स्टेट डेस्क /पटना : अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में छात्राओं के तथाकथित वायरल एम एम एस वीडियो मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन और चंडीगढ़ पुलिस के रवैये पर गंभीर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इस कांड को तात्कालिक तौर पर दबाने या टालने की नीति नहीं अख्तियार की जानी चाहिए. ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी और अध्यक्ष इ.रति राव ने कहा कि इस मामले में वरीय पुलिस अधीक्षक का बयान कई सवाल खड़े कर रहा है।
विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्राओं के अभिभावकों पर दबाव बना कर और विश्वविद्यालय बंद कर हॉस्टल खाली करवा कर मामले को रफादफा करने की कोशिश की गई है. जबकि, जरूरत थी कि छात्राओं को न्याय मिले और वीडियो वायरल होने की वजह से व्याप्त भय और असुरक्षा बोध से उन्हें मुक्त करने के लिए गंभीर प्रयास किया जाए।
पंजाब विश्वविद्यालय की यह घटना इस बात की पुष्टि करता है कि छात्राओं के लिए पितृसत्तात्मक मूल्यों पर आधारित नियमों को लागू करना और हॉस्टल को कैदखाना बना देना छात्राओं की सुरक्षा की गारंटी नहीं है। किसी भी कार्यस्थल की तरह विश्वविद्यालय में भी एक स्वस्थ, खुला और लोकतांत्रिक माहौल होना चाहिए ताकि लड़कियां निर्भीक और अपने अधिकारों के प्रति सजग बन सकें।
इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियनें नहीं हैं और लड़कियों को शाम 6:00 बजे के बाद हॉस्टल से बाहर आने जाने की इजाजत नहीं है. हमारे लिए आश्चर्यजनक यह भी है कि इस विश्वविद्यालय में अब तक यौन उत्पीड़न विरोधी कमेटी (CASH)का गठन नहीं हुआ है. हम पंजाब महिला आयोग से उम्मीद करते हैं कि आयोग इस बाबत विश्वविद्यालय प्रशासन से जवाब तलब करेगा।
चंडीगढ़ विश्वविद्यालय की छात्राओं द्वारा उठाए गए मांगों का समर्थन करते हुए हम मांग करते हैं कि
1.विश्वविद्यालय में एक स्वस्थ लोकतांत्रिक माहौल के लिए जरूरी है कि छात्र यूनियनों का निर्माण हो ताकि उस मंच से छात्राएं अपनी समस्याएं उठा सकें.
- हॉस्टल में आने-जाने के समय का निर्धारण छात्र और छात्राओं के लिए एक समान हो.
- यौन उत्पीड़न विरोधी कमेटी (CASH) का तत्काल गठन किया जाए.