80वां शहादत दिवस पर विशेष

बिहार मुजफ्फरपुर

जिनके खूं से रौशन है चिरागे वतन, उनकी तुर्बत पर नहीं है एक भी दीया
11 अगस्त, 1942 के आंदोलन के शहीद अमीर सिंह

मुजफ्फरपुर, ब्रह्मानन्द ठाकुर। जिले के वर्तमान बंदरा प्रखंड का एक गांव है नूनफारा। इस गांव का एक टोला है ,जिसे लोग बदहा टोला के नाम से जानते हैं। आजादी से पहले तक यहां बाहरी जमींदारों की जमींदारी हुआ करती थी। जमींदार गरीब काश्तकारों और खेतिहर मजदूरों का भरपूर शोषण कर रहे थे।इनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं था। तब की यह परम्परा थी कि किसी गरीब के घर पैदा होने वाले लड़के का नाम उसके माता-पिता अमीर रख दिया करते थे। जाहिर है अमीर सिंह एक ऐसे ही गरीब परिवार में जन्म लिए थे। वे तीन भाइयों में मझले थे। बड़े का नाम धनवीर और छोटे का नाम रामवृक्ष था। उनकी दो बहनें भी थीं—-कपिया और बढनियां। तब गांव के निर्धन परिवारों के बच्चों का नाम ऐसा ही होता था

अमीर सिंह का जन्म भले ही निर्धन परिवार में हुआ लेकिन वे स्वभाव से दब्बु नहीं, विद्रोही थे। किशोरावस्था तक आते-आते उनका यह विद्रोही स्वभाव धीरे-धीरे मुखर होने लगा। जमींदारों और उसके स्थानीय कारिंदों द्वारा गांव के गरीब काश्तकारों और मजदूरों पर किए जारहे शोषण, बेगार और अत्याचार का वे मुखर विरोध करने लगे। इसका परिणाम तो मिलना ही था।जमींदारों के कान खड़े हुए। तय हुआ कि इस उदंड और जमींदार विरोधी युवक को सबक सिखाया जाए। जमींदारों ने अपने आका और कोठी मालिक अंग्रेजों का कान भरना शुरू कर दिया। तब इस इलाके में अंग्रेजों की कई कोठियां हुआ करती थीं। उसके कारिंदे भी प्रायः: स्थानीय लोग ही होते थे‌। इन्हीं गोरे साहबों के बल पर जमींदारों का भी अत्याचार चलता था। दोनों एक-दूसरे के मददगार थे।

परिणाम यह हुआ कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किसान-मजदूरों को भड़काने का आरोप लगा कर अमीर सिंह को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेज दिया गया। अनेक स्वराजी पहले से ही वहां जेल की सजा काट रहे थे। अमीर सिंह पर इन स्वराजियों का प्रभाव पड़ा। गांव में अंग्रेज और स्थानीय जमींदारों के अत्याचार देख उनके मन में आजादी का जो अंकुर फूटा था, वह जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों की संगत में पल्लवित-पुष्पित होने लगा। जेल में ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने का संकल्प कर लिया। कुछ समय बाद सबूत के अभाव में वे जेल से रिहा हो गए। जेल से छूटने के बाद वे पूरी तरह देशभक्ति के रंग में सराबोर हो गये। अब सुराजियों के साथ खुल कर आंदोलन की गतिविधियों में भाग लेने लगे।

इसी बीच जयमाला देवी से उनका विवाह हुआ। उनका यह दाम्पत्य सूत्र बंधन भी उन्हें अपने लक्ष्य से डिगा नहीं पाया। उनकी आंदोलनकारी गतिविधियां जारी रहीं। 9अगस्त, 1942 को महात्मागांधी समेत देश के बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे। ‘करो या मरो’ का नारा दिया था चुका था। नेतृत्व विहीन आंदोलनकारियों के मन में जो आया, वहीं किया। सशस्त्र क्रांति के समर्थक, जो अहिंसक आंदोलन में विश्वास नहीं करते थे, वे भी इस आंदोलन में कूद पडे‌। तोड-फोड शुरू हो गया। संचार व्यवस्था भंग की जाने लगी, रेल-तार उखाड़े जाने लगे। ब्रिटिश हुकूमत ने बड़ी बेरहमी के साथ इस आंदोलन को कुचलना शुरू कर दिया। इस दोरान बिहार के 15हजार आंदोलनकारियों को जेलों में बंद किया गया। 8हजार 783 को सजा मिली और 134 देशभक्त शहीदों हो गये थे। अमीर सिंह की शहादत का भी वही दौर था।

11 अगस्त, 1942का दिन। स्वतंत्रता सेनानियों की उत्साही जमात रेल की पटरियां उखाड़ने, संचार व्यवस्था ठप करने के लिए तार काटने के बाद नारे लगाते हुए सकरा थाने की तरफ बढ़ रही थी। वहां तिरंगा फहरा दिया गया। फिर भीड़ वहां से कुछ दूरी पर स्थित रजिस्ट्री कार्यालय पर तिरंगा फहराने के लिए बढ़ रही थी कि सकरा थाने के तत्कालीन दारोगा दीपनारायण सिंह की कड़कती, चेतावनी भरी आवाज गूंजी —‘ भाग जाओ, गोरखा फौज आ गई है, अब गोली चलेगी‌।’ सर पर कफ़न बांधे आजादी के दिवानो का जन सैलाव इस चेतावनी को अनसुनी कर आगे बढ़ता रहा। गोरखा फौज पहुंच चुकी थी। गोलियों की तड़तड़ाहट से वातावरण थर्रा उठा।लोग भागने लगे। इसी दौरान एक गोली अमीर सिंह को लगी और वे मौके पर ही शहीद हो गये।

उनकी शहादत के 52बर्षों बाद 1994में बंदरा प्रखंड मुख्यालय से मुजफफरपुर जाने वाली सड़क पर जहां से बदहा टोला जाने के लिए एक सड़क निकलती है, तत्कालीन राजस्व मंत्री रमई राम ने इस शहीद के नाम पर एक शहीद द्वार का निर्माण कराया जो आज जर्जर हालत में है। इसकी मरम्मत की चिंता न सरकार को है न स्थानीय विधायक या त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों को। आजादी के अमृत महोत्सव पर भी इस शहीद के पैतृक गांव में एक श्रद्धांजली समारोह तक का आयोजन न होना यह दर्शाता है कि हम अब अपने वीर सपूतों की शहादत को भी भूलते जा रहे हैं। विधान पार्षद देवेशचंद्र ठाकुर के सौजन्य से काफी जद्दोजहद के बाद सकरा के रजिस्ट्री कार्यालय परिसर में शहीद अमीर सिंह की प्रतिमा स्थापित की गई है।प्रतिमा स्थल पर भी आज उनके शहादत दिवस पर श्रद्धांजली समारोह के आयोजन की कोई सूचना नहीं है।