स्टेट डेस्क/पटना : जाति गणना को लेकर पटना हाईकोर्ट में मंगलवार को दूसरे दिन भी सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन व जस्टिस पार्थसारथी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं में एक के वकील अभिनव श्रीवास्तव की की दलीलें सुनीं। बुधवार को फिर सुनवाई होगी।
उन्होंने कहा कि सरकार सर्वे के नाम पर जाति पूछी रही है जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है। निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। सरकार के इस कदम से उस अधिकार का हनन हो रहा है। सरकार यदि जाति के आधार पर कोई सुविधा किसी वर्ग को देना चाह रही है तो उसके लिए पहले कई तरह के प्रावधान हैं। सवाल उठता है कि सरकार किस उद्देश्य से जाति पूछ रही है। मालूम हो कि जाति गणना रोकने के लिए कोर्ट के समक्ष सात लोकहित याचिकाएं है। जिसकी सुनवाई पटना हाईकोर्ट में चल रही है। ये याचिकाएं पहले सुप्रीम कोर्ट में डाली गयी थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाकर्ताओं को पटना हाईकोर्ट जाने को कहा था। हाईकोर्ट को इस मामले में अंतरिम निर्णय लेने का निर्देश भी दिया था। हाईकोर्ट ने 3 और 4 मई को इसकी सुनवाई की। अंतिम दिन जाति गणना पर रोकने का अंतरिम आदेश जारी किया। जुटाये गये डेटा को सुरक्षित रखने और सार्वजनिक अथवा साझा न करने को भी कहा। अगली सुनवाई 3 जुलाई तय कर दी। राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी। वहां सरकार की ओर से कहा गया कि हाईकोर्ट का आदेश अंतरिम नहीं बल्कि अंतिम आदेश जैसा है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट सरकार की बात सुने। लेकिन कोर्ट ने सरकार की बात नहीं मानी और हाईकोर्ट जाने को कह दिया।
हाईकोर्ट में 3 जुलाई को याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वरीय वकील अपराजिता सिंह और पटना हाईकोर्ट के सीनियर वकील दीनू कुमार ने बहस की थी। अपराजिता ने कोर्ट को कहा कि सरकार बिना कानून बनाये जाति जनगणना कराना चाह रही है। जानकारी नहीं देने वालों पर कार्रवाई का प्रावधान भी बनाया गया है। लेकिन महाधिवक्ता पीके शाही ने इसे गलत बताया । उन्होंने कहा कि नोटिफिकेशन में ऐसा कुछ भी नहीं है। जस्टिस विनोदचंद्रन ने अपराजिता से पूछा कि आपके पास नोटिफिकेशन की कापी है तो उनका जवाब था कि सरकार के शपथ पत्र में लिखा है कि जानकारी न देने पर कार्रवाई होगी।