मोतिहारी / नासिर खान। मुस्लिम समाज के लिए रमजान-उल-मुबारक का पवित्र महीना माना जाता है। रहमतों व बरकतों से भरपूर इस महीने में जहां बड़ों ने रोजा रखकर शाम को इफ्तारी की तो वहीं नन्हे-मुन्ने बच्चे भी पीछे नहीं रहें। नन्हे-मुन्ने बच्चों ने भी तेज धूप व भीषण गर्मी में रोजा रखकर अल्लाह की इबादत में मशगूल रहे और पांचों वक्त के नमाज भी अदा किए।
बताते चलें कि रमजान का पवित्र महीना रहमतों व बरकतों का महीना है। रोजा हर मुसलमान मर्द, औरत, आकील व बालिग पर फर्ज है। इस लिए इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे रखते है तथा ज्यादा से ज्यादा इबादत करने में मशगूल रहते हैं। अल्लाह की इबादत करने में बड़े तो बड़े नन्हे-मुन्ने बच्चे भी पीछे नहीं रहे। बच्चों में भी गजब का उत्साह देखा गया।
बच्चों ने भी रोजा रखकर अल्लाह की इबादत में मशगूल रहते है मोतिहारी के खोदा नगर के रहने वाले नासिर खान की 7 वर्षीय पुत्री नायरा हुसैन खान ने रमजान-उल-मुबारक का दूसरा अशरा के पहले दिन और रमजान के दूसरे जुम्मा को पहला रोजा रखा। रमजान का पाक महीना हमें गरीबों की मदद करने का मौका देता है।
बरकतों वाले इस महीने में इबादत की जाती है। इबादत से ही अल्लाह की रहमतें बरसती है, तो जिन्दगी में सुकून मिलता है। असल में सुकून का नाम ही जन्नत है। जो लोग अल्लाह के बताए रास्ते पर चलते है, औरों के लिए भी मिसाल बनते हैं। रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखने से सेहत को भी कई फायदे होते है ।
यही करण है कि लोग मानसिक और शारिरिक रूप से सेहतमंद रहने के लिए रोजा या व्रत करते है रोजेदारो के लिए खुदा की सारी मख्लुकात दुआएं करती है। यहां तक कि दरिया की मछलियां भी रोजेदार की संहतों सलामती के लिए दुआ करती है। इस तरह से रमजान के 30 दिनों के रोजे को तीन भागों में बांटा गया है. पहला रोजा रहमत का, दूसरा रोजा मगफिरत यानी माफी का और तीसरा रोजा जहन्नुम या दोजख से आजादी का होता है।