मोतिहारी/ राजन द्विवेदी। नरसिंह बाबा मंदिर परिसर में आयोजित नौ दिवसीय रामचरितमानस जगदेव श्रीराम कथा के सातवें दिन श्रीहनुमान जी महाराज के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में उनको समर्पित भजन से हुआ।
उसके बाद चित्रकूट उत्तर प्रदेश से पधारे सुविज्ञ सुविख्यात मानस रत्ने कथावाचक पंडित राम गोपाल तिवारी जी ने कथा का विधिवत प्रारंभ करते हुए बताया कि परमात्मा को देखने के दो तरीके हो सकते हैं। प्रथम सगुण रूप जिसे हम खुली आंखों से देख सकते हैं इसी ही रूप कहा जाता है। दूसरा यह कि हम आंखों को बंद करके अपने हृदय में उनका चिंतन करें उन्हें अनुभूत करें इसे स्वरूप दर्शन कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि राम के रूप से राम के स्वरूप तक पहुंचने का उपक्रम ही आध्यात्मिक यात्रा कहीं जाती है। धनुष यज्ञ में श्री राम के द्वारा शिव के धनुष को तोड़ने के बाद परशुराम लक्ष्मण में हुए संवाद प्रभु राम के इसी रूप दर्शन के कारण उत्पन्न हुआ था। महाराज जी ने बताया कि जब हम सिर्फ रुप या देह को जानते हैं तो कुल, जाति, देश, वर्ण सभी का वितंडा उत्पन्न हो जाता है। ध्यान देने योग्य बात है की भगवती सती और परशुराम दोनों ने प्रथम दृष्टया भगवान राम के रूप को देखा फलस्वरूप उन दोनों को संशय उत्पन्न हुआ, लेकिन कालांतर में जब उन दोनों को स्वरूप का चिंतन हुआ तो सारा संशय समाप्त हो गया।
पंडित जी ने बताया कि हम भी अपनी आध्यात्मिक यात्रा में यदि आंखें खोले ढूंढेंगे तो देही मिलेगा, वैदेही नहीं । क्योंकि देही की दृष्टि से देही को ही देखा जा सकता है वैदेही को नहीं। बताया कि श्री हनुमान जी की उत्पत्ति का हेतु श्री सीताराम विवाह के समय ही निर्मित हो गया था।
श्रीराम कथा का मंंच संचालन प्रोफेसर रामनिरंजन पांडेय ने की। उपस्थित हजारों श्रद्धालु भक्तों के साथ मानस सत्संग समिति के सभी पदाधिकारी तत्परता से व्यवस्था में जुटे रहे ।