नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) थैला में कार्यालय और गौशाला में विद्यालय, बेहतर शिक्षा को तरस रहे बच्चे। ठंड हो या गर्मी या फिर बरसात का माैसम। बगैर भवन वाले स्कूलों के बच्चों व शिक्षकों के लिए कुछ ज्यादा ही परेशानी है। ऐसे विद्यालयों के छात्र या तो कहीं झोपड़ी में पढ़ते हैं या फिर किसी पेड़ या बांस की झाड़ी के नीचे। यह हाल है जिले के पकरीबरावां प्रखंड बुधौली पंचायत की तरहरा गांव का। यहां सरकारी स्कूल के बच्चे गौशाला में पढ़ने को मजबूर हैं। विद्यालय का भवन नहीं होने से स्कूली बच्चे कभी पेड़ तो कभी खेत-खलिहान में पढ़ने को मजबूर हैं। विद्यालय का सरल व शाब्दिक अर्थ है विद्या का घर। पर क्या हो, अगर विद्यालय का अपना भवन ही न हो।
भले ही सरकार ने सभी बच्चों को शिक्षा दिलाने के वास्ते जगह-जगह नया प्राथमिक विद्यालय खोलकर शिक्षकों की नियुक्ति कर दी है, लेकिन भवन के अभाव में इस विद्यालय के बच्चों को समुचित शिक्षा नहीं मिल पा रही है। नौनिहालों को मिलने वाली शैक्षणिक सुविधाओं से जब रूबरू हुआ तो आश्चर्यजनक बातें सामने आई। पड़ताल में प्रधान शिक्षिका रिया राय ने बताया कि 116 बच्चों में यहां कुल आठ शिक्षक हैं, जिसमें से 70 बच्चे एवं पांच शिक्षक उपस्थित हैं। वर्ग पांच में पढ़ रहे छात्र अमीत कुमार ने बताया कि उसे बेहतर पढ़ाई की इच्छा है। उसके शिक्षक नियमित रूप से पढ़ाने के लिए नहीं आते हैं। स्कूल भी नहीं बना है। दिक्कत होती है।
वैसे प्रखंड में लगभग दो दर्जन प्राथमिक विद्यालय भवन विहीन हैं। बगैर भवन वाले स्कूलों के बच्चों व शिक्षकों के लिए कुछ ज्यादा ही परेशानी है। जिन पर इन सबकी जवाबदेही है, वह तत्परता नहीं दिखाते। ऐसे विद्यालयों के छात्र या तो कहीं झोपड़ी में पढ़ते हैं या फिर किसी पेड़ या बांस की झाड़ी के नीचे। ऐसे विद्यालयों में बच्चों को मिलने वाली कई प्रकार की सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं। इन स्कूलों को शिक्षक अपनी मर्जी से चलाते हैं। पकरीबरावां प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय तरहरा, नवसृजित प्राथामिक विद्यालय जलपार, प्राथमिक विद्यालय लक्ष्मीपुर बरेवा, प्राथमिक विद्यालय मोहम्दपुर, प्राथमिक विद्यालय छोटी तालाब, प्राथमिक विद्यालय भूरहा, प्राथमिक विद्यालय सलेमपुर सहित कई पंचायतों में ऐसे नवसृजित विद्यालय हैं, जो वर्षों से भवन की आस में टकटकी लगाए हैं।
उक्त विद्यालयों को जमीन उपलब्ध है पर सरकार के द्वारा आवंटन नहीं होने से छात्रों के पठन-पाठन पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। नहीं है शौचालय व पेयजल की सुविधा:-
संचालित स्कूल परिसर में शौचालय नहीं होने से कार्यरत शिक्षकों खासकर महिला शिक्षक व छात्राओं को काफी परेशानी होती है। महिला शिक्षक व छात्राएं शौच क्रिया से निवृत्त होने के लिए इधर-उधर जगह तलाशते हैं। पेयजल की भी समस्या आती है।
कहते हैं अभिभावक:-
विद्यालयों में जब तक भवन की व्यवस्था नहीं होगी, तब तक शिक्षा का लाभ छात्रों को नहीं मिल पाएगा। उक्त विद्यालयों में शिक्षक कभी-कभी आते हैं, कभी नहीं भी आते हैं। शिक्षा के नाम पर ग्रामीण क्षेत्रों में महज खानापूर्ति हो रही है। -बबलू कुमार, अभिभावक ऐसे में छात्रों के पठन-पाठन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। खास यह बात है कि जब भवन ही नहीं है, तो पढ़ाई कैसी होगी। इन विद्यालयों में भोजन वितरण में भी दिक्कतें होती हैं।
-तेतरी देवी, रसोइया, तरहरा विद्यालय
धूप, सर्दी, बारिश हर मौसम में दिक्कत होती है। मध्याह्न भोजन भी नहीं बन पाता है। हम सब गांव के बच्चों के लिए बेहतर स्कूल व सुविधाएं मिलनी चाहिए।
–अमीत कुमार, छात्र, तरहरा विद्यालय
कहते हैं अधिकारी:-
भवन विहीन विद्यालयों के लिए सरकार से आंवटन नहीं मिलने के कारण भवन नहीं बन पा रहा है। जहां जमीन नहीं है, वहां जमीन की व्यवस्था करने का प्रयास किया जा रहा है। उक्त विद्यालयों में छात्रों का भविष्य निर्माण के लिए विभाग को भवन निर्माण के लिए लिखा जाएगा।
-प्रमोद कुमार झा, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी पकरीबरावां: