Pulin Tripathi, Beforeprint : इंडोनेशिया में बीते शुक्रवार और कल आए भूकंप ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। उनकी माने तो कांप रही धरती खतरे की घंटी भी साबित हो सकती है। इसका स्थाई और अस्थाई दोनों प्रभाव खास तौर पर यूपी, उत्तराखंड और नेपाल में कभी भी तीव्र क्षमता का भूकंप ला सकता है। इस आशंका पर आईआईटी कानपुर और नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के वैज्ञानिक न केवल नजर रखे हुए हैं बल्कि भूकंप आने की आशंका पर भी फोकस किए हुए हैं।
इस बारे में आईआईटी कानपुर के अर्थ साइंस विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर जावेद एन मलिक ने बिफोरप्रिंट को बताया कि फिलहाल धरती का हल्का फुल्का कंपन जो नोट किया जा रहा है वह बिफोर (भूकंप आने से पहले ) या फिर आफ्टर शॉक (भूकंप आने के बाद) की निशानी हो सकते हैं। दरअसल उनकी टीम गुजरात, उत्तराखंड और देश के अन्य देशों में आए भूकंप के मामलों पर अध्ययन कर रही है। उन्होंने बताया कि इस अध्ययन के लिए उनकी टीम ने देश के अनेक हिस्सों में निगरानी के लिए उपकरण लगा रखे हैं।
उन्होंने बताया कि हिमालय और नेपाल सीमा पर छह से सात सौ साल पहले बड़ी तीव्रता का भूकंप आ चुका है। प्रो. मलिक के मुताबिक हिमालय और आसपास के क्षेत्र में इंडियन और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों में टकराव हो रहा है। जिसकी वजह से जमीन के भीतर भूकंप लाने वाली ऊर्जा जमा हो रही है। इस ऊर्जा के बाहर निकलने पर ही भूकंप के तीव्र या हल्के झटके आते हैं।
इसका प्रमाण नवंबर में या उसके पहले रिक्टर स्केल पर नापे गए हल्की क्षमता के भूकंप के झटके हैं। यह बिफोर या आफ्टर शॉक हो सकते हैं। उनके मुताबिक 16वीं, 19 वीं, और 20 शताब्दी में जो भूकंप भारत में आए वह धरती के नीचे जमा ऊर्जा का ही परिणाम रहे हैं। फिलहाल काफी समय से जम्मू और हिमालय प्रदेश शांत है। लेकिन इंडियन और यूरेशियन प्लेटों में टकराव तो जारी है। इसकी वजह से काफी ऊर्जा एकत्र हो रही है। जो कि चिंता का विषय है।