स्टेट डेस्क/पटना: पटना शहर के गरीब-गुरबों व सफाई कर्मचारियों के लोकप्रिय भाकपा-माले नेता 75 वर्षीय धीर सिंह वाल्मीकि का आज बेघरों का घर, सैदपुर स्थित उनके आवास पर सुबह साढ़े दस बजे निधन हो गया. उनके निधन पर भाकपा-माले बिहार राज्य कमिटी ने गहरी शोक संवेदना प्रकट की है.
भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, राज्य सचिव कुणाल, उनके साथ लंबे समय तक काम करने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता केडी यादव सहित अन्य पार्टी नेताओं ने उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि दी है और उनके परिजनों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट की है. राज्य सचिव कुणाल और पटना शहर के कई नेता उनकी अंतिम यात्रा में भी शामिल हुए.
भाकपा-माले ने अपने शोक संदेश में कहा है कि का. वाल्मीकि का निधन हमारे लिए एक अपूरणीय क्षति है. उनका परिवार भाकपा-माले और कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रति समर्पित था. भूमिगत दौर में उनका घर भाकपा-माले नेताओं का शेल्टर हुआ करता था. पार्टी के पूर्व महासचिव का. विनोद मिश्र और नेपाल के लोकप्रिय कम्युनिस्ट नेता मदन भंडारी के बीच कई दौर की बातचीत उन्हीं के घर पर संपन्न हुई थी.
मूलतः उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रहने वाले का. धीर सिंह वाल्मीकि अपने पिता के साथ बचपन में ही पटना आ गये थे. उनके पिता पटना नगर निगम में कर्मचारी थे. का. वाल्मीकि और उनकी पत्नी का. शांति देवी भी नगर निगम में सफाई कर्मचारी की नौकरी करने लगे. सीपीएम से जुड़कर उन्होंने सफाई कर्मचारियों के संगठन निर्माण की शुरूआत की. 1979 में उनका जुड़ाव भाकपा-माले से हुआ और तब से लेकर जीवन के अंतिम क्षणों तक वे पार्टी से जुड़े रहे.
शहरी गरीबों-सफाई कर्मचारियों को संगठित करने के साथ-साथ अपराध की कई घटनाओं पर का. वाल्मीकि ने आंदोलनों के नेतृत्व की शुरूआत की. 1980 में मुसल्लहपुर हाट के लोकदल के वार्ड काउंसिलर शिवनंदन चंद्रवंशी की हत्या के बाद हुए आंदोलन में उन्होंने उल्लेखनीय भागीदारी निभाई. 1980 में ही भूमि सेना द्वारा अंजाम दिए गए पिपरा कांड के खिलाफ हुए आंदोलन के भी भागीदार बने.
बिहार राज्य जनवादी देशभक्त मोर्चा के तहत वे पटना नगर निगम सफाई मजदूर यूनियन के अध्यक्ष और राष्ट्र नव मिर्नाण संगठन के बिहार के सचिव बने. उनकी पत्नी शांति देवी भी पटना कामगार महिला संगठन की अध्यक्ष बनीं. आइपीएफ के गठन होने पर वे उसकी राष्ट्रीय परिषद के सचिव चुने गए और आइपीएफ के नेतृत्व में लड़ी गई कई ऐतिहासिक लड़ाइयों के गवाह बने.
1982 में प्रेस बिल के खिलाफ आंदोलन, 83 में हार्डिंग पार्क में बुलडोजर के जरिए गरीबों की झोपड़ियों को उजाड़ देने व एक बच्चे की हत्या के खिलाफ हुए आंदोलन, 85 में शहरी गरीबों के ऐतिहासिक आंदोलन, 88 में 59 एमेंड्मेंट्स के खिलाफ हुए आंदोलन सहित अन्य आंदोलनों में उन्होंने बढ़चढ़कर भागीदारी निभाई. इन आंदोलनों के दौरान वे 3 बार गिरफ्तार हुए और कई महीने जेल में रहे. का. वाल्मीकि का जीवन संघर्ष हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है. ऐसे कामरेड का अचानक हमसे बिछड़ जाना बेहद दुखद है.