बदलते जलवायु व कम पानी में अच्छी पैदावार के लिए दो साल के अंदर धान के नई किश्म की खोज कार्य पूरा करने का कृषि वैज्ञानिको ने किया दावा
डुमरांव स्थित कृषि कालेज एवं विक्रमगंज के धनगाई कृषि फार्म में वैज्ञानिकों द्वारा धान की नई किश्मों को विकसित करने को अनुसंधान जारी
बक्सर, विक्रांत। एकतरफ सूबे में बदलते जलवायु को लेकर धान का कटोरा कहे जाने वाले बक्सर जिला ही नहीं बल्कि कमोवेश पूरे प्रांत के किसानों के चेहरे पर बीच चिंता की लकीर तन गई है। बारिस नहीं होने के चलते पानी के अभाव के चलते खेतों में तैयार धान के बीचड़े रोपनी किए बगैर सूखने के कगार पर है। किसानों की हालात दयनीय हो चुकी है।दुसरी ओर बिहार प्रांत के कृषि विज्ञानियों नें बदलते जलवायु को चुनौती देते हुए किसानों के समक्ष उत्पन्न समस्या एवं उनकी दयनीय हालात से छुटकारा दिलाने को ठान लिया है।कृषि वैज्ञानियों नें बदलते जलवायु के बीच एवं कम पानी में बेहजतर उत्पादन के लिए पैदावार के लिए धान की नई किश्म की खोज करने में जी-तोड़ मिहनत कर रहे है।
इसकी जागता मिशाल बिहार कृषि विश्व विद्यालय, सबौर की अंगीभूत इकाई डुमरांव के वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज प्रांगण की जमीन पर वैज्ञानिक डा.प्रकाश सिंह के नेतृत्व में कम पानी में बेहतर उत्पादकता वाले धान की नई किश्म की खोज करने को करीब पांच सौ किश्म के रोपे गए धान के बिचड़े है।विभिन्न पांच सौ किश्म के लहलहाते बिचड़ा कृषि कालेज परिसर की खुबसूरती को और बढ़ा दी है।
‘दो साल के अंदर सूबे के किसानो को मिलेगा छुटकारा‘
डुमरांव स्थित वीर कुंवर सिंह कालेज के कृषि वैज्ञानिक डा.प्रकाश सिंह ने बताया कि किसानों के समक्ष खड़ी बदलते जलवायु की समस्या से कृषि क्षेत्र के वैज्ञानिक भी चिंतित हो उठे है। इसी कड़ी में सूबे के कृषि वैज्ञानिकों नें बदलते जलवायु, सूखे के मौसम एवं कम पानी में भी धान की अच्छी पैदावार के लिए धान की नई किश्म विकसित करने का कार्य कृषि कालेज डुमरांव व रोहतास जिला के विक्रमगंज(धनगांई) स्थित कृषि फार्म में जारी है। वैज्ञानिक डा.सिंह ने बताया कि दो प्रभेद में सबौर मोती एवं मंसूरी को विकसित किया जा चुका है। हाला कि इनको धरातल पर उतारने का कार्य अतिंम चरण में चल रहा है। इसके बीज अगले साल से किसानों के बीच उपलब्ध उपलब्ध हो जाएंगें।
इस नई प्रभेद कार्य विकसित करने में उनके सहयोगी के तौर पर वैज्ञानिक डा.कमलेश प्रसाद एवं वैज्ञानिक डा.रविशंकर सिंह शामिल है। बदलते जलवायु सूखे में भी धान की बेहतर पैदावार के आसार‘ वैज्ञानिक डा.सिंह ने बताया कि किसानों की वर्तमान समस्या को देखते हुए कृषि वैज्ञानिको के माध्यम से बिहार कृषि विश्व विद्यालय, सबौर द्वारा सूखे की मौंसम के दरम्यान कम पानी मे भी धान की साखनाशी, प्रतिरोधी एवं अच्छी पैदावार सुनिश्चित करने के लिए धान की नई प्रभेद विकसित करने को परियोजना शुरू की गई है। उन्होनें बताया कि बहुत हद तक कम पानी में भी अच्छी पैदावार वाले धान की नई प्रभेद खोज करने में सफलता मिल गई है।
बदलते जलवायु के बीच विकसित किए जा रहे नई प्रभेद वाला धान महज 120 एवं 125 दिन के अंदर पक जाने की संभावना है। कम पानी में नई प्रभेद वाला धान प्रति हेक्टेयर 50 से 60 क्विन्टल एवं सूखे के मौसम में प्रति हेक्टेयर 45 से 50 क्विन्टल उत्पादन होने की पूरी संभावना है। उन्होनें बताया कि अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र की निगरानी में महज दो साल के अंदर कम पानी में पैदावार योग्य धान की नई प्रभेद(खोज) कार्य पूरा हो जाने की पूरी उम्मीद है। दो साल के अंदर प्रांत व देश के किसानों को सूखे के मौंसम व कम पानी की त्रास्दी से छुटकारा मिलना तय है। किसानों को बदलते जलवायु की ज्वलंत समस्या से बहुत जल्द छुटकारा मिल जाएगा।
‘भारत सरकार का विज्ञान एवं प्रोद्योगिक विभाग भी सहयोगी‘
कृषि वैज्ञानिक डा.सिंह ने बताया कि किसानों की वर्तमान समस्या को भारत सरकार के कृषि एवं प्रोद्योगिकी विभाग वैज्ञानिको के माध्यम से किसानों द्वारा लगाई जाने वाली सुंगधित धानों की पुरानी प्रभेदों में अनुवंशिकी सुधार कराने में जुटी हुई है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भी धान के पुराने किश्मों की अनुवंशिकी सुधार कराने की दिशा में राज्य सरकार के कृषि विभाग को सहयोग प्रदान कर रही है।
‘बिहार कृषि विश्व विद्यालय के कुलपति डा.अरूण कुमार का कथन‘
सूबे में बदलते जलवायु के बीच किसानों के समक्ष धान के पैदावार की समस्या को लेकर विश्व विद्यालय प्रशासन व जुड़े कृषि वैज्ञानिक भी चिंतित हो उठे है। बदलते जलवायु के दरम्यान धान की पैदावार की समस्या से निजात दिलानें की दिशा में सरकार के सहयोग से वैज्ञानिको द्वारा अनुसंधान की दिशा में कई परियोजना शुरू की गई है। सूखे के बीच एवं कम पानी में धान की अच्छी पैदावार के लिए नई प्रभेद विकसित करने को वैज्ञानिको का अनुसंधान कार्य चल रहा है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान पर पूरा भरोसा है। बहुत जल्द साकारात्मक रिजल्ट आने की पूरी संभावना है।डा.अरूण कुमार, कुलपति, बिहार कृषि विश्व विद्यालय,सबौर।
‘कृषि कालेज, डुमरांव के प्राचार्य डा.रियाज अहमद का कहना‘
वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज भवन के सामने परती पड़ी जमीन पर धान की विभिन्न नई किश्म के अनुसंधान कार्य के लिए बिचड़े रोपे गए है। नए प्रभेद विकसित करने को धान के विभिन्न बिचड़े में 30 से अधिक लाईनें रोपे गए है। जो सरकार द्वारा संचालित परियोजना में शामिल है।डा.रियाज अहमद, प्राचार्य, वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज,डुमरांव।