प्राचीन भारत में विज्ञान : मिथक बनाम वास्तविकता विषय पर सेमिनार आयोजित

मुजफ्फरपुर

Muzaffarpur/Befoteprint : आज ब्रेकथ्रू साइंस सोसायटी, मुजफ्फरपुर चैप्टर की ओर से स्थानीय राम मनोहर लोहिया स्मारक कॉलेज मे प्राचीध भारत में विज्ञान : मिथक बनाम वास्तविकता विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार की अध्यक्षता डॉ राम मनोहर लोहिया कॉलेज के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफ़ेसर डॉ हरीश चंद्र प्रसाद यादव और मंच का संचालन ब्रेकथ्रू साइंस सोसायटी, मुजफ्फरपुर चैप्टर के संयोजक आशुतोष कुमार ने किया। इस सेमिनार के मुख्य वक्ता ब्रेकथ्रू साइंस सोसायटी, झारखंड चैप्टर के सेक्रेटरी एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ कन्हाई बारीक थे। उन्होंने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि इतिहास भी एक विज्ञान है अगर इतिहास को जानना है तो प्रमाण की जरूरत है। प्रमाण स्मारक और दस्तावेज के रूप में हमें मिलते हैं। उनका कार्बन डेटिंग कर अध्ययन किया जाता है तथा सटीक समय का पता किया जाता है।

यह स्मारक और दस्तावेज कब के हैं, इसी के आधार पर इतिहास को जान सकते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता एवं वैदिक काल दो अलग-अलग सभ्यताएं हैं दोनों के बीच में काफी सांस्कृतिक असमानताएं हैं। वेदों के रचयिता आर्य भाषी समुदाय के लोग हमारे देश में तकरीबन पंद्रह सौ ईसा पूर्व के दौरान घोड़े पर सवार होकर आए थे। वह भारत के निवासी नहीं थे। उत्तर वैदिक काल में भारत में जो विज्ञान का विकास हुआ वह हमारे लिए गौरव का विषय है, ना कि वैदिक काल में जो विज्ञान का विकास हुआ। चिकित्सा, रसायन विज्ञान, खगोल शास्त्र, गणित आदि का मुख्य विकास 600 ईसा पूर्व से लेकर तकरीबन 1100 ईसवी के बीच में हुआ। 1100 से लेकर 1850 ईसवी तक भारत में विज्ञान का विकास एकदम रुक गया।

उसके बाद नवजागरण काल में राजा राममोहन राय और ईश्वर चंद्र विद्यासागर के चिंतन एवं दर्शन के आधार पर हमारे देश में फिर से वैज्ञानिक परंपरा विकसित हुई। उनके उदाहरण हम देखते हैं जेसी बोस, पी सी राय, सीवी रमन, मेघनाद साहा, सत्येंद्र नाथ बोस, रामानुजम आदि के कार्यों में। राजनेताओं के द्वारा जो दावा किया जा रहा है कि वेदों में आधुनिक विज्ञान सब कुछ है। इसका खंडन हमारे देश में पीसी राय एवं मेघना साहा ने पहले ही किया है। सभा को संबोधित करते हुए राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज मुजफ्फरपुर के प्रोफ़ेसर डॉ निखिल कुमार ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के द्वारा दिखाया कि प्राचीन काल में आर्यभट्ट ने जीरो का इस्तेमाल कर बड़ी से बड़ी संख्या लिखने की पद्धति दी थी।

उन्होंने आगे दिखाया कि अगर प्राचीन विज्ञान को समझना है तो तर्क- वितर्क, परीक्षन – निरीक्षण के आधार पर जो सत्य है, उसी को विज्ञान माना जा सकता है। उन्होंने आगे दिखाया कि प्राचीन वैज्ञानिक वराहमिहिर ने त्रिकोणमिति के साइन ,कॉस के विभिन्न मान की गणना किया था। और सूरज ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण कैसे होता है इसकी भी गणना उनके लेखों में पाए जाते हैं। सेमिनार की अध्यक्षता कर रहे प्रोफ़ेसर डॉ हरीश चंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि समाज में जो आज अंधविश्वास, रहस्य, जादू टोना, काली शक्तियों का रहस्य, भूत प्रेत आदि गहराई तक जड़ जमाए हुए हैं। इसके उन्मूलन का एक ही रास्ता है। सोच के तरीकों में बदलाव की जरूरत है।

जब तक सोच का ढंग नहीं बदलता, तब तक ओझा गुनी, सिद्ध बाबा, काली शक्तियों के प्रभाव को समाज से खत्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए विज्ञान आंदोलन की जरूरत है। तमाम विज्ञान प्रेमियों, प्रगतिशील लोगो को आगे आकर इस विज्ञान आंदोलन में अपना योगदान देने की जरूरत है। धन्यवाद ज्ञापन फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ रफीउल्लाह अंसारी ने किया ।कार्यक्रम में एनएसएस के कोऑर्डिनेटर डॉ मुकेश कुमार सरदार, डॉ रश्मि रेखा, डॉ श्वेता झा, डॉ ज्ञान प्रकाश,डॉ गंगादास ,डॉ नूतन ,डॉ शीला कुमारी, डॉ ओपी अंगिरा आदि की गरिमामय उपस्थिति थी। तो वही कार्यक्रम को सफल बनाने में ब्रेकथ्रू साइंस सोसायटी के सदस्य विकास कुमार, शिक्षक कृष्ण कुमार, संतोष कुमार, मनोज कुमार, अंकुश कुमार, चंदन कुमार आदि ने महती भूमिका निभाई।