State Desk, Patna : भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि जैसे-जैसे फासीवादी मोदी सरकार की सभी मोर्चों पर घोर विफलता और विश्वासघात उजागर हो रहा है, वैसे-वैसे वह अधिक से अधिक झूठ बोलने और डराने-धमकाने का सहारा ले रही है। दीपंकर गुरुवार को भाकपा माले के 11वें महाधिवेशन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। माले महासचिव ने इस मौके पर राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय हालात की भी चर्चा की।
उन्होंने कहा, सरकार ने पहले बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी को भारत के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने से रोकने के लिए अपनी आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल किया। फिर दिल्ली और मुंबई में बीबीसी कार्यालयों पर आयकर विभाग ने छापे मारे। हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अडानी समूह पर शेयर बाजार में हेरफेर, अकाउन्ट में धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया जिससे अदानी के शेयरों की कीमतों में अभूतपूर्व गिरावट आई। इससे अडानी की कुल संपत्ति में भारी गिरावट आई और वह दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में तीसरे स्थान से खिसककर बीसवें स्थान से भी नीचे पहुंच गया। मोदी सरकार की चुप्पी, जांच कराने से इंकार और भारत की नियामक प्रणाली की विफलता और मोदी और अडानी की सांठगांठ का ही नतीजा है।
माले महासचिव ने कहा, संसद में मोदी ने अडानी के सवाल पर जवाब देने से परहेज किया।लोगों इस नाम पर चुप रहने को कहा जा रहा है कि सरकार कथित तौर पर गरीबों को सस्ता भोजन, सब्सिडी वाला गैस सिलेंडर, पक्का घर जैसी खैरात दे रही है। बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी को एक औपनिवेशिक साजिश के रूप में पेश किया गया और अडानी के बारे में हुए खुलासे को भारत पर हमले के रूप में पेश किया गया। भाजपा यह सब राष्ट्रवाद के नाम पर कर रही है जबकि असलियत में वह राष्ट्रवाद का मखौल बना रही है।
उन्होंने कहा, ऑक्सफैम की नयी रिपोर्ट ने एक बार फिर से भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता की ओर ध्यान आकर्षित किया है। इस असमानता को कम करने के लिए अरबपतियों पर संपत्ति और विरासत करों की शुरुआत की जानी चाहिए। लेकिन सरकार ने बिल्कुल उल्टा कदम उठाते हुए इस साल के बजट में मनरेगा, सामाजिक सुरक्षा और अन्य सार्वजनिक सेवा व कल्याणकारी खर्च के लिए बजटीय प्रावधान को कम कर दिया और अरबपतियों के लिए कर में और भी कटौती की घोषणा कर दी।
उन्होंने कहा, जहां आम लोगों की बिगड़ती जीवन स्थितियों और आर्थिक मोर्चे पर सरकार की भारी विफलता के खिलाफ जनता का गुस्सा बढ़ रहा है। लेकिन मोदी सरकार लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है और सामाजिक और आर्थिक संकट का इस्तेमाल अंधराष्ट्रवादी फासीवादी उन्माद फैलाने के लिए करना चाहती है। मुसलमानों को एक समुदाय के रूप में निशाना बनाने, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों और सभी असहमति की आवाजों और न्याय व परिवर्तन के लिए लड़ने वाले सामाजिक समूहों को राष्ट्र-विरोधी बताकर घृणा व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करने की कोशिश कर रही है। सब के लिए घर, बिजली, शौचालय और पानी मुहैया कराने के झूठे वादों की जगह अब बुल्डोजर से लोगों के घरों को ढहाया जा रहा है। नफरती और छद्म आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा तथाकथित धार्मिक सभाओं के मंचों से खुले तौर पर जनसंहार के आह्वान किए जा रहे हैं।
माले महासचिव ने कहा, संवैधानिक शासन के सभी संस्थानों को नष्ट किया जा रहा है। कार्यपालिका खुले तौर पर विधायिका और न्यायपालिका के मामलों में हस्तक्षेप कर रही है। राज्यपालों के कार्यालयों, केन्द्र द्वारा नियुक्त संस्थाओं के प्रमुखों और केन्द्रीय जांच एजेंसियों को नियंत्रण के उपकरणों में बदल देने के जरिये केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को महिमामंडित नगरपालिकाओं में बदल देने की कोशिश की है। नागरिकता कानूनों, आरक्षण नीतियों में बदलाव और लोगों के विभिन्न वर्गों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों, श्रमिक वर्ग, किसानों, छोटे व्यापारियों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और युवाओं के मौजूदा अधिकारों के क्षरण के साथ संविधान को ही खोखला और भीतर से कमजोर किया जा रहा है। जैसा कि केंद्रीय गृह मंत्री ने घोषणा की है लोकतंत्र और विविधता पर यह हमला 2023 में भारत के जी20 की अध्यक्षता ग्रहण करने से लेकर 1 जनवरी, 2024 को निर्धारित राम मंदिर के उद्घाटन के जश्न तक ढोल-नगाड़ों के साथ जारी रहेगा।
उन्होंने कहा, इस बढ़ते फासीवादी उन्माद और आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए, हमें भारत भर में जुझारू लोगों की एकजुटता को मजबूत करने की जरूरत है। कोविड-19 महामारी से पहले नागरिकता आंदोलन और कोविड काल की कठोर परिस्थितियों को धता बताते हुए और मोदी सरकार को विनाशकारी कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए मजबूर करने वाले किसान आंदोलन में जिस तरह की एकता और उत्साह को हमने देखा था उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। बेदखली, निजीकरण और सांप्रदायिक, जातिगत और पितृसत्तात्मक हिंसा के खिलाफ कई शक्तिशाली संघर्षों का निर्माण, और भोजन, आवास, शिक्षा और रोजगार, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के सार्वभौमिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए नये ऊर्जावान आंदोलन खड़े करने की जरूरत है। फासीवाद को हराने, संविधान को बचाने और भारत के लोगों के लिए एक प्रगतिशील और समृद्ध भविष्य बनाने की लोकप्रिय राजनीतिक इच्छाशक्ति की नींव पर ही जनता की देशव्यापी एकजुटता विकसित और सफल हो सकती है।
उन्होंने कहा, हम सभी वामपंथियों को इस लोकप्रिय एकजुटता को कायम करने और एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक संघीय भारत के एजेंडे को आगे बढ़ाने में केंद्रीय भूमिका निभानी होगी। 2023 के हमारे प्रयास 2024 में लोकतंत्र की निर्णायक जीत का मार्ग प्रशस्त करेंगे। हमें फासीवाद को हराने और लोकतंत्र की लड़ाई जीतने के लिए सभी वामपंथी ताकतों और व्यापक विपक्ष के बीच घनिष्ठ एकता और सहयोग की आवश्यकता है और हमें विश्वास है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ सकेंगे।
हमारी 11वीं कांग्रेस फासीवाद के खिलाफ संघर्ष लिए पूरी तरह से समर्पित है। राजनीतिक प्रस्ताव और संगठनात्मक रिपोर्ट पर विचार-विमर्श के अलावा, हमारी 11वीं कांग्रेस के एजेंडे में दो अन्य विशिष्ट प्रस्ताव भी शामिल हैं- एक, फासीवाद-विरोधी प्रतिरोध की दिशा, परिप्रेक्ष्य और हमारे कार्यभार और दूसरा, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु न्याय प्रश्न पर। हम तहेदिल से भारतीय वामपंथी आंदोलन में अपने सभी साथियों और वैश्विक प्रगतिशील खेमे को आपके समर्थन और एकजुटता के लिए धन्यवाद देते हैं और उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में यह एकजुटता और सहयोग और भी घनिष्ठ होगा। फासिस्ट भारत की राज्य सत्ता से ही नहीं बल्कि दुनियाभर में दक्षिणपंथी ताकतों के उभार से भी अपनी ताकत हासिल कर रहे हैं।
वे भारत की सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और राजनीतिक इतिहास के सभी प्रतिगामी पहलुओं से अपनी जीवनीशक्ति पा रहे हैं। हमें इस फासीवादी मंसूबे को विफल करने के लिए भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रगतिशील विरासत और साम्राज्यवाद-विरोधी और फासीवाद-विरोध की परंपरा से ताकत हासिल करते हुए अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के लिए बड़े संघर्षों के निर्माण की जरूरत है। हमें विश्वास है कि आपके सहयोग से 11वां महाधिवेशन इस यात्रा को आगे बढ़ायेगा। दुनिया की प्रगतिशील ताकतों को मजबूत करो! आइए हम संघर्ष के लिए एकजुट हों और अपनी जीत होने तक लड़ें।