बिहारशरीफ/अविनाश पांडेय: चंद दिनों की बात है। बड़े ही गुमान से नेता जी एक बड़े पॉलिटिकल विंग का दामन थामे थे। दामन थामने के बाद नेताजी के वेशभूषा में जबरदस्त बदलाव आया था। जिले में अलख ज्योति जलाने के नाम पर रथ यात्रा की शुरुआत की। हजारों लीटर तेल आध्यात्म के नाम पर फूंक डालें। पूरा भरोसा था कि इस बार उनकी चांदी ही चांदी है। उनकी दाल पूरी तरह गलने वाली है।
मृदुभाषी को अपनी राजनीतिक पूंजी बनाने की इनकी सकारात्मक सोच स्टॉक मार्केट की तरह पूरी तरह धराशाही हो गया। आजकल नेताजी का कहीं अता-पता नहीं चल रहा है लोकतंत्र के इस महापर्व के अवसर पर भी पार्टी के मंच पर उनका दर्शन दुर्लभ हो गया है। नॉमिनेशन के वक्त भी नेताजी कहीं नहीं दिखे।
आयोजित कार्यक्रम के दौरान भी नेताजी पर किसी की नजर नहीं पड़ी। लगता है उन्हें बुलाया नहीं गया या फिर वह रूठ कर कहीं किसी वातानुकूलित कमरे में आराम कर रहे हैं। उनके चेले चमचे भी आजकल लापता हैं। ऐसे में यह कहना वाजिद होगा कि- तेरी गठरी में लग गया चोर, मुसाफिर जाग जरा..
थोड़ा अतीत की ओर चलते हैं। नेताजी के पार्टी में आने के बाद यह कयास लगाए जाने लगा था कि अब चवन्नी पलटने वाली है। राजनीतिक जानकार भी इस तर्क पर अपनी हामी भरते हैं। जानकारों का कहना है कि अगर इस लोकसभा चुनाव में दो बड़ी पार्टियों एक साथ नहीं आतीं तो नेताजी का भाग्य भी उदय हो जाता। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। खबर है कि नेताजी आजकल दिल्ली में प्रवास कर रहे हैं। खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। मन ही मन अपनी बुद्धि को कोस रहे हैं। परिवार वाले खर्चे का हिसाब मांग रहे है।