State Desk : राजद के बागी विधायक सुधाकर सिंह ने एक बार मुख्यमंत्री पर निशाना साधा है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद के पुत्र और पूर्व मंत्री सुधाकर ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एक प्राइवेट बिल लाने की सूचना सभा सचिवालय को दी थी। लेकिन उस पर चर्चा नहीं हुई। इससे खफा सुधाकर ने मंगलवार को प्रेस कान्फ्रेंस किया।
सुधाकर ने कहा,कल दिनांक 19 दिसम्बर 2022 को समाप्त हुए बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान मैंने विधानसभा के पटल पर “कृषि उपज और पशुधन विपणन एवं मंडी स्थापना विधेयक” को एक गैर सरकारी विधेयक के तौर पर पेश किया था । उपरोक्त विधेयक को शीतकालीन सत्र में समयाभाव के वजह से प्रस्तुत नहीं किया गया, बावजूद इसके कि मैंने उस विधेयक को तय समय सीमा के पहले ही विधानसभा सचिव के कार्यालय में प्रस्तुत कर दिया था ।
विधानसभा के किसी सत्र में प्रस्तुत विधेयकों का उसी सत्र में बहस नहीं हो पाना चिंता का विषय है और इसकी प्रमुख वजह है बिहार विधानसभा में सुनियोजित तरीके से सीमित समय के लिए सत्र का आयोजन ताकि सरकार के मुखिया से किसी भी तरह का जटिल सवाल न किया जाये और किसी भी गंभीर मुद्दे पर बहस न हो। विधानसभा के सत्र के दौरान अगर हम लोग विधानसभा के कार्यवाही को देखें तो यह स्पष्ट हो जायेगा की विधानसभा विधानमंडल के सदस्यों को पूर्ण रूप से दरकिनार करके मुख्यमंत्री सरकार चला रहे हैं जिसमें किसी भी प्रकार की मतभेद या किसी मुद्दे पर अलग दृष्टिकोण की गुंजाईश नहीं है। चाहे विधानसभा के सदस्यगण सत्ता पक्ष के हों या प्रतिपक्ष के ।
विधानसभा सत्र के दौरान ऐसा कोई भी सवाल जो सरकार के कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाए या सरकार के कार्यशैली या निर्णयों पर जवाब मांगे उसे सुनियोजित तरीके से दरकिनार करते हुए अतारांकित और अस्वीकृत कर दिया जाता है ताकि विधायक कठिन सवाल न पूछे। यह कुछ उसी तरह प्रतीत होता है जैसे कमज़ोर विद्यार्थी परीक्षा में पूछे गए सवालों को out of syllabus कहने लगे।
इसके अलावा विधानसभा की कमिटियों की बैठकों को न तो समयबद्ध तरीके से आयोजित किया जा रहा है और न ही विधानसभा की कमिटियों की बैठकों की नोटिंग की जा रही है जिसकी वजह से किस कमिटी में किन मुद्दों पर चर्चा हुई और किन मुद्दों पर क्या निर्णय लिए गए इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। कमिटियों की बैठकों में नोटिंग नहीं होने की वजह से हज़ारों करोड़ की सरकारी योजनाओं और सरकारी फैसलों की मॉनिटरिंग नहीं हो रही है। इसी कारण से अधिकारीयों की विधायिका के प्रति जवाबदेही ख़त्म होती जा रही है और कार्यपालिका विधायिका पर हावी है जबकि संवैधानिक तौर पर कार्यपालिका विधायिका के अनुसार काम करती है।
वर्तमान में बिहार विधानसभा में पुरे साल में मात्र 30 दिनों का सत्र बुलाया जा रहा है और उसमें भी 75% समय बजट सत्र के लिए निर्धारित किया गया है जिसकी वजह से सामान्य कार्यवाही एवं विधायकों के निजी विधेयक, बहस, एवं सवाल-जवाब के लिए बिहार विधानसभा में समय न के बराबर आवंटित किया जा रहा है। बिहार विधानसभा में बहस और विधायकों के द्वारा गैर सरकारी विधेयकों को पेश करने के मामले में पुरे देश में सबसे निचले स्थान पर है। यह कार्यप्रणाली सुनियोजित तरीके से स्थापित की गई है ताकि सूबे के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, और डी. जी. पी से कोई भी विधान मंडल का सदस्य सवाल न करे ।
इस व्यवस्था को बदलने हेतु आगामी बजट सत्र के पहले बिहार विधानमंडल के सदस्यों के साथ वार्ता करके एक बड़ी मुहीम आयोजित की जाएगी। फिलहाल हमारी विधानसभा अध्यक्ष से पाँच प्रमुख मांग है :
- बिहार विधानसभा का सत्र साल में कम से कम 60 कार्यदिवस से कम ना हो, अगर शुरुआती प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय विधानसभा के कार्यकाल को देखे तो विधाई कार्यों के सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रत्येक वर्ष सत्र की अवधि क्रमश: 134, 168 एवं 124 दिनों तक चलने के साक्ष्य मिलेंगे।
- बिहार विधानसभा के सदस्यों के द्वारा पूछे गए सवालों का समयबद्ध तरीके से जवाब उपलब्ध कराया जाये एवं विधानसभा में सवाल पूछने एवं गैर सरकारी विधेयक पेश करने हेतु सत्र शुरू होने के पहले ही आवंटित दिन और समय की घोषणा कर दी जाये। अगर किसी कारण से सत्र बाधित होता है तो सत्र के समय का विस्तारीकरण किया जाये ।
- विधानसभा की सभी कमिटियों की बैठकों को सुनियोजित तरीके से आयोजित किया जाये और उपरोक्त कमेटियों की सभी बैठकों में नोटिंग लेते हुए उसे विधानसभा की वेबसाइट पर डाला जाये
- विधानसभा में पूछे गए सवालों का गलत जवाब देने पर सम्बंधित कमिटी के पास समयबद्ध तरीका से समीक्षा के लिए भेजा जाये एवं विधायकों को गलत जवाब देने वाले संबंधित विभाग के पदाधिकारियों पर त्वरित कार्रवाई का प्रावधान किया जाए।
- बिहार विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली के नियम 19 के तहत उल्लेखित प्रत्येक शुक्रवार का दिन गैर सरकारी सदस्यों के लिए निर्धारित है जो लंबे समय से इस नियम का अनुपालन बंद पड़ा हुआ है। जिसको पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है ताकि बिहार विधानमंडल के सदस्य कार्यपालिका को सही दिशा प्रदान कर सके।