जानिए भारत में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का क्या है अधिकार

दिल्ली

सेंट्रल डेस्क। भारत में राष्ट्रपति का पद संविधान का सबसे ऊंचा पद होता है और उनकी कार्यावधि पांच साल की होती है. राष्ट्रपति भारत की संसद के दोनों सदनों और राज्य विधायकों का महत्वपूर्ण अंग होता है. संसद का कोई भी बिल बिना उनकी स्वीकृति के पास नहीं हो सकता अथवा सदन में ही नहीं लाया जा सकता है. भारत के उपराष्ट्रपति का पद देश का दूसरा उच्चतम संवैधानिक पद है और वे राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करते हैं.

राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति के कार्यवाहक के रूप में काम करना पड़ता है. अगर किसी कारण वश देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों का पद रिक्त हो जाये तो दोनों की गैरमौजूदगी में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया उनका पद संभालेंगे. ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कार्यवाहक राष्ट्रपति होंगे.

भारत में राष्ट्रपति के अधिकार :

-भारत के राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियां प्रदान की गई हैं कि वह किसी भी दंड का उन्मूलन, क्षमा, दंड या क्षमा में कोई भी परिवर्तन कर सकते हैं.
-राष्ट्रपति को ये पूरा अधिकार है कि वो किसी भी व्यक्ति को दोष सिद्ध होने पर सजा दे सकते हैं.
-राष्ट्रपति यदि चाहें तो मृत्युदंड की सजा में बदलाव ला सकते हैं. उसे खत्म या कम या ज्यादा कर सकते हैं.
-मृत्युदंड की आखिरी सजा के लिए राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होना जरूरी होता है. सजा को पूर्णतः अथवा अंशतः कर सकते हैं.
-राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर से दंड की प्रकृति को कठोर से हटा कर नम्र कर दे सकते हैं. जैसे कि मृत्युदंड की सजा को सश्रम कारावास या सश्रम कारावास को सामान्य कारावास में बदल सकते हैं.
-सजा की अवधि को कम कर सकते हैं, लेकिन उस की प्रकृति को नहीं बदल सकते.
-सजा में कमी विशेष आधार पर दे सकते हैं- जैसे गर्भवती महिला की सजा को कम करना.
-फांसी की सजा में विलंब कर सकते हैं. उनके हस्ताक्षर के होने तक सजा रोकी जाती है.
-राष्ट्रपति की क्षमाकारी शक्तियां पूर्णतः उनकी इच्छा पर निर्भर करती हैं. उन्हें एक अधिकार के रूप में मांगा नहीं जा सकता है.
-ये शक्तियां कार्यपालिका द्वारा निर्धारित की गई हैं और राष्ट्रपति इनका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर कर सकते हैं.

राष्ट्रपति को वीटो पावर भी हासिल है
-विधायिका की किसी कार्यवाही को विधि बनने से रोकने की शक्ति वीटो शक्ति कहलाती है.
-संविधान राष्ट्रपति को तीन प्रकार के वीटो देता है-

पूर्ण वीटो – निर्धारित प्रकिया से पास बिल जब राष्ट्रपति के पास आये (संविधान संशोधन बिल के अतिरिक्त) तो वह अपनी स्वीकृति या अस्वीकृति की घोषणा कर सकते हैं. किंतु यदि अनुच्छेद 368 (सविधान संशोधन) के अंतर्गत कोई बिल आये तो वह अपनी अस्वीकृति नहीं दे सकते हैं.

निलम्बनकारी वीटो – संविधान संशोधन अथवा धन बिल के अतिरिक्त राष्ट्रपति को भेजा गया कोई भी बिल वह संसद को पुर्नविचार हेतु वापस भेज सकते हैं. किंतु संसद यदि इस बिल को पुनः पास कर के भेज दे तो उसके पास सिवाय इसके कोई विकल्प नहीं है कि उस बिल को स्वीकृति दे दें.

पॉकेट वीटो – संविधान राष्ट्रपति को स्वीकृति या अस्वीकृति देने के लिये कोई समय सीमा नहीं देता है. यदि राष्ट्रपति किसी बिल पर कोई निर्णय ना दें (सामान्य बिल, न कि धन या संविधान संशोधन) तो माना जायेगा कि उन्होंने अपने पॉकेट वीटो का प्रयोग किया है.

राष्ट्रपति की विवेकाधीन अधिकार
-प्रधान मंत्री राष्ट्रपति को समय-समय पर मिल कर राज्य के मामलों तथा भावी विधेयकों के बारे में सूचना देंगे. राष्ट्रपति सूचना प्राप्ति का अधिकार रखते हैं.
-प्रधान मंत्री पर एक संवैधानिक उत्तरदायित्व होता है यह अधिकार राष्ट्रपति कभी भी प्रयोग ला सकते हैं. इसके माध्यम से वह मंत्री परिषद को विधेयकों निर्णयों के परिणामों की चेतावनी दे सकते हैं.
-जब कोई राजनैतिक दल लोकसभा में बहुमत नहीं पा सके तब वह अपने विवेकानुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति कर सकते हैं.
-संसद के सदनों को बैठक हेतु बुला सकते हैं.
-लोकसभा का विघटन कर सकते हैं, यदि मंत्रीपरिषद को बहुमत प्राप्त नहीं है.

उपराष्ट्रपति के अधिकार

-उपराष्ट्रपति राज्यसभा के अध्यक्ष होते हैं और उनका कार्य लोकसभा के अध्यक्ष के समान होता है.यह अमेरिकी उपराष्ट्रपति के समान है, जो सीनेट के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करते हैंं.
-राष्ट्रपति की उपस्थिति में उपराष्ट्रपति उनके कार्यों का निर्वहन करते हैं.
-उपराष्ट्रपति उस दौरान राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते हैं, उन कर्तव्यों का निर्वहन राज्यसभा के उपसभापति द्वारा किया जाता है.
-उस दौरान वह राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं और वे राज्यसभा के किसी संदेय किसी वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होते.
-रिक्ति की स्थिति में राष्ट्रपति के रूप में उन्हें सारी शक्तियां प्रदान की जाती हैं जो राष्ट्रपति को होती हैं. उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में तबतक कार्य करते हैं जबतक कि नए राष्ट्रपति की नियुक्ति ना हो जाए.
-उपराष्ट्रपति अधिकतम छह महीने तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर सकते हैं. उस बीच नए राष्ट्रपति का निर्वाचन कराना अनिवार्य हो जाता है.
-जब राष्ट्रपति अनुपस्थित हों, अस्वस्थ हों या किसी अन्य कारण से अपने कार्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हों, तो उपराष्ट्रपति अपने कार्यों का निर्वहन तब तक करते हैं जब तक कि राष्ट्रपति अपना पदभार पुनः ग्रहण नहीं कर लेते.