डुमरांव: कभी गंगा जमुनी संस्कृति के सदभाव का तस्वीर हनुमान की शोभा यात्रा में झलकती थी… शोभा यात्रा में सर्व धर्म समभाव की भावना से शरीक होते है लोग.. करीब नौ दशक पहले पहलवानों द्वारा हनुमान की शोभा यात्रा निकाले जाने की परम्परा शुरू की गई… नगर के चारो कोने पर मौजूद तालाब के निकट हनुमान मंदिर की मौजूदगी के बीच अखाड़ा मे पहलवानी…

बक्सर

बक्सर/ बीपी। यह कटु सत्य है .डुमरांव की हवा में गंगा जमुनी संस्कृति घुली हुई है। यहां के लोग अपनी पुरानी संस्कृति को जीवंत रखने के प्रति आज भी सजग रहते है। यहां गंगा जमुनी संस्कृति के कई मिशाल जीवंत है। गंगा जमुनी संस्कृति को आत्मसात करने वाले भारत रत्न उस्ताद विस्मिल्ला खां की जन्म स्थली डुमरांव में श्रीराम नवमी पर्व पर निकाले जाने वाले वीर हनुमान की झांकी के दौरान सर्व धर्म समभाव के सदभाव की तस्वीर झलकती है। सूबे के दरभंगा शहर के बाद डुमरांव नगर के हरेक चारो कोने पर तालाब मौजूद है।

तालाब के निकट मौजूद अखाड़ा के पास अवस्थित भगवान हनुमान की मंदिर अनुपम छटा विखेरते नजर आती है। यहीं से शुरू हो जाती है भगवान हनुमान के पूजा व अर्चना की परंपरा। शारीरिक शौष्ठव के शौकीन नागरिक प्रत्येक अखाड़े पर प्रायः भगवान हनुमान की पूजा अर्चना किया करते थे। डुमरांव में भगवान हनुमान की पूजा अर्चना के साथ निकाले जाने वाली शोभा यात्रा के परंपरा की शुरूआत करीब 9 दशक पूर्व बंसत पंचमी के दिन नगर के प्रसिद्ध छठिया पोखरा के पूरब दिशा में अवस्थित मंदिर में पूजा अर्चना के बाद भगवान हनुमान की शोभा यात्रा निकाली जाती थी।

उन दिनों पहलवान श्रीकृष्ण हलुवाई, सूरज माली, लोक नाथ यादव, शिवकुमार यादव, गोपाल जी हलुवाई, बटेश्वर हलुवाई, पोतन पहलवान एवं भदुका तिवारी आदि (सभी दिवंगत) के सामूहिक नेतृत्व में वीर हनुमान की शोभा यात्रा निकाली जाती थी। शोभा यात्रा के दौरान शारीरिक शौष्ठव के शौकीन पहलवान विभिन्न कला कौशल में डंड प्रहार, गदका प्रहार, तलवार बाजी एवं बनैठी का खुला प्रदर्शन किया करते थे। इसी प्रकार नगर के पश्चिम-दक्षिण दिशा में जरासंध भवन के पास अवस्थित अखाड़ा के पहलवानों में यथा विश्वनाथ पहलवान, देवी पहलवान, भूसा पहलवान, पारस गदहेड़ा, रामकृपाल, पूर्व शिक्षक लक्ष्मण सिंह यादव एवं ललन यादव(सभी दिवंगत) आदि द्वारा बंसत पंचमी के दिन भगवान हनुमान के मंदिर में पूजा अर्चना के बाद शोभा यात्रा मंें शामिल हो जाते थे।

निमेज टोला स्थित हनुमान मंदिर में दिवंगत डा.पी.दयाल, रामेश्वर नाथ तिवारी के नेतृत्व में पूजा अर्चना के बाद श्रद्धालु शोभा यात्रा में शामिल हो जाते थे। ठठेरी बाजार स्थित हनुमान मंदिर में साधु कसेरा, जयराम कसेरा, भूषण मिश्रा एवं सत्यनारायण जायसवाल(सभी दिवंगत) आदि के नेतृत्व में पूजा अर्चना होती थी। मच्हरहटटा गली स्थित अखाड़े पर स्व बटेश्वर गुप्ता, सत्यप्रकाश, भगेलू यादव, गोपाल जी तिवारी, एवं दीनानाथ जायसवाल (सभी दिवंगत) आदि के नेतृत्व में हनुमान की पूजा अर्चना के बाद तमाम पहलवान व सामान्य श्रद्धालु मुख्य शोभा यात्रा में शामिल हो जाते थे.

डुमरांव नगर के वरिष्ठ नागरिक छठिया पोखरा निवासी रघुनाथ मिश्रा, स्टेशन रोड निवासी सच्चिदानंद भगत, निमेज टोला निवासी दशरथ प्रसाद विद्यार्थी, टीचर ट्रेनिंग स्कूल रोड निवासी रामचंद्र्र्र सिंह यादव एवं चौक रोड निवासी सत्यनारायण प्रसाद भगवान हनुमान की शोभा यात्रा निकाले जाने की परंपरा के बारे में बताते है कि नगर में पहले करीब 9 दशक पहले प्रसिद्ध छठिया पोखरा स्थित मंदिर में भगवान हनुमान की पूजा अर्चना किए जाने के बाद शोभा यात्रा निकाली जाती थी। शोभा यात्रा में सर्व धर्म समभाव के साथ सदभाव की झलकती थी।

समाज सेवी दशरथ प्रसाद विद्यार्थी बताते है कि शोभा यात्रा के दौरान हरेक चौक व चौमुहाने पर विभिन्न कलाओं में डंड प्रहार, गदका प्रहार, तलवार बाजी एवं बनैठी कला कौशल का खुला प्रदर्शन खिलाडी किया करते थे। शोभा यात्रा के दौरान गगां जमुनी संस्कृति कई मुस्लिम पहलवान अपनी कला कौशल का प्रदर्शन करने को भाग लिया करते थे। उन दिनों बजते नगाड़े की थाप पर स्थानीय नगर के नामचीन पहलवान महबूब पहलवान, कल्लू मियां एवं गफार खां आदि भी शोभा यात्रा में शरीक होकर अपने शारीरिक शौष्ठव सहित विभिन्न कला कौशल का प्रदर्शन किया करते थे। मुस्लिम बिरादरी के कलाकारों को आमंत्रित किया जाता था।

उनके सिर पर पगड़ी बांध कर उन्हें सम्मानित किया जाता था। बाद में कालातंर में समय ने करवट ली और स्थानीय नागरिकों ने वर्ष 1983 में वीर हनुमान की निकलने वाली परंपरागत शोभा यात्रा झांकी के समय को परिवर्तित कर डाला। नगर के वरिष्ठ नागरिक सत्यनारायण प्रसाद , सच्चिदानंद भगत एवं चुनमुन वर्मा बताते है कि बसंत पंचमी की जगह पर नए सिरे से प्रत्येक साल श्रीराम नवमी पर्व के अवसर पर वीर हनुमान की शोभा यात्रा निकाले जाने की परंपरा शुरू हो गई। कई बदलाव के साथ अब तक जारी है। नगर के मौजूद अखाड़े लुप्त सा हो गए। अब अखड़ा की जगह वर्तमान पिढ़ी के युवक बंद कमरा वाले जीम में जाना पसंद करते है।