बीपी डेस्क। झारखंड की धार्मिक नगरी देवघर में 13 जुलाई से अंतर्राष्ट्रीय श्रावणी मेला 2022 का शुभारंभ हो गया। आज कृषि मंत्री बादल पत्रलेख, सांसद डॉ. निशिकांत दुबे उपस्थित में झारखंड बॉडर दुम्मा में राजकीय श्रावणी मेले का उद्घाटन हुआ। इस दौरान वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजा-अर्चना की गई. निशिकांत दुबे ने इस दौरान पूजा-अर्चना की। इसके बाद मंत्री और सांसद ने झारखंड के बॉर्डर दुम्मा मुख्य गेट पर फीता काटकर मेले का उद्घाटन किया। मेले के उद्घाटन के साथ ही अब कांवड़िया पथ का शुभारंभ भी हो गया है।
भगवान शिव को प्रिय सावन का आज पहला दिन है। देवघर के बाबा वैद्यनाथ मंदिर में पहले दिन की पहली पूजा 55 मिनट तक हुई है। सुबह 3 बजकर 5 मिनट पर बाबा का पट खुलते ही काचा जल चढ़ाया गया। पंडा समाज के द्वारा काचा जल चढ़ाकर बाबा को ठंडा करने की परम्परा है। बाबा को काचा जल चढ़ाकर उनसे पूजा अर्चना के लिए अनुमति ली जाती है, इसके बाद ही बाबा की सरदारी पूजा की जाती है।
सावन के पहले दिन बाबा को चंदन के लेप के साथ विभिन्न प्रकार के सुगंधित पुष्पों के साथ बेलपत्र अर्पित किया गया। 28 मिनट तक चली सावन की पहली सरदारी पूजा में बाबा की विधिवत मंत्रोच्चार के साथ उपासना की गई। आम भक्तों की पूजा सुबह 4 बजे से शुरू हुई है।
देवघर के अनुराग पंडा बताते हैं कि बाबा का पट मंत्रों के साथ खोला जाता है। मंत्रोचार के साथ बाबा को पट खोलने के साथ जगाया जाता है। इसके बाद बाबा को काचा जल यानी सादा जल से अभिषेक कराया जाता है। पंडा समाज के लोग काचा जल चढ़ाकर बाबा को ठंडा करते हैं, बाबा से पूजा उपासना की अनुमित लेते हैं। इसके बाद बाबा की सरदारी पूजा होती है। सरदारी पूजा में बाबा को पहले चंदन और सुगंधित तेल का लेप किया जाता है। इसके बाद पुष्प और बेलपत्र के साथ बाबा के पसंद की सामग्री चढ़ाई जाती है। इसमें दूध दही पंचामृत के साथ अन्य सामग्रियां होती हैं। सरदारी पूजा का नियम है कि बाबा को चढ़ाई जाने वाली हर सामग्री विधिवत चांदी के पात्र में लाई जाती है और विधि विधान से उनपर चढ़ाया जाता है।
बाबा की सरदारी पूजा तो हर दिन होती है, हर दिन का समय भी फिक्स होता है। इसमें 55 मिनट ही लगता है। बाबा के पट खुलने का समय भी पहले से निश्चित रहता है। पट भी बाबा के खास पुजारी द्वारा खोला जाता है। यह परम्परा सदियों से चलती चली आ रही है। बाबा के प्रमुख पुजारी बाबा का विधिवत पूजा जब तक नहीं कर लेते हैं, तब तक मंदिर में आम लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता है।