कविता और प्रकृति जीवन संजीवनी होती है: संजय पंकज

मुजफ्फरपुर

विश्व कविता दिवस पर आयोजित हुआ संवाद

Befoteprint/Brahmanand Thakur “फूल पत्तों और वृक्ष लताओं की हरियाली के बीच अपने श्रेष्ठ पूर्वज कवि दिनकर जी के स्नेह सानिध्य में बैठकर प्रकृति और कविता पर संवाद करना स्वयं को प्राणवान बनाना है। प्रकृति और कविता दोनों जीवन-संजीवनी है। दोनों को बचाए रखना मनुष्य का नैतिक और सांस्कृतिक कर्तव्य है।” यह बातें विश्व कविता दिवस और विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर लंगट सिंह कॉलेज के दिनकर पार्क में दिनकर जी की प्रतिमा के पास संवाद करते हुए बिहार दिवस की पूर्व संध्या पर बेला पत्रिका के संपादक कवि डॉ संजय पंकज ने कही।

डॉ पंकज ने पेड़ लगाने का आह्वान करते हुए आगे कहा कि हरियाली जीवन की ऊष्मा और नमी को संतुलित रखती है तो कविता जागृत आत्मा का संवेदन राग है। कविता दिल से दिल का संवाद करती मनोभूमि को निष्कलुष और पवित्र बनाती है। मनुष्यता की शाश्वत भाषा होती है कविता। कविता की सार्थकता सार्वभौम सत्य के निदर्शन में है। कवि होना ब्रह्मांड और प्रकृति का सहचर होना होता है, संवेदना का असीम और अनंत प्रवाह होना होता है। कवि रागत्व का संपूर्ण संबोधन है।

संजय पंकज ने अपने गीत की पंक्तियों में प्रकृति और कविता को एकात्मक करते हुए सुनाया – मृदुल धरा पर पांव टिकाकर नील गगन से बतियाना, लयलीन हवाओं को पीकर चिड़ियों के सुर में गाना। सृजन गवाक्ष के संपादक तथा कवि डॉ विजय शंकर मिश्र ने सुमधुर कंठ से – हम तो कवि हैं सच्चे मन से कविता करने वाले हैं, मरघट में भी मधुवन जैसे जीवन लिखने वाले हैं – गीत सुनाया और कहा कि कविता जीवन और समाज के लिए एक अनिवार्य विधा है।

संसार की तमाम भाषाओं में कविता लिखी जाती रही है। कवियों की दुनिया एक अलग दुनिया होती है जिसमें जड़ और चेतन सबको स्वीकार करने की विरल आत्मीयता है। युवा कवि श्यामल श्रीवास्तव ने स्त्री संचेतना को कविता में उजागर करते हुए कहा – स्त्रियां बदल रही हैं, बदल रहा है उनकी बातों का कैनवास, बालों का विन्यास, स्त्रियों की मुस्कुराहट हंसी के और आगे, ठहाकों में तब्दील हो रही है।

इससे पूर्व अविनाश तिरंगा उर्फ ऑक्सीजन बाबा ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि हम गौरवशाली बिहार के वासी हैं। यहीं से आदिकवि वाल्मीकि के कंठ से कविता का पहला स्वर फूटा था। समाजसेवी मुकेश त्रिपाठी, पत्रकार प्रेमभूषण, डॉ रजनीश कुमार, गौरव कुमार, प्रणव चौधरी, ब्रजभूषण शर्मा, चैतन्य चेतन और अनुराग आनंद ने भी अपने भावों को प्रकट किया। इस अवसर पर दिनकर जी की गई कविताओं का प्रभावशाली पाठ प्रस्तुत किया गया।