Patna, Beforeprint : लगातार रिमाइंडर के बाद भी उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं देने वाले आठ विश्वविद्यालयों की मुश्किलें बढ़ना तय है। अब सरकार ने नई शर्त के साथ अनुदान (Grant) देने का फैसला किया है। जो भी संस्थान समय-समय हिसाब नहीं देंगे, उन्हें काली सूची में डालकर उनकी ग्रांट रोक दी जाएगी। इसका सीधा असर विद्यार्थियों पर पड़ने वाला है। इस बाबत शिक्षा सचिव असंगबा चुबा आओ ने सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को आगाह करते हुए आदेश जारी कर दिया है। आदेश में कहा गया गया है कि पहले वे 486 करोड़ 27 लाख रुपये का हिसाब दें। उसके बाद आगे का अनुदान मिलेगा। हिसाब देने के लिए सभी को 30 नवंबर तक का समय दिया गया है। हिसाब देने के बाद ही अनुदान राशि जारी की जाएगी।
इस मामले में जो आठ विश्वविद्यालय कार्यवाही की जद में आते दिखाई दे रहे हैं उनमें बोधगया का मगध विश्वविद्यालय, तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, आरा का वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर का बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, छपरा स्थित जय प्रकाश विश्वविद्यालय, दरभंगा का ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय और कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ मधेपुरा का बीएन मंडल विश्वविद्यालय शामिल हैं।
बिहार सरकार ने वित्त रहित शिक्षा नीति को खत्म करते हुए सत्र 2005-2008 से संबद्धता प्राप्त कालेजों को ग्रांट देने की व्यवस्था की थी, लेकिन कालेजों ने 2009 से लेकर 2015 तक अनुदान का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया। महालेखाकार कार्यालय ने भी 486.27 करोड़ रुपये का हिसाब नहीं मिलने पर नाराजगी जताई जा चुकी है। सूत्रों का कहना है कि इसमें शिक्षा विभाग के वैसे उपनिदेशक एवं निदेशक के स्तर से भी लापरवाही बरती गई। जिसकी वजह से ग्रांट तो बार-बार जारी होती रही पर सख्ती के साथ हिसाब नहीं लिया गया। अब यह अफसर भी सवालों के कठघरे में हैं।
इस बार संबंधित विश्वविद्यालय से संबद्ध डिग्री कॉलेजों को चार स्नातक शैक्षणिक सत्रों के रिजल्ट आधारित अनुदान के लिए 684 करोड़ रुपये की राशि दी जानी है। इसी ग्रांट को रोका जा रहा है। अगर ऐसा हुआ तो नुकसान सीधे तौर पर छात्र-छात्राओं को होगा क्योंकि प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में पास होने पर छात्राओं को क्रमशः 8700, 8200 और 7700 रुपये की राशि दी जाती है। वहीं छात्रों के लिए इस अनुदान की रकम 8500, 8000 और 7500 रुपये तय है।