1- कुंडली अध्ययन
2 – भाव मिलान
3 – अष्टकूट मिलान
4- मंगल दोष विचार
5- दशा विचार
बीपी डेस्क। उत्तर भारत में गुण मिलान के लिए अष्टकूट मिलान प्रचलित है जबकि दक्षिण भारत में दसकूट मिलान की विधि अपनाई जाती है। उपरोक्त पांच महत्वपूर्ण पहलूओ मे से विचारणीय पहलू अष्टकूट मिलान के महत्वपूर्ण आठ कूटो का विचार होता है। यहाँ अष्टकूट मिलान अर्थात आठ प्रकार से वर एवं कन्या का परस्पर मिलान को गुण मिलान के रूप मे जाना जाता है जिसका संक्षिप्त परिचय निम्नवत है –
● वर्ण – (1 अंक)
चन्द्र राशि से निर्धारण किया जाता है जिसमे 4 , 8, 12 राशियाँ विप्र या ब्राह्मण हैं 1, 5 ,9 राशियाँ क्षत्रिय है 2 , 6 ,10 राशियाँ वैश्य हैं जबकि 3 , 7 , 11 राशियां शूद्र मानी गयी है।
वश्य – (2अंक)
द्विपदीय राशि- 3 , 6 , 7 , 9 राशि 0° से 15° तक , 11
चतुष्पदी राशि- 1 , 2 , 10 राशि 0° से 15° तक , 9 राशि 15° से30° तक
जलचर राशि- 4 , 12 , 10 राशि 15° से 30° तक
कीट राशि – 8
वनचर राशि – 5 राशि होती हैं।
● तारा – (3अंक)
वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के नक्षत्र तक गिने और प्राप्त संख्या को 9से भाग करें यदि शेष फल 3 ,5 , 7 आता है तो अशुभ होता है फलस्वरूप शून्य अंक, जबकि अन्य स्थिति मे तारा शुभ होता है तारा शुभ होने पर 1-1/2 अंक प्रदान करते हैं। इसी प्रकार कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गिने और प्राप्त संख्या को 9 से भाग करें यदि शेष फल 3 ,5 , 7 आता है तो अशुभ होता है फलस्वरूप शून्य अंक, जबकि अन्य स्थिति मे तारा शुभ होता है तारा शुभ होने पर 1- 1/2 अंक प्रदान करते हैं। अतः इस प्रकार दोनों के नक्षत्र से गिनने पर शुभ तारा आता है पूर्णाक 3 दिये जाते हैं यदि एक शुभ और दूसरा अशुभ तारा आता है तो 1 – 1/2 अंक दियें जाते हैं अन्य स्थिति मे कोई भी अंक नहीं दिया जाता है।
● योनि – (4अंक)
जन्म नक्षत्र के आधार पर योनि निर्धारित होती हैं जिसका विवरण इसप्रकार से है – यदि योनियां एक ही हैं तो 4 अंक , यदि मित्र है तो 3 अंक , यदि सम है तो 2अंक , शत्रु हैं तो 1अंक , और यदि अति शत्रु हैं तो कोई भी अंक नहीं दिया जाता है अंको का आबंटन निम्नवत तालिका के अनुसार रहता है-
● ग्रह मैत्री- (5 अंक)
वर एवं कन्या के राशि स्वामी से ग्रह मैत्री देखी जाती है। ग्रहों का मैत्री समबन्ध अर्थात एक ग्रह के मित्र सम शत्रु ग्रह निम्नवत तालिका के अनुसार रहते हैं –
- गण (6 अंक)
सभी नक्षत्रों को तीन समूहों 1 – देव 2 – नर (मनुष्य) 3 – राक्षस मे बाँटा गया है –
अनुराधा , पुनर्वसु , मृगशिरा , श्रवण , रेवती , स्वाति , हस्त ,अश्विनी और पुष्य इन नौ नक्षत्रो का देव गण होता है।
पूर्वाफाल्गुनी , पूर्वाषाढा , पूर्वाभाद्रपद , उत्तराफाल्गुनी , उत्तराषाढा , उत्तराभाद्रपद , रोहिणी , भरणी और आद्रा इन नौ नक्षत्र का नर या मनुष्य गण होता है।
मघा ,आश्लेषा, धनिष्टा ,ज्येष्ठा , मूल , शतभिषा , विशाखा , कृतिका ,और चित्रा राक्षस होता है।
यदि वर – कन्या दोनों के गण एक ही हो पूर्णाक 6 अंक, वर देव गण हो कन्या नर गण की हो तो भी 6अंक, यदि कन्या का देव गण हो वर का नर हो तो 5अंक यदि वर राक्षस गण का हो कन्या देव गण की हो तो 1 अंक और अन्य परिस्थितियों में कोई अंक नहीं दिया जाता है।
जहाँ वर – कन्या की राशियों के स्वामी अथवा राशि के नवांशेष एक ही होते हैं वहाँ गण दोष अपनी अशुभता खो देता है।
● भकूट (7 अंक)
वर की चन्द्र राशि/कन्या की चन्द्र राशि एक दूसरे से
(1) 2 :12 , 6: 8 , 9 : 5 अक्ष पर हो तो शून्य अंक रहेगा
(2) 7:7 , 4 :10 , 3: 11 अक्ष पर हो तो 7अंक प्राप्त होगे।
(3) समान राशि होने पर 7 अंक होगे ।
( भकूट के विषय गहनता से देखने के अन्य विचारणीय पहलू रहते हैं पर विचार एवं परिहार भी देखना आपेक्षित रहेगा)
● नाड़ी (8 अंक)
जन्म नक्षत्र के आधार पर तीन प्रकार की नाडियां होती है (1) आदि (2) मध्य और (3) अंत्या
इस कूट मिलान मे वर -कन्या की एक नाड़ी नहीं होनी चाहिये , यदि दोनों की अलग-अलग नाड़ी हो तो पूर्णाक 8 अंक दिए जाते हैं जबकि अन्य स्थिति में ( जहाँ दोनों की एक ही नाड़ी होती है) कोई भी अंक नहीं दिया जाता है। जन्म राशि एक किन्तु नक्षत्र भिन्न अथवा नक्षत्र एक परन्तु राशि भिन्न अथवा चरण भिन्न होने पर दोष नहीं माना जाता है। विशेष- वर का नक्षत्र कन्या के नक्षत्र से जितनी दूरी पर हो उतना अच्छा रहता है कन्या के नक्षत्र के ठीक बाद का नक्षत्र वर का हो तो अति अशुभ माना जाता है।
उपरोक्त आठ प्रकार के कूटो के अनुसार वर- कन्या की कुंडली का पारस्परिक रूप से मिलान किया जाता है जो कि सामान्य रूप से कहा गया है जिसका गहन ज्योतिषीय पहलूओ के अनुसार परीक्षण करना भी अति आवश्यक रहता है जिसमें समबन्धित कूट का परिहार या निस्तारण देखना भी आपेक्षित रहेगा कुछ पहलूओ पर विद्वानों मे मामूली मतांतर भी है मैंने सर्वाधिक मान्य पहलूओ का उल्लेख करनें का प्रयास किया है।