कानपुर, भूपेंद्र सिंह। उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन में भले ही पंजीकृत चार विकेट निर्माणकर्ताओं की सूची है लेकिन उनमें से शायद एक को भी सही तौर से विकेट निर्माण की प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं है। शून्य के बराबर जानकारी रखने और विकेट बनाने वालों पर संघ हर साल लाखों रुपए खर्च करता है। फिर भी वह पिच बनाने की कला में अभी तक कुछ भी नहीं सीख पाए हैं। फिर चाहे वह बात कानपुर के अंतराष्ट्रीय ग्रीनपार्क स्टेडियम की पिच की हो लखनऊ के इकाना स्टेडियम की हो मेरठ में भामाशाह क्रिकेट मैदान की फिर उनका अपना एक कमला क्लब मैदान।
किसी भी मैदान के खराब और असमतल विकेट पर बीते कई सालों से चर्चा और उस पर टीका टिप्पणी ना हुई हो ऐसा क्रिकेट के भूतकाल और वर्तमान में नहीं देखा गया है। यूपीसीए हर साल बीसीसीआई की ओर से आयोजित होने वाली पिच एंड ग्राउंडसमैन कमेटी के सेमिनार में भाग लेने के लिए अपने चारों विकेट निर्माणकर्ताओं को भेजता है। जिसमें लगभग लाखों रुपए का खर्च आता है सेमिनार में शिरकत करने के बाद भी प्रदेश संघ के चारों विकेट निर्माण करने वालों को पिच बनाने का तनिक भी तरीका नही आ पाया। जिसके चलते क्रिकेट जगत में पिच को लेकर कई बार अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद में शिकायत भी दर्ज करवायी जा चुकी है।
उत्तर प्रदेश संघ के विकेट निर्माण करने वालों की सूची में ग्रीन पार्क के शिवकुमार कमला क्लब के भूपेंद्र सिंह इकाना स्टेडियम के सुरेंद्र कुमार एवं मेरठ भामाशाह के सुरेंद्र चौहान शामिल है। बताते चलें कि इस बनाने की कला सीखने के लिए साल 2005 से प्रक्रिया शुरू हुई देश में शामिल होने के लिए प्रदेश से समय-समय पर इन्हीं नामों में से हर एक को विकेट बनाने वाली कला को सीखने का मौका दिया गया जिसमें से कई बार फेल भी होने के बाद उनको विकेट निर्माण करने के लिए संघ प्रेरित करता रहा। खराब पिच पर मैच करवाने का सिलसिला साल 2008 में भारत-अफ्रीका टेस्ट के दौरान शुरु हुआ था जो कि 3 दिनों के भीतर ही निपट गया था और उस मैच के बाद आईसीसी में पिच के साथ छेडछाड की शिकायत भी दर्ज करवायी गयी थी हालांकि यूपीसीए के निवर्तमान पदाधिकारी ने आईसीसी से माफी मांग कर मामला रफा–दफा करवा दिया था।
इसके बाद अगले साल ही श्रीलंका के ऑफ स्पिनर मुथैया मुरलीधरन ने अपनी टीम के हार जाने के बाद कप्तान कुमार संगाकारा के साथ संयुक्त रूप से आईसीसी में पिच खराब होने के बावजूद मैच आयोजित करवाने का आरोप लगाया था। पिच का विवाद वहीं नही थमा इसके बाद साल 2010 में घरेलू मैचों की रणजी ट्राफी स्पर्धा में यूपी और बंगाल के मैच दो दिन में ही समाप्त होते ही बंगाल के कप्तान सौरभ गांगुली ने बीसीसीआई से तो शिकायत की ही थी पिच क्यूरेटर पर भी जकर बरसे थे। इसके बाद कमला क्लब में ही टीम गुजरात के साथ हुए मैच में पिच की शिकायत बोर्ड से की गयी थी।
यही नही साल 2016 में लखनऊ के इकाना स्टेडियम में दिलीप ट्राफी मैच के दौरान भी सेन्ट्रल जोन के कप्तान सुरेश रैना ने वहां की पिच के निर्माण को लेकर कडी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। बीते दो साल पूर्व मेरठ के भामाशाह मैदान में भी रणजी के मैच में पिच को लेकर खासी चिक-चिक मची थी। इससे भी सबक ने लेते हुए यूपीसीए इन्हीे नाम के लोगों से पिच निर्माण का कार्य बखूबी लेता आ रहा है। 2009 के रणजी ट्रॉफी मैच के दौरान ग्रीन पार्क से शुरू हुआ जो कमला क्लब ,इकाना स्टेडियम और मेरठ के भामाशाह तक घूम कर लौट आया लेकिन खराब विकेट के प्रदर्शन का सिलसिला अभी तक निरंतर जारी है। यूपीसीए के एक पदाधिकारी ने बताया कि बीते कई सालों से संघ के मैदानों की पिचों को लेकर क्रिकेट जगत में हो हल्ला् मचा हुआ है। संघ की ओर से हर साल इन लोगों पर लाखों का खर्च किया जा रहा है लेकिन नतीजा शून्य ही आ रहा है इसके लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता प्रतीत हो रही है।