डायलिसिस करा रहे रोगियों को हेमोग्लोबिन के लिए नहीं लगावाना होगा महंगा इन्जेक्शन, जीएसवीएम में नई दवा का ट्रायल सफल

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कानपुर/बीपी प्रतिनिधि। किडनी की दिक्कत के कारण डायलिसिस करा रहे रोगियों के लिए राहत भरी खबर। ऐसे मरीजों में हेमोग्लाबिन को नियंत्रित रखने के लिए महंगे इजेक्शन पर डिपेंड होना पड़ता था अब उनके लिए नई सस्ती टेबलेट इंजेक्शन का विकल्प बन जाएगी। इसमें मरीजों की जेब भी ढीली नहीं होगी और उनके हीमोग्लोबिन का स्तर भी भी बढ़ जाएगा।

इस नई दवा को गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल (जीएसवीएम) मेडिकल कॉलेज के नेफ्रोलॉजी विभाग ने 13 मरीजों पर प्रयोग कर अध्ययन शुरू कर दिया गया है। परिणाम भी सकारात्मक आ रहे हैं।

कुछ यूं होता है एरिथ्रोपोएसिस का प्रोसेस।

पहले चरण के ट्रायल में नए मालीक्यूल की दवा कारगर साबित हो रही है। किडनी के ठीक से काम न करने की सूरत में डॉक्टर डायलिसिस कराते हैं। ऐसे रोगियों में डायलिसिस कराने के कारण एनीमिया या कहें तो भी खून की कमी होने लगती है। इसे बचाने के लिए उन्हें इरिथ्रोपोइटिन के इंजेक्शन नियमित तौर पर दिए जाते हैं। जिसके चंद यूनिट की कीमत ही हजारों रुपये में होती है। यह अलग-अलग ब्रांड के आते हैं। पर ज्यादातर बहुत महंगे होते हैं। किडनी रोगियों को यह इंजेक्शन हफ्ते में दो बार लेना पड़ता है। दरअसल इरिथ्रोपोइटिन एक तरह से हारमोन्स है जो खून की कमी को ठीक करने में मददगार होता है। पर इसकी कीमत के कारण और इंजेक्शन के फार्म में होने के कारण काफी सारे रोगियों को इसे लगवा पाना मुश्किल पड़ता है।

यही वजह है कि काफी समय से चिकित्सा वैज्ञानिक इसके विकल्प को तलाशने में लगे हैं। अब जीएसवीएम के नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट आ रही एक खबर ने रोगियों के लिए राहत पैदा की है। हाइपोक्सिया इंडुसिबल फैक्टर स्टेबेलाइजर नाम की दवा का ऐसे रोगियों पर मेडिकल कॉलेज में ट्रायल किया गया। तकरीबन 13 डायलिसिस करा रहे मरीजों पर किए गए परीक्षण में दवा कारगर पायी गई। आठ मरीजों में हीमोग्लोबिन में तो उल्लेखनीय इजाफा हुआ है। यह दवा हर हफ्ते एक बार लेनी होगी और इसकी कीमत पड़ेगी तकरीबन डेढ़ सौ रुपये।

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