- सूर्यषष्ठी (छठ) व्रत से समस्त मनोकामनाओं की प्राप्ति सम्भव
मोतिहारी/राजन द्विवेदी। चैत्र नवरात्र के बीच सूर्य षष्ठी व्रत की तैयारी जिले में लगभग पूरी हो गई है। नदी, तालाब एवं झील किनारे छठ घाट बनाए गए हैं। जिसकी सुबह से लोग साफ, सफाई में जुटे हैं। वहीं आज संध्या में व्रती रसियाव रोटी के साथ खरना पूर्व को पूरा करेंगे। जबकि कल संध्या में अस्ताचलगामी सूर्य को व्रती पहला अर्घ्य देंगे।
बिहार की पावन धरती से निकलकर भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में फैले लोक आस्था का महान पर्व चतुर्दिवसीय सूर्यषष्ठी (चैती छठ) व्रत के तीसरे दिन आज व्रती पूजनोपरांत सायंकाल 06 बजकर 05 मिनट पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे।
व्रत के संबंध में महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने बताया कि कल अर्थात् मंगलवार को प्रातःकाल सूर्योदय समय 05 बजकर 55 मिनट पर उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस चार दिवसीय अनुष्ठान का विधिवत समापन हो जाएगा। उन्होंने बताया कि स्कन्दपुराण के अनुसार सूर्यषष्ठी (छठ) प्रमुख रूप से भगवान सूर्य का व्रत है। सूर्य भगवान के साथ-साथ इसमें षष्ठी (छठी) माता की प्रतिमा बनाकर उनका पूजन किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि पंचमी के सायंकाल से ही घर में छठी माता का आगमन हो जाता है। इस व्रत में अस्तगामी एवं उदयगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और पूजन किया जाता है। छठ पूजा में ईंख, आदी, मूली, कच्ची हल्दी, अरवी, सुथनी, बोड़ी, गागल, नीम्बू,पान, सुपारी,लौंग,इलायची आदि औषधियां तथा केला, नारियल, सिंघाड़ा एवं अन्य ऋतुफल आदि का प्रयोग अर्घ्य देने में किया जाता है। इस व्रत में आटे और गुड़ से युक्त घी में ठेकुआ विशेष रूप से बनाने का विधान है।
ठेकुआ पर लकड़ी के साँचे से भगवान सूर्य के रथ के चक्र को अंकित किया जाता है। छठ पूजा में लाल चंदन,पुष्प,धूप,दीप आदि का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। सायंकालीन अर्घ्य देने के पश्चात् घर पर एवं प्रातःकालीन अर्घ्य के पहले छठ घाट पर कोसिया भरने की भी परंपरा है। प्राचार्य श्री पाण्डेय ने बताया कि यह व्रत बड़े नियम तथा निष्ठा से किया जाता है। इसमें स्वच्छता का भी विशेष ध्यान दिया जाता है। इस व्रत का प्रसाद माँगकर खाने का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से समस्त मनोकामनाओं की प्राप्ति सम्भव हो जाता है। छठ का व्रत अन्य सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ साथ पुत्र कामना के लिए भी किया जाता है।