उपन्यास ‘ वसंत सेना ‘ सिर्फ प्रेमकथा नहीं,सामाजिक क्रांति का सूत्रपात भी है : डॉ संजय पंकज

मुजफ्फरपुर

मुजफ्फरपुर/बिफोरप्रिंट। प्रस्तावना, संस्कृति संगम, नव संचेतन के संयुक्त तत्वावधान में मिठनपुरा स्थित मंजुल प्रिया के सभाकक्ष में वरिष्ठ कवि गीतकार डॉ महेंद्र मधुकर के नए उपन्यास ‘ वसंतसेना ‘ का लोकार्पण तथा कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।

विषय प्रस्तावना में डॉ संजय पंकज ने कहा कि यह उपन्यास केवल प्रेम कथा नहीं प्रकारांतर से आज के समय के भी कई संदर्भों की ओर इशारा करता हुआ प्रस्तुत हुआ है। रस सिद्ध गीतकार और साहित्य का अध्येता जब उपन्यास लिखता है तो स्वाभाविक रूप से भाषा रसमय में और संवेदनशील हो जाती है।

अपने अध्यक्षीय उद्गार में डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव ने कहा कि इस उपन्यास में तब की न्यायिक व्यवस्था, राजनीतिक स्थिति और सामाजिक संरचना उजागर होती है, कमोबेश आज भी वही स्थिति बनी हुई है। डॉ मधुकर ने संस्कृत साहित्य के कथानक को सांस्कृतिक स्वरूप देते हुए अधुनातन बनाया है यह यह प्रशंसनीय और अनुकरणीय हैं। डॉ पूनम सिंह ने कहा कि उपन्यास में दो दो प्रेम कथाएं एक साथ चलती हैं और पहल स्त्री पात्र ही करती है। संचालन के क्रम में डॉ विजय शंकर मिश्र ने कहा कि इस उपन्यास में सूत्र रूप में ऐसी अनेक सूक्तियां हैं जो हमारे लिए प्रेरणा और ऊर्जा का काम करती हैं।

डॉ महेंद्र मधुकर ने पुस्तक की विषय वस्तु तथा अपने आभारोक्ति में कहा कि यह उपन्यास वसंतसेना केवल प्रेम कथा नहीं है बल्कि सामाजिक क्रांति का सूत्रपात भी है। पुरानी कहानी को नए सांचे में ढालने की कोशिश हुई है और प्रेम की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की गई है।

दूसरे सत्र में युवा कवि कुमार राहुल अपने गीत की पंक्तियों – कौन अकेला साथी जग में कौन अकेला है/ खुशियों की आवाजाही है गम का मेला है ‘ से संबंधों के बीच से जीवन की गतिमयता के यथार्थ को प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया।
डॉ अनिता सिंह की कविता- बुखार के दिनों में/गाल से अपने गाल को सटाकर/ताप का पता लगा लेती थी मां , तों डॉ पूनम सिंह की रचना- बाबा की खड़ाऊं की पंक्तियां हमारे संस्कार की जड़ तक ले जाने में असरदार रही। डॉ संजय पंकज ने कबीराना अंदाज में जब सुनाया – चुप हो जा चुप हो जा साधो, कब तक बोलेगा/ धरा गगन के बीच अडिग तू कब तक डोलेगा – तो कवि सम्मेलन का रंग फकीराना हो गया।

विजय शंकर मिश्र के गीत – हम तो कवि हैं कविता करने वाले हैं – की पंक्तियों ने कवि के मर्म को उकेरा। चांदनी समर ने- रोको न मुझे,टोको न मुझे/पंछी को पर फैलाने दो सुनाकर स्त्री संघर्ष की बात की। वीरमणि राय ने बज्जिका रचना सुनाई। डॉ महेंद्र मधुकर ने गीत- जब जब ताल तलैया सूखी, जब-जब नील गगन मंडलाया,तब तब मेरा मन भर आया – सुनाकर रस और संवेदना की मधुर धारा प्रवाहित कर दी।

डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव के भोजपुरी गीत के बाद
हिंदी गीत – तुम पास नहीं जब होते हो तब प्यार तुम्हारा होता है/ हम जहां जहां भी होते हैं संसार तुम्हारा होता है – का पुरजोर प्रभाव पड़ा। समारोह में संस्कार भारती के संगठन मंत्री गणेश प्रसाद, मिलन कुमार, कृष्ण मुरारी, आरती कुमारी, मानस दास, मौली दास आदि की महत्वपूर्ण उपस्थिति रही हूं धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुनीति मिश्र ने किया।

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