Brahmanand Thakur : हिंदी और बज्जिका के सम्मानित साहित्यकार डॉ अवधेश्वर अरुण का देहावसान कल 26 जनवरी वसंत पंचमी के दिन में 1.30 बजे पड़ाव पोखर रोड, आमगोला स्थित उनके आवास पर 85 वर्ष की उम्र में हो गयाI अंतिम संस्कार आज कोनहारा घाट, हाजीपुर में किया गयाI मुखाग्नि उनके बड़े पुत्र डॉ. रणवीर कुमार राजन ने दीI वे अपने पीछे पांच पुत्र, पत्नी, पौत्र – पौत्री एवं प्रपौत्र से भरा पूरा परिवार छोड़ गयेI अंतिम दर्शन हेतु सुबह 8 बजे मुजफ्फरपुर से जन्मभूमि बिठौली, वैशाली उन्हें लाया गया, जहां ग्रामीणों ने उनके अंतिम दर्शन कियेI बज्जिका रामायण के यशस्वी महाकवि डॉ अरुण ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में दर्जनों पुस्तकों का सृजन किया। सैकड़ों आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। गीत हनुमान, गीत शारदा, ऋतु आए ऋतु जाए, जय वैशाली, संघर्ष की गोदी में जैसी कृतियां खूब चर्चित हुईं।
उनके बड़े पुत्र डॉ. रणवीर कुमार राजन ने मुखाग्नि दी, पुत्र डॉ. धनंजय कुमार सिंह, डॉ. यशवंत कुमार सिंह, हंस कुमार, परिमल सिंह, पौत्र कुमार आदित्य, शरद कुमार, कुमार सम्वर्त, विवेक वैभव, नचिकेत नमन, रजत सिंह, भतीजा डॉ. मनोज कुमार सिंह, अनुज चन्द्र मोहन सिंह एवं ग्रामीण के तथा सगे संबंधियों के साथ ही मौके पर डॉ. शशि, डॉ. राम प्रवेश सिंह, वेद प्रकाश, संदीप कमल, राकेश पटेल, दिग्विजय सिंह, सत्येंद्र सिंह, सुधाकर प्रसाद सिंह, सुनील कुमार सिंह, सुरेंद्र प्रसाद सिंह, अनिल कुमार सिंह, विक्रम प्रताप सिंह, नीरज, उदय सिंह, अखिलेश सिंह, रंजय सिंह, मंजय सिंह, सहित सैकड़ों चाहने वाले अंतिम संस्कार में सम्मिलित हुए।
शोक व्यक्त करते हुए डॉक्टर अरुण के सहकर्मी प्राध्यापक व साहित्यकार डॉ महेंद्र मधुकर ने कहा कि हम लोगों का 40 वर्षों से ज्यादा का संग साथ था जो प्रत्यक्ष रूप से अब टूट गया मगर डॉ अरुण के साथ बिताए हुए समय पूरी जीवंतता के साथ मेरी स्मृति में सदा रहेंगे। डॉ संजय पंकज ने कहा कि डॉक्टर अरुण छात्र प्रिय विद्वान प्राध्यापक थे। उनका व्यक्तित्व बड़ा सहज, स्वभाव सरल और ज्ञान गंभीर था। साहित्य की विभिन्न विधाओं में निरंतर लिखते हुए उन्होंने कई रचनाकार पीढ़ियों का भी निर्माण किया। यह केवल संयोग नहीं है कि अध्यात्मिक चेतना से संपन्न डॉ अरुण का जन्म विजयादशमी के परिप्रेक्ष्य में नवमी तिथि को तथा देहावसान सरस्वती पूजा के दिन हुआ।
उन्होंने सरस्वती की वंदना में ढाई सौ से ज्यादा गीतों का सृजन किया जो गीत शारदा में संकलित हैं। डॉ अरुण की शब्द साधना जो अक्षर रूप में हमारे सामने है वह प्रेरक और अनुकरणीय है। उनकी अक्षर काया सदा जीवित रहेगी। आलोचक डॉक्टर रामप्रवेश सिंह ने कहा कि मुझे जब भी लोक के बारे में जानना पड़ता था तो मैं अरुण जी के पास दौड़ा हुआ आता था। डॉ इंदु सिन्हा ने कहा के अरुण जी बड़े शब्द शास्त्री और भाषाविद् थे। डॉ विजय शंकर मिश्र ने कहा कि बज्जिका रामायण एक कालजई कृति है जिसके लिए अरुण बाबू हमेशा याद किए जाएंगे। कवि कुमार राहुल ने कहा के अरुण जी के पास जाने पर कभी यह एहसास नहीं हुआ कि हम एक विशाल ज्ञानवृक्ष के पास हैं। वे बड़े मृदुभाषी और उदार थे।
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