Rabindra Nath Bhaiya: लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 68 साल पहले ग्राम निर्माण मंडल, सेखोदेवरा बनाकर वनवासियों की जिंदगी में उम्मीद की किरण जगाई थी। भूदान से मिली जमीन पर 10 गांव बसाये। आश्रम में वर्षों तक यहीं रहे। 2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आश्रम में जेपी की प्रतिमा का अनावरण किया। आजादी का अमृत काल चल रहा है, लेकिन जयप्रभा नगर, कस्तूरबा नगर और गांधीधाम गांवों का जनजीवन आदिम युग में है।
कोलवा पहाड़ी की तलहटी में बसा जयप्रभानगर, यहां का हर नौजवान बाहर
कोलवा पहाड़ी की तलहटी में है जयप्रभानगर गांव:- कौआकोल से मात्र 5 किमी दूर है। जेपी और उनकी पत्नी प्रभावती जी के नाम पर। गांव आना अब आसान हुआ है। जर्जर ही सही मगर सड़क है। प्राइमरी स्कूल भी है। आगे की पढ़ाई कौआकोल में संभव है। पहले मिट्टी के घर थे, अब अर्धनिर्मित पक्के मकान हैं। सरकारी योजना से बने हैं। गांव की शांति देवी बताती हैं–सिर्फ एक लड़का राहुल है, जो मैट्रिक पास है, पर यहां नहीं है। रोजगार के लिए गुजरात के सूरत में रहता है। रोजगार की बड़ी समस्या है। अधिसंख्य लोग काम की तलाश में बाहर हैं।
सवाल जेपी के सपने का क्या हुआ?
-गावों में घर हैं, पर खिड़की नहीं
-स्कूल हैं, पर पढ़नेवाले ही नहीं
-मजदूर हैं, लेकिन रोजगार नहीं
वनवासियों का जीवन बदले, इसलिए बसाए थे गांव:-
5 मई, 1954 को जेपी ने सेखोदेवरा में ग्राम निर्माण मंडल की स्थापना की थी। आसपास के जंगल में रहनेवाले लोगों के जीवन में खुशहाली के लिए कई रचनात्मक कदम उठाए थे। आदिवासी और दलित समाज के लोगों को 10 गांवों में बसाया गया था। जयप्रभानगर, गांधी धाम, कस्तूरबा नगर, झरनवा, रानीगदर, गायघाट, करमाटांड, मच्छंदरा, झिलार समेत दस गांव थे। तीन गांव महापुरूषों के नाम पर हैं।
जब गांव बसे तो वाशिंदों को मिलीं ये सुविधाएं :-
1 हर परिवार को मिट़टी का घर बनाकर दिया गया था।
2 आजीविका के लिए दो-चार एकड़ तक जमीन दी गई थी।
3 खेती के लिए दो परिवारों के बीच एक बैल या भैंसा दिया।
4 सिंचाई के लिए कुआं खोद कर दिया गया था
और आज…कुआं सूखा, सिंचाई बंद, जमीन बंजर, पलायन मजबूरी.