भाकपा का महाधिवेशन: आजादी, बराबरी, सम्मान और सामाजिक न्याय के लिए लड़ना बिहार की है पहचान-कुणाल
State Desk/Hemant Kumar: भाकपा -माले के राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि आजादी, बराबरी, भाईचारा व सामाजिक न्याय – इन तमाम लोकतांत्रिक मूल्यों को हासिल करने का संघर्ष बिहार की पहचान है। कुणाल माले 11 वें महाधिवेशन में स्वागत भाषण कर रहे थे। पांच दिनों तक चलने वाला महाधिवेशन राजधानी के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में गुरुवार को शुरू हुआ। उन्होंने कहा, देश के लिए हर तरह से भयानक आपदा साबित हो रही भाजपा सरकार से फौरन निजात पाना और उसकी विचारधारा को राज व समाज दोनों ही जगहों से बेदखल करना – देश के समक्ष मौजूद सर्वप्रमुख चुनौती है और यही हमारे इस 11वें महाधिवेशन का मुख्य एजेंडा भी है. कल ही 15 फरवरी 2023 को गांधी मैदान, पटना में आयोजित ‘लोकतंत्र बचाओ – देश बचाओ महारैली ने फासीवाद के खिलाफ संघर्ष की मजबूत आवाज बुलंद की है. बिहार ने विगत दिनों महागठबंधन के नए माॅडल को सामने लाकर और भाजपा को राज्य की सत्ता से बाहर कर पूरे देश को एक नया रास्ता भी दिखाया है और हम यह उम्मीद करते हैं कि पूरा देश आनेवाले दिनों में इसी रास्ते पर आगे बढ़ेगा.
कुणाल ने कहा, चर्चित पत्रकार, समाज अध्येता और हमारे साथी का. अरविंद एन. दास ने बिहार को ‘भारत की हृदय स्थली’ के रूप में पहचाना था. इसी बिहार में आयोजित हो रहे भाकपा-माले के ऐतिहासिक 11वें राष्ट्रीय सम्मेलन में, मैं आप सब का पड़ोसी देशों व देश के अन्य राज्यों से आए बिरादाराना पार्टियों व संगठनों के सम्मानित अतिथियों, देश के कोने-कोने से आए अपनी पार्टी के प्रतिनिधि व पर्यवेक्षक साथियों तथा हमें सहयोग व एकजुटता का संदेश देने हेतु इस सभागार में पहुंचे नागरिकों व प्रेस प्रतिनिधियों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं. मेरी ओर से आप सबको लाल सलाम! उन्होंने कहा, अपनी उर्वरता, साहस व संकल्प की वजह से बिहार हमेशा ही देश के इतिहास में नए पन्ने जोड़ता रहा है. इन पन्नों में दलितों, पिछड़ों व आदिवासियों व मुसलमानों की भी प्रमुखता से पहचान है और हिन्दु, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, सिख और इसाई आदि समेत विविध धर्मों व पंथों को माननेवाले लोगों की विशिष्ट छाप भी अंकित है. इसने हमेशा ही अनुदार दार्शनिक प्रवृतियों व धर्म सत्ताओं के खिलाफ विद्रोह को जमीन दी है.
इसने बौद्ध, जैन, आजीवक और अन्य अनिश्वरवादी धराओं को जन्म दिया है, सिख धर्म को परवरिश दी है तथा सूफी मत और कबीर पंथ को आश्रय दिया है. भाषा-बोलियों, खान-पान और रहन-सहन की विविधताओं समेत आज का बिहार आदिकालीन लोकतंत्र – लिच्छवी गणराज्य – का भी जन्मस्थान है. माले सचिव ने कहा-आजादी, बराबरी, भाईचारा व सामाजिक न्याय – इन तमाम लोकतांत्रिक मूल्यों को हासिल करने का संघर्ष और हर तरह के शोषण, लूट व दमन का तीखा प्रतिकार बिहार की पुरानी पहचान है. मौर्य, गुप्त व मुगल साम्राज्यों के उत्थान-पतन भी इसकी ही पुष्टि करता है. आगे चलकर अंग्रेजी सेना के साथ हुए अनेक युद्धों (चैसा व बक्सर की लड़ाई) और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ होनेवाले अनगिनत विद्रोहों (संथाल-हूल विद्रोह) ने इसी परंपरा को नई उंचाई दी. 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जिसमें वीर कुंवर सिंह के साथ पीर अली और जवाहिर रजवार का नाम भी प्रमुख नायकों में दर्ज है, बिहार के इतिहास का सुनहरा पन्ना है.
उन्होंने कहा, महात्मा गांधी भी जब दक्षिण अफ्रीका से भारत आए, बिहार के चंपारण पहुंचे और वहां नीलहों के खिलाफ किसानों के जुझारू आंदोलन का नेतृत्व करने के दौरान ही उनको राष्ट्रीय पहचान मिली. ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष की तमाम धाराओं – महात्मा गांधी के सत्याग्रह से लेकर शहीदे आजम भगत सिंह के इंकलाब तक का बहुरंगी स्पेक्ट्रम बना बिहार और सोशलिस्टों तथा स्वामी सहजानंद जैसे किसान आंदोलनकारियों ने भी अपने अलग रंग भरे. माले नेता ने कहा, देश की आजादी को लेकर शहीदे आजम भगत सिंह ने जो चेतावनी दी कि यह कहीं ‘गोरे साहबों की जगह भूरे साहबों’ का राज न बन जाए, सबसे पहले बिहार ने ही समझा और कांग्रेसी कुशासन के खिलाफ 60 के दशक के उतरार्द्ध में गैर-कांग्रेसी सरकार अस्तित्व में आई.
और लगभग उसी समय जब पड़ोसी बंगाल के नक्सलबाड़ी में हमारी पार्टी के संस्थापक महासचिव का. चारु मजुमदार के नेतृत्व में ‘वसंत का वज्रनाद’ गूंज उठा तो बिहार ने उसका बढ़-चढ़कर स्वागत किया – मुंगेर और मुजफ्फरपुर का मुसहरी होत हुए ‘नक्सलबाड़ी की चिंगारी’ बिहार पहुंची और ’70 के दशक में भोजपुर और पटना में इसने ‘दावानल’ का रूप ले लिया. इतिहास ने यहां एक खतरनाक मोड़ लिया और देश को पहली बार आपातकाल के रूप में ‘इंदिरा तानाशाही’ का सामना करना पड़ा. बिहार ने ’74 आंदोलन के रूप में इसका जोरदार प्रत्युत्तर दिया. बिहार की सड़कों पर जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र-युवाओं का हुजूम उमड़ पड़ा तो वहीं दूसरी ओर हमारी पार्टी की अगुआई में बिहार के ‘खेतों व खलिहानों में, टोलों व गलियों में, यातनागृहों व जेल की कोठरियों में हमारे बहादुर साथियों ने अपना बेशकीमती खून बहाया’ और यहां तक कि हमारी पार्टी के दूसरे महासचिव का. सुब्रत दत्त (जौहर) ने भी भोजपुर जिले के एक गांव में उनके खून की प्यासी पुलिस की गोलियों से अपनी शहादत दी. ऐसी सर्वोच्च शहादत जो बिहार को हमेशा गौरवान्वित करती रहेगी.
उन्होंने कहा, 80-90 के दशक में भी बराबरी, सम्मानपूर्ण जीवन व हक-अधिकार जिसमें मतदान का अधिकार भी प्रमुखता से शामिल है, को हासिल करने की खातिर अपने प्राण बलिदान करनेवाले हमारे सैकड़ों साथियों व समर्थकों -जो घोर रणवीर सेना की बजबजाती सामंती-सांप्रदायिक हिंसा के शिकार हुए और साथ ही, कामरेड चंद्रशेखर जो देश के सर्वोच्च शैक्षणिक संस्थानों में से एक – जेएनयू से निकलकर आए और सीवान शहर के एक चैराहे पर ‘अपराध की सत्ता’ को चुनौती देते हुए शहीद हुए – को देश का लोकतांत्रिक मानस भला कैसे भूल सकता है? आज देश के सामने, अतीत के तमाम बड़े खतरों से भी कई गुना बड़ा खतरा – सांप्रदायिक फासीवाद का खतरा मौजूद है. संघ-भाजपा ने बाबरी मस्जिद से ध्वंस का जो सिलसिला शुरू किया था, आज वह देश के संविधान और लोकतंत्र के ध्वंस तक आ पहुंचा है. मोदी सरकार का पहला कार्यकाल अगर चेतावनी था तो दूसरा इसका चरम साबित हो रहा है. बेलगाम कारपोरेट लूट, सांप्रदायिक उन्माद व उत्पात की राजनीति, मनुवादी सामाजिक संहिताओं पर आधारित उद्दंड सामाजिक आचरण, जन अधिकारों का खुला हनन और जन प्रतिरोध का निर्मम दमन, आदि, आदि.
उन्होंने कहा, देश के लिए हर तरह से भयानक आपदा साबित हो रही भाजपा सरकार से फौरन निजात पाना और उसकी विचारधारा को राज व समाज दोनों ही जगहों से बेदखल करना – देश के समक्ष मौजूद सर्वप्रमुख चुनौती है और यही हमारे इस 11वें महाधिवेशन का मुख्य एजेंडा भी है. कल ही 15 फरवरी 2023 को गांधी मैदान, पटना में आयोजित ‘लोकतंत्र बचाओ – देश बचाओ महारैली ने फासीवाद के खिलाफ संघर्ष की मजबूत आवाज बुलंद की है. बिहार ने विगत दिनों महागठबंधन के नए माॅडल को सामने लाकर और भाजपा को राज्य की सत्ता से बाहर कर पूरे देश को एक नया रास्ता भी दिखाया है और हम यह उम्मीद करते हैं कि पूरा देश आनेवाले दिनों में इसी रास्ते पर आगे बढ़ेगा.
पुनः एक बार, इस महाधिवेशन के उद्घाटन के मौके पर यहां पधारे आप तमाम लोगों का स्वागत करते हुए और इसके लिए आभार व्यक्त करते हुए मैं फिर से यह विश्वास दिलाना चाहूंगा कि फासीवाद के खिलापफ दुर्घष संघर्ष के इस मोर्चे पर भी बिहार अपनी पूरी ताकत के साथ खड़ा होगा, हम हर कुर्बानी देंगे, अपने खून की आखिरी बूंद तक इस जंग को लड़ेंगे और यकीनन जीत भी हासिल करेंगे.