अपने पैतृक नगर बिहार प्रांत के डुमरांव में याद किए गए शहनाई के शंहशाह….अनुमंडल प्रशासन द्वारा उस्ताद बिस्मिल्ला खां की पुण्य तिथि समारोह पूर्वक मनाई गई…

बक्सर

बक्सर/बिफोर प्रिंट। डुमरांव अनुमंडल कार्यालय के सभागार में बुधवार को प्रशासन द्वारा भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां की पुण्य तिथि समारोह पूर्वक मनाई गई। इस मौके पर एसडीओ राकेश कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि उस्ता ने साधना के बूते शहनाई के सुर को एक नई मुकाम देने का काम किया।

उन्होनें कहा कि उस्ताद गंगा जमुनी संस्कृति को आजीवन आत्मसात करने काम किया।उन्होनें कहा कि उस्ताद की जन्म स्थली डुमरांव में काम करते हुए उन्हें गर्व महसूस होता है। डीएसपी अफाक अख्तर अंसारी ने कहा कि उस्ताद की जीवन काफी संर्घषमयी रहा।

उन्होनें कहा कि उस्ताद ने शहनाई को फर्स से अर्स तक पहुंचाकर देश का नाम पूरे विश्व में गौरवान्वित करने का काम किया है।डीएसपी ने कहा कि शहनाई के मीठे स्वर लहरियों के कान तक सुनाई पड़ते ही भारत रत्न उस्ताद की याद आ जाती है।

समारोह को अन्य वक्ताओं में कार्यपालक दंडाधिकारी एजाजुदीन अहमद, अधिवक्ता संघ के सचिव पृथ्वीनाथ शर्मा, अनुमंडल आपूर्ति पदाधिकारी विजय कुमार तिवारी, अधिवक्ता अरबिंद कुमार ठाकुर, सत्येन्द्र कुंवर, प्रधान सहायक राजीव रंजन चैबे एवं सहायक अमर कुमार सिन्हा, ब्रजेन्द्र कुमार सिंह एवं अमरेन्द्र कुमार आदि ने संबोधित किया।

इसके पूर्व समारोह में उपस्थित गणमान्य द्वारा भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां के तैल्य चित्र पर फूल माला चढ़ाया और उन्हें याद किया।

भारत रत्न उस्ताद के पैतृक नगर डुमरांव में उपेक्षित-
भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां का जन्म डुमरांव नगर के बंधन पटवा रोड के भीरूंग रावत की गली में विगत 21 मार्च, 1916 में हुआ था। उनके पिता का नाम पैगम्बर बख्श उर्फ बचई मियां था। उनके बचपन का नाम कमरूदीन था। वे बाल्य काल में पेशे से शहनाई के फनकार पिता पैगम्बर बख्श उर्फ बचई मियां के साथ डुमरांव राज द्वारा निर्मित बांके बिहारी मंदिर में आरती के समय शहनाई बजाने का रियाज किया करते थे।

बाद में उनके मामा अली बख्श उन्हें अपने साथ ननिहाल बाराणसी लेते चले गए। वहां मामा के सानिध्य में उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने गंगा नदी के तट पर शहनाई की सुर साधना शुरू कर दी। आगे चलकर उस्ताद ने शहनाई की मीठी स्वर लहरियों के बूते देश व प्रांत सहित जन्म स्थली डुमरांव का नाम पूरे विश्व में गौरवान्वित करने का काम किया। उस्ताद के इस मुकाम को हासिल करने पीछे यहां के नागरिक बांके बिहारी की असीम कृपा मानते है।

उनका देहावसान विगत 21 अगस्त, वर्ष 2006 को हो गई। पर विडंबना है कि उस्ताद के पैतृक नगर डुमरांव मंें उनकी याद को सजोने व संवारने की दिशा में शासन व प्रशासन अब तक असफल है। स्थानीय नागरिक संगीत प्रेमी दशरथ प्रसाद विद्यार्थी, प्रदीप शरण श्रीवास्तव, प्रियरंजन राय, श्रद्धानंद तिवारी एवं पूर्व पार्षद धीरज कुमार ने प्रतिक्रिया स्वरूप कहा कि शासन व प्रशासन द्वारा डुमरांव में उस्ताद की स्मृति को सजोने व संवारने की दिशा में अब तक महज ताना बाना बुना जाता रहा है। उस्ताद की याद में संगीत विश्वविद्यालय एवं प्रेक्षागृह के निर्माण को लेकर यहां के नागरिक कई सालो से बांट जोह रहे है।