर्वरा शक्ति बढ़ती है और फसलें अच्छी होती हैं।स्थानीय किसानों को बिना किसी लागत खर्च या परेशानी के खेतों में बिखरा हुआ गोबर जैविक खाद का रूप ले लेता है।

प्रवासी पशुपालकों को आसान और नि:शुल्क खेतों में ठहरने की जगह और पशुओं के लिये हरा चारा मिल जाता है। इच्छुक किसान परिवारों को बदले में पशुपालक मवेशियों के शुद्ध दूध भी उपलब्ध कराते हैं। स्थानीय किसानो और प्रवासी पशुपालकों के बीच एक अनाम रिश्ता भी कायम हो जाता है और किसान हर साल इस मौसम मे उनके आने का इंतजार करते हैं। स्थानीय किसान भी उन्हें हर सम्भव मदद करते हैं।

प्रवासी पशुपालक आसपास के इलाकों में घूम-घूमकर गाय – भैंस का दूध और घी जरूरतमंद परिवारों में बेचकर नगद आमदनी भी कर लेते हैं जिससे वे प्रवास काल वे अपनी जरूरतें पूरी करते हैं और कुछ पैसे बचाकर अपने घर- परिवारों को भी भेजते हैं। जून-जुलाई में उत्तर बिहार में बरसात का मौसम आते ही वे लोग अपने गांव वापस होने लगते हैं। इसी तरीके से कुछ दूर चलने पर सुरक्षित ठिकानों पर ठहरते और रात्रि विश्राम करते हुए आगे बढ़ते चले जाते हैं।इस दौरान इलाके में मवेशियों की खरीद बिक्री आदि भी करते रहते हैं।

पूर्व कुलपति डॉ. गोपालजी त्रिवेदी बताते हैं कि पशुपालकों का यह प्रयास काफी प्रेरक एवं बेहतर है।ऐसे में पशुओं के चारा भी सहज तरीकों से मिल जाते हैं।खर्च भी बच जाते हैं।एक इलाके से दूसरों इलाकों में सहज तरीकों से भ्रमण भी हो जाता है।वहीं किसानों को बिना खर्च जैविक खाद भी उपलब्ध हो जाता है।