लोगों ने कहा दबाव से बाहर निकली सरकार, अब बहेगी विकास की वयार

बिहार

वीरेन्द्र दत्त/ मधुबनी बिहार में नई सरकार का गठन हो चुका है।जनता जानती है कि कैसे बदली सरकार यह बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं सार्वजनिक तौर पर साफ कह चुके हैं। राजग गठबंधन की सरकार में सहयोगियों से लगातार मिलते दबाव की बात भी सार्वजनिक तौर पर कह कर उन्होंने गठबंधन तोड़ने की चर्चाओं पर विराम लगा दिया है। बुधवार को शपथ ग्रहण के दौरान उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के शालीनता और संस्कारों की भी लोगों में खूब चर्चा है। लोगों की उम्मीदें भी इस नई सरकार के गठन के साथ परवान चढ़ रही है।

राजग गठबंधन के बीते काल वाली सरकार में लिए गए कई फैसलों पर पुनर्विचार की लोग मांग कर रहे हैं। बिजली विभाग द्वारा उपभोक्ताओं के घर जबरन लगाये जा रहे स्मार्ट मीटर को लेकर भी लोग उद्वेलित हैं। पहले बिजली विभाग को स्मार्ट बनने की मांगें उठ रही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि बिजली विभाग में मानव कार्यबल को घटाने,लोगों को इलेक्ट्रोमैगनेटिक वेव और रेडियो फ्रिक्वेंसी के परिधी में लाने,उसके निजता के अधिकार पर दखल देने समेत केंद्र के एक कद्दावर नेता पुत्र को फायदा पहुंचाने के उद्येश्य से स्मार्ट मीटर लगाकर राज्य की जनता को तंगो तबाह किये जाने का यह कुचक्र है। जिसे राजग गठबंधन में रहते सरकार द्वारा रोक पाना सहज नहीं था।

स्मार्ट बनने का अंधानुकरण कहीं हमें गर्त में न ले जाय लोगों को यह अंदेशा भी सता रहा है। पुरानी सरकार में सीएम नीतीश कुमार द्वारा लिए गए कई फैसलों को भी सामने लाकर राजनीतिक प्रेक्षक तथा आमजन इसके सिंहावलोकन को आवश्यक बता रहे हैं। शराबबंदी के बाद बन रही स्थितियों पर भी लोग चिंतित दिख रहे हैं। लोगों की मानें तो शराबबंदी के बाद शराब की खपत राज्य में बढ़ गयी है। अधिकारियों की कमाई और लोगों की परेशानी दोनों में इजाफा हुआ है। गांव गांव में शराब के सिंडिकेट को संरक्षण देने के फायदों की अगर चर्चा करें तो चौकीदार की हैसियत अधिकारियों से ऊपर और अधिकारियों की हैसियत करोड़ो के पार हो गयी है।

शराब के कारोबारियों के पीछे पुलिस के लगे रहने से विधि ब्यवस्था संधारण का अन्य काम या तो प्रभावित हो रहा है या नकारे जा रहे हैं। पैसे की भूख जग गयी है। गांव गांव में बेरोजगारों को गलत काम के मार्ग मिल गए हैं जो आने वाले दिनों में घातक होने वाला है। इस सबके बावजूद लोग शराब पी ही रहे हैं, इस पर खर्च भी अधिक कर रहे हैं और जहरीली शराब पीकर मर भी रहे हैं। सरकार का राजस्व भी मारा जा रहा है और इसके बदले आमजनों पर कर का बोझ विभिन्न तरीकों से बढ़ रहा है। सरकार के पास भी पैसों को लेकर मजबूरी है। फिर इसमें भलाई किसकी हो रही है। इसपर पुनर्विचार करना लोग आवश्यक बता रहे हैं। फिर बात हर घर नल का जल योजना तक आती है। जिसे आज तक का सबसे भ्रष्ट योजना बताया जा रहा है। संवेदक और अधिकारी मालामाल हो रहे हैं। जनता कंगाल हो रही है। दूसरी ओर लोग इस नये गठजोड़ से उत्साहित भी दिख रहे हैं। लोगों की उम्मीदें इस नई सरकार के गठन के बाद मुखरित हो रही है। बहरहाल नई सरकार के लिए साम्प्रदायिकता के घेरे से बाहर निकलना राज्यहित में बताया जा रहा है।

तो दूसरी ओर चाणक्य तथा गौतम बुद्ध की धरती से देश के तमाम गैर भाजपाई दलों के लिए इसे एक संदेश भी बताया जा रहा है। ताकि धर्म और सांप्रदायिकता के नाम पर राजनीति पर रोक लग सके। लगे कि सरकारें देश और जनता के हित के साथ खड़ी है। अपनी नीतियों को सरकार जन आकांक्षाओं के अनुरूप ही लागू करें और सख्ती भी वरतें तो उसपर सरकार की नजर रहे। सरकार कड़ाई भी भलाई के लिए करे तो इसे अच्छा मानने वाले लोग कम नही हैं। नियत भलाई की लगे तुगलकी कदापि ना हो !हाँ सरकारी फैसलों का अनुश्रवण और इसके नफा नुकसान पर नजर बनाए रखने की जरूरत को भी अपरिहार्य बताया जा रहा है। फैसले कभी गलत भी हो सकते हैं पर इसे सुधारने का प्रयास भी होना चाहिए।

तुगलकी फरमान से जनता अब उबती दिख रही है। राज्य में बढ़ती मंहगाई, अफसरशाही, अपराधिक घटनाऐं ,घुसखोरी,लालफीताशाही आदि से लोग मुक्ति चाह रहे हैं। एक ओर नई सरकार पर जिम्मेवारियों का यह अपार बोझ है तो दूसरी ओर भाजपा की सधी राजनीति और उसके मजबूत विपक्ष के रुप का सामना भी इन्हें करना है जो चर्चाओं में और समय के गर्भ में छिपा है। जन सामान्य की मानें तो शासन ठीक तो जनता भी विकास के रास्ते अपना काम करती रहेगी। वर्ना आपके पीछे चलेगी आपकी परछाईयॉ की बात तो सदियों से चली ही आ रही है- राजनेता भी कहते हैं कि ये पब्लिक है सब जानती है, उठा पठक तो नियति है ही इसे भी सब जानते और मानते हैं।