अंबेडकर जयंती पर विशेष : डॉ. अंबेडकर औद्योगिक क्रांति के पक्षधर थे, लेकिन उन्होंने कृषि को समाज का रीढ़ माना था

नवादा

नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर की जयंती पूरे भारतवर्ष में मनायी जाती है। अम्बेडकर जी को सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन को पुरे भारत में केन्द्र सरकार ने आधिकारिक अवकाश के रुप में घोषित किया है। जाति व्यवस्था को समाप्त करने और भारत में सभी को एक समान नागरिकता का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने विश्व के सबसे अच्छे संविधान भारत के लिए तैयार किया, जिसमें हर मौलिक अधिकार और कानून लिखा। आइए उनसे जुड़ी कुछ बातों को चर्चा करते हैं।

बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर देश में औद्योगिक क्रांति लाने का वकालत किया था, लेकिन उन्होंने कृषि को देश और समाज के विकास का रीढ़ माना था । औद्योगिक क्रांति पर ज़ोर देने के साथ-साथ डॉ. अंबेडकर का यह भी कहना था कि कृषि को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि कृषि से ही देश की बढ़ती आबादी को भोजन और उद्योगों को कच्चा माल मिलता है। जब देश का तेज़ी से विकास होगा तब कृषि वह नींव होगी, जिस पर आधुनिक भारत की इमारत खड़ी की जाएगी। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अंबेडकर ने कृषि क्षेत्र के पुनर्गठन के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने की वकालत की।

अंबेडकर कृषि योग्य भूमि के राष्ट्रीयकरण के प्रमुख पैरोकर थे। डॉ. अंबेडकर राज्य को ये दायित्व सौंपते है, कि वह लोगों के आर्थिक जीवन को इस प्रकार योजनाबद्ध करे कि उससे उत्पादकता का सर्वोच्च बिंदु हासिल हो जाए और निजी उद्योग के लिए एक भी मांग बंद न हो तथा संपदा के समान वितरण के लिए भी उपबंध किए जाएं। नियोजित ढंग से कृषि के क्षेत्र में राजकीय स्वामित्व प्रस्तावित है, जहां सामूहिक तरीक़े से खेती-बाड़ी की जाए तथा उद्योगों के क्षेत्र में राजकीय समाजवाद रूपांतरित रूप भी प्रस्तावित है। इसमें कृषि एवं उद्योग के लिए आवश्यक पूंजी सुलभ कराने की व्यवस्था राज्य के कंधों पर स्पष्ट रूप से डाली गई है।

डॉ. अंबेडकर द्वारा किए गए शोध आज के समय के लिए भी उपयोगी है।वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था की सभी सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, पिछड़ापन, असमानता (व्यक्तिगत एवं क्षेत्रीय), विदेशी मुद्राओं के मुकावले भारतीय मुद्रा (रुपए) का अवमूल्यन आदि-आदि से सम्बंधित गंभीर विमर्श डॉ. अंबेडकर के आर्थिक शोधों में देखा जा सकता है। डॉ. अंबेडकर भारतीय अर्थव्यवस्था को एक न्यायसंगत अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करना चाहते थे, जिसमें समानता हो, गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई ख़त्म हो, लोगों का आर्थिक शोषण न हो तथा सामाजिक न्याय हो। सामान्यत: ऐसा लग सकता है कि डॉ. अंबेडकर ने यदि केवल अर्थशास्त्र को ही अपना कैरियर बनाया होता तो संभवत: वे अपने समय के दुनिया के दस प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों में से एक होते।

लेकिन डॉ. अंबेडकर का योगदान किसी भी अर्थशास्त्री से कहीं ज्यादा है। डॉ. अंबेडकर ने अर्थशास्त्र के सिद्धांतों और शोधों का भारतीय समाज के संदर्भ में व्यावहारिक उपयोग किया। शोध का जब तक अनुप्रयोग (एप्लीकेशन) न हो तब तक उसकी सामाजिक उपयोगिता संदिग्ध है। भारतीय समाज व्यवस्था को आमूल बदलकर डॉ. अंबेडकर ने अर्थशास्त्र के उद्देश्यों को वास्तविक अर्थ में साकार किया। उनका यह अविस्मरणीय योगदान उनकी सशक्त सामाजिक-आर्थिक संवेदना और सामाजिक-आर्थिक गहन वैचारिकी का परिणाम है।