दस दिवसीय गणपति उत्सव के 8वें दिन राष्ट्र कवि दिनकर, रामदयालु बाबू और बेनीपुरी के योगदान पर परिसंवाद का हुआ आयोजन

मुजफ्फरपुर

मुजफ्फरपुर /ब्रह्मानन्द ठाकुर लोकमान्य तिलक द्वारा शुरू किये गये गणपति-उत्सव के अवसर पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली द्वारा रामदयालु सिंह कॉलेज में आयोजित स्वराज्य-पर्व के आठवें दिन आज स्वाधीनता आंदोलन में रामदयालु सिंह और रामवृक्ष बेनीपुरी के योगदान पर क्रमशः अलग-अलग महत्वपूर्ण परिसंवाद आयोजित किये गये।

परिसंवाद के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए रामदयालु सिंह कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. विकास नारायण उपाध्याय ने कहा कि रामदयालु बाबू सरीखे लोग आज भारत में नगण्य हैं। वे हमारे धरोहर पुरुष हैं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करते ही वे हमारे सामने प्रत्यक्ष खड़े हो जाते हैं। रामदयालु बाबू की ईमानदारी और त्याग से प्रभावित होकर ही महंत जी ने रामदयालु सिंह कॉलेज के लिये अपनी 51 एकड़ ज़मीन दे दी।

डॉ उपाध्याय ने बताया कि पहले महाविद्यालय का रूप ऐसा नहीं था। आज जो शास्त्री भवन कहलाता है, वह एक पूजास्थली थी। उसमें हवन-पूजन होता था। छोटे से भवन में महाविद्यालय प्रारंभ हुआ था। रामदयालु बाबू जब जिला परिषद के अध्यक्ष थे, शहर में साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों में तेज़ी आ गयी थी। इसी बुनियाद के बल पर इस मिट्टी से एक से बढ़ कर एक विद्वान और राजनेता निकले।

जब उनका कार्यकाल समाप्त हुआ, तब जनश्रुति है कि परिषद की एक कलम उनकी जेब में रह गयी थी। जब उन्हें मालूम हुआ तो वे उसे वापस लौटाने परिषद आये। ऐसा ऊंचा आचरण था उनका, आज ऐसा उदाहरण शायद ही मिले।

डॉ उपाध्याय ने बताया कि रामदयालु बाबू बिहार विधानसभा के पहले अध्यक्ष थे। विधानसभा के संचालन का उनका तरीका अतुलनीय था। जब मुख्यमंत्री बनने का अवसर आया तो उन्होंने बाबू श्रीकृष्ण सिंह का नाम प्रस्तावित किया। अपने लिये उन्होंने देशसेवा का काम चुना था। वे गांधीजी को विशेष प्रिय थे।

गांधीजी ने ही स्त्रीशिक्षा के लिये रामदयालु बाबू को महाविद्यालय खोलने की प्रेरणा दी थी। महंत जी के सहयोग से रामदयालु बाबू ने गांधीजी की प्रेरणा को मूर्त रूप दिया। आज केवल यह महाविद्यालय ही नहीं, बल्कि मुजफ्फरपुर का रेलवे स्टेशन और एक इलाका भी रामदयालु बाबू के नाम पर है। राजनीति में स्वच्छता और शुचिता की अनुपस्थिति के इस दौर में रामदयालु बाबू को याद करने की सार्थकता तब होगी, जब हम सार्वजनिक जीवन में उनके ऊंचे आदर्शों को स्थान दें।

गांधी साहित्य के जाने-माने अध्येता और गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली के पूर्व सचिव श्री सुरेन्द्र कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि स्वाधीनता आंदोलन और स्त्री शिक्षा के विकास में ऐतिहासिक योगदान के कारण रामदयालु बाबू हमारे महापुरुषों में अग्रणी स्थान रखते हैं। रामदयालु बाबू एक कुशल संगठनकर्ता थे।

1917 में जब चंपारण सत्याग्रह में गांधीजी को न्योता देने शुक्ल जी गये और गांधीजी बिहार आये, तो चंपारण न जाकर बिहार को समझने के लिये पहले वे रामदयालु बाबू के पास मुजफ्फरपुर आये, और तीन दिनों तक उनके साथ रहे थे। इससे रामदयालु बाबू की हस्ती का कुछ पता चलता है। आज लोग अपने जीतेजी अपनी मूर्तियां स्थापित करवा लेते हैं।

लेकिन रामदयालु बाबू ने जीवनकाल में महाविद्यालय का नामकरण अपने नाम पर नहीं करने दिया। उनके देहांत के बाद ही यह संभव हो सका। ऐसा था उनका आदर्श। जिन लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना के लिये रामदयालु बाबू जैसे हमारे महापुरुषों ने जीवन भर त्याग किया था, आज उन लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थाओं को बचाने के लिये गांधीजी के दिखाये गये सत्याग्रह के रास्ते पर चलते हुए एक बार फिर आंदोलन छेड़ने की आवश्यकता महसूस होती है।

साहित्य में रामवृक्ष बेनीपुरी का योगदान विषय पर केन्द्रित दूसरी परिचर्चा को संबोधित करते हुए रामवृक्ष बेनीपुरी जी के नाती डॉ राजीव रंजन दास ने बेनीपुरी जी के जीवन और व्यक्तित्व के कई अल्पज्ञात तथ्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बेनीपुरी जी के बारे में कुछ बताने वाले लोग आज मुजफ्फरपुर में भी कम ही मिलेंगे। लोग एक साहित्यकार के रूप में ही बेनीपुरी जी के नाम से परिचित होंगे।

जबकि बेनीपुरी जी, जिनके माता-पिता का देहांत उनके बचपन में ही हो गया था, अपनी शादी के तुरंत बाद स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। उनके ससुर जी निलहे आंदोलन में जेल जाने वाले सबसे पहले व्यक्ति थे, जिनका मुकदमा पंडित मोतीलाल नेहरू जी ने लड़ा था।

बेनीपुरी जी गांधी जी से प्रभावित थे और धीरे-धीरे नेहरू जी के समाजवाद के साथ जयप्रकाश नारायण और बेनीपुरी जी जैसे लोग जुड़े। जब बम्बई में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई, तो इससे जुड़े लोगों ने गांधीजी जी की विचारधारा के साथ-साथ कुछ अन्य विचारों को मिला कर काम करना शुरू किया। लेकिन बेनीपुरी जी सहित वे सभी नेता अहिंसा के प्रति समर्पित रहे।

डॉ राजीव रंजन दास ने बेनीपुरी जी की चर्चा करते हुए बताया कि जब वे पटना जिला कांग्रेस के अध्यक्ष थे, तब भी उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। वे स्वयं को मूलतः एक संगठनकर्ता के रूप में देखते थे। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान जेलयात्राएं कीं। अपने ही देश में अपनी ही सरकार में मिल मजदूरों के आंदोलन का समर्थन करने के कारण बेनीपुरी जी को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया था।

बाद में जयप्रकाश नारायण जी के रौद्र रूप धारण करने के बाद सरकार को झुकना पड़ा और बेनीपुरी जी ससम्मान रिहा किये गये। 1942 के करो या मरो आंदोलन से पहले भी बेनीपुरी जी जेल में डाल दिये गये थे। छूटने के बाद उन्होंने आंदोलन को जगह-जगह एकजुट किया और लोहिया, जयप्रकाश नारायण आदि के साथ मिलकर नेपाल में क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षित करना शुरू किया।

वहीं अपना रेडियो स्टेशन भी शुरू कर दिया गया। बाद में उन्हें नेपाल से गिरफ्तार कर बैलगाड़ी पर हनुमाननगर जेल तक लाया गया। बाबू सूरज नारायण सिंह ने हनुमाननगर जेल तोड़ कर उन्हें निकाला और रात भर में वे सभी भारतीय सीमा में प्रवेश कर गये। यह भी बेनीपुरी जी के राजनीतिक जीवन का एक पहलू था कि गांधीवादी समाजवादी होते हुए भी वे अहिंसा के पुजारी नहीं थे। उन्होंने जेल से मुक्त होने के लिये अंग्रेजों से कभी माफी नहीं मांगी।

डॉ राजीव ने कहा कि लेखक के रूप में बेनीपुरी जी का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उनकी लेखनी से हमें स्वाधीनता आंदोलन के वास्तविक स्वरूप की यथातथ्य जानकारी मिलती है। 42 के आंदोलन, हजारीबाग के जेल तोड़ो आंदोलन या बिहार के किसान आंदोलन का आंखों देखा लिखित इतिहास हमें बेनीपुरी जी के साहित्य से ही प्राप्त होता है। कारावास के दौरान ही बेनीपुरी जी ने अधिकांश साहित्यिक कृतियां लिखीं। उन्होंने जो देखा, जो भोगा उसे ही अपनी लेखनी का विषय बनाया।

वरिष्ठ कवि संजय पंकज ने स्वाधीनता आंदोलन में बेनीपुरी जी के योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी जी स्वाधीनता आंदोलन के योजनाकारों में एक थे। आज उनके नाम से श्री हटा कर रामवृक्ष बेनीपुरी कर दिया जाता है, जो नहीं होना चाहिये। बेनीपुरी जी किसानों और मज़दूरों को भगवान मानते थे। उन्होंने बागमती विश्विद्यालय शुरू किया, लेकिन पक्षाघात का शिकार होने के चलते यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी।

कवि संजय पंकज ने कहा कि अपनी लेखनी के दम पर बेनीपुरी जी हमेशा जीवित रहेंगे। सभी विधाओं में श्रेष्ठ लेखन करने वाले बेनीपुरी जी को रेखाचित्र लेखन का जादूगर माना जाता है। जयप्रकाश नारायण को लोकनायक की संज्ञा देने वाले भी बेनीपुरी जी ही थे। बेनीपुरी जी का कृतित्व और व्यक्तित्व देखें तो वे सामाजिक सौहार्द्र और स्त्रियों के पक्ष में सदैव खड़े दिखाई पड़ते हैं। आदिवासी जीवन के संघर्षों और उल्लासों को भी बेनीपुरी जी ने अपनी लेखनी का विषय बनाया। बेनीपुर जैसे छोटे गांव में जन्म लेने वाले विराट व्यक्तित्व बेनीपुरी जी ने इतिहास रचा, और बुलन्दियों पर पहुंचे। दिनकर जी ने एक बार कहा था कि दिनकर को दिनकर श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी ने बनाया। वे न होते तो दिनकर न होते। बेनीपुरी जी एक निर्भीक लेखक, विचारक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और संगठनकर्ता के रूप में सदा हमारे लिये प्रेरणापुंज बने रहेंगे। आज के परिसंवाद के दोनों सत्रों का संचालन शिक्षाविद् अखिलेश चन्द्र राय ने किया।