विभूति भूषण दास से कहा था –‘ दादा , मै तो जा रहा हूं ,आप जेल से छूटने के बाद बिहार मे बाल विवाह प्रथा बंद कराने की कोशिश जरूर करिएगा ‘
मुज्जफरपुर/ ब्रह्मानन्द ठाकुर। 14 मई देश के अमर शहीद और बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का पहला नौजवान जिसने राष्ट्र की बलिवेदी पर खुद को उत्सर्ग कर दिया , उस वीर सपूत बैकुंठ शुक्ल का 88 वां शहादत दिवस है। 1934 मे आज ही के दिन गया सेंट्रल जेल में बैकुंठ शुक्ल को फांसी दी गई थी। उन्हें फांसी की यह सजा एक मुखविर फणीन्द्र नाथ घोष की हत्या के आरोप मे दी गई थी।
फणीन्द्रनाथ घोष कभी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एशोसिएशन का सदस्य था।भगत सिंह ,राजगुरु ,सुकदेव और चंद्रशेखर आजाद का साथी। लेकिन जब सांंडर्स हत्या कांंड और एसेम्बली बमकांड का मुकदमा चल रहा था ।फणीन्द्रनाथ घोष तब जेल मे था। उसने खुद की रिहाई के लिए मुखविर बनना कबूल कर लिया और उस मुकदमे मे सरकारी गवाह बनकर भगत सिंह ,राजगुरु और सुकदेव , शिव वर्मा , किशोरी लाल ,डाक्टर गया प्रसाद बटुकेश्वर दत्त , विजय कुमार सिंहा ,आदि क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाही दी थी। इसी आधार पर भगत सिंह ,राजगुरु और सुकदेव को फांंसी एवं अन्य क्रांतिकारियों को आजीवन कारावास की सजा मिली थी।
फणीनन्द्र नाथ घोष को उसकी गद्दारी के लिए चंद्रशेखर आजाद ने दल की ओर से मृत्युदंड की घोषणा कर दी। सरकारी गवाह बनने के बाद फणुन्द्र नाथ घोष को जेल से रिहा कर दिया गया।क्रांतिकारियों ने इलाहाबाद मे उसकी हत्या करने की दो बार कोशिश की लेकिन वह बच निकलाः जान बचाने के लिए वह बेतिया अपने घर आ गया।अंग्रेज सरकार ने उसकी सुरक्षा के लिए प्रबंध कर दिए और कुछ रुपये भी रोजगार करने के लिए उसे दियाः इसबीच 1931 मे चंद्रशेखर आजाद भी शहीद हो चुके थे।लेकिन बचे हुए क्रांतिकारी फणीन्द्र नाथ घोष को उसकी गद्दारी की सजा देने के लिए बचनबद्ध थे। यह जिम्मेवारी बैकुऔठ शुक्ल ने स्वीकार की।
9 नवम्बर 1932को उन्होने बेतिया जाकर फणीन्द्रनाथ घैष की हत्या कर दी और वहां से भाग चले। कुछ दिनो तक मलखाचक (छपरा जिला) मे छुप कर रहे। कुछ समय बाद 6 जुलाई ,1933 को हाजीपुर आने के क्रम में सोनपुर पुल के पास उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।मुजफ्फरपुर के तत्कालीन सत्र न्यायाधीश टी लूबी की अदालत मे मुकदमा चला।फिर मैताहारी जेल मे उनका ट्रायल हुआ और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। उन्होने सत्र न्यायालय के फैसलै के खिलाफपटना हाईकोर्ट मे अपील की लेकिन वहां भी सत्र न्यायालय का ही फैसला कायम रखते हुए उन्हें गया सैंंट्रल जेल भेज दिया गया। उन्हें डंडा – बेडी मे जकड कर 7 नम्बर सेल मे रखा गया।
फांसी की रात उनको 7 नम्बर सेल से 15 नम्बर सेल मे ले जाया गया। बगल के तीन सेल मे अलग — अलग तीन क्रांतिकारी भी बंद थे।उसी एक सेल मे थे विभूति भूषण दास। बैकुंठ शुक्ल ने विभूतिभूषण दास से आग्रह कर के खुदीराम बोस का फांसी वाला गीत सुना -‘ हांसी हांसी परबो फांसी ,मां देखबे भारत बासी। फिर उनसे बांसुरी पर विस्मिल के गीत सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है’ का धुन बजाने को कहा। यह सब करते रात का एक बज चुका थाःदोनो अपने अपने सेल मे न केवल जाग रहे थे बल्कि गीत सुन सुना रहे थेःदास जी ने शुक्ल जी के आग्रह पर कवि रवीन्द्रनाथथ टैगोर का ए तो चुपी चुपी केनो कथा कओ , ओ गो मरण , हे मोर मरण।’
सबेरा होने को था। प्रहरी उन्हे सेल से निकाल कर फांसी के तख्ते की ओर ले चले।शुक्ल जी ने विभूति भूषण दास के सेल के सामने से गुजरते हुए रुक कर उनसे कहा था –‘ दादा ,अब चलता हूंःफिर आऊंगा। आप जेल से बाहर जाने के बाद बिहार मे बाल विवाह प्रथा को बंद कराने का प्रयास जरूर करिएगा ‘ और , 24 साल का वह वीर सपूत शेर की तरह सिर उठाए ,सीना ताने चल पडा था फांसी के तख्ते की ओर।
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