पटना : हिंसा के दौर में शांति की अकेली आवाज थे गांधी और वे ऐसे असहज प्रतीक थे, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता!

पटना

*कलाकारों की नजर में गांधी : शांतिनिकेतन का परिप्रेक्ष्य…

स्टेट डेस्क/पटना : आज जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना में गांधी जयंती के मौके ‘‘गांधी, कला और कलाकार’’ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्रात कला इतिहासकार और समीक्षक आर. शिव कुमार ने कहा कि टैगोर के साथ गांधी की गहरी दोस्ती ने उन्हें शांतिनिकेतन और इसके कलाकारों के भी करीब लाया था। उन्होंने एक दूसरे को प्रभावित भी किया।

कला संबंधी गांधी के विचारों को नैतिकता और सामाजिक सार्थकता ने निर्धारित किया। उनका दृढ़ विश्वास था कि एकमात्र मन की आंतरिक सुंदरता ही मायने रखती है। दूसरी ओर, टैगोर सौंदर्यशास्त्र को सामाजिक कल्याण के अभिन्न अंग के रूप में देखते थे और उनका यह मानना था कि सुंदरता समुदाय की अंतरात्मा को आकार देती है।

नंदलाल बोस टैगोर और गांधी, दोनों के दृष्टिकोणों से प्रभावित थे और इन दोनों महापुरूषों ने उन्हें जिम्मेदारियां सौंपीं। इनके नेतृत्व में शांतिनिकेतन के कलाकारों ने इन दो स्पष्ट विपरीत दृष्टिकोणों के बीच कड़ी स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि आज की चर्चा में हम इस पर गौर करेंगे कि नंदलाल ने गांधी द्वारा सौंपी गई विभिन्न परियोजनाओं पर काम करते हुए, खासकर लखनऊ, फैजपुर और हरिपुरा के कांग्रेस सम्मेलनों में लगाई गई प्रदर्शनियों में ऐसा कैसे किया।

हालांकि गांधी का जोर भारी-भरकम खर्च किए बिना स्थानीय सामग्रियों के सहारे साथ काम करने पर था, नंदलाल ने शांतिनिकेतन के अनुभव का लाभ उठाते हुए यह दिखाया कि अमीरों के संरक्षण के बिना भी सुंदर चीजें गढ़ी जा सकती हैं और कला एक साथ गांव के किसान और शहर के कला पारखियों – दोनों के दिलों को छू सकती है। आर. शिव कुमार ने कहा कि साल 1969 में गांधी जन्म शताब्दी दूसरा अवसर था जब के.जी. सुब्रमण्यन और ए. रामचंद्रन ने शांतिनिकेतन में आधुनिक भारत में गांधी और उनके कला बोध को उजागर किया।

सुब्रमण्यन ने तीन स्वतंत्र कलाकृतियों के जरिए भारत के प्रति गांधी की दृष्टि को औपचारिक अभिव्यक्ति दी। उनके अनुसार इस दृष्टि के तीन अवयव थे – मानव सहयोग, गांव की समृद्धि और धार्मिक सद्भावना। दूसरी ओर, रामचंद्रन ने गांधी को केंद्रीय विषय बनाया, जो हिंसा के दौर में शांति की अकेली आवाज थे और ऐसे असहज प्रतीक बन गए थे, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।

गांधी विभिन्न निमित्तों को बढ़ावा देने के लिए अपरिहार्य थे, लेकिन ऐसे व्यक्ति भी थे जिनकी आत्मा को स्वार्थवश बार-बार नष्ट किया जाता था। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कला समीक्षक विनय कुमार ने की और संचालन संस्कृतिकर्मी विनोद कुमार ने किया । संस्थान के निदेशक डॉ. नरेंद्र पाठक ने अतिथियों का स्वागत किया गया। विनय कुमार ने संस्थान के निदेशक डॉ. नरेन्द्र पाठक को खुद से बनाई गई महात्मा गांधी की पेंटिंग भेंट की।

पुनश्च, पटना और रजा फाउंडेशन, दिल्ली का यह संयुक्त आयोजन जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना के सहयोग से किया गया। संस्थान के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में पटना के कला प्रेमियों, प्रबुद्ध लोगों ने शिरकत की।