‘फिरकी’ पर नीतीश कुमार दिखा रहे हैं राजद को ‘घुड़की’, फिर भी नीतीश पर नहीं जम पा रहा भाजपा का भरोसा!

पटना

नीतीश ने खुद बनायी थी धूर मोदी विरोधी वाली अपनी छवि,अब किस वजह से देते रहते हैं सफाई

स्टेट डेस्क/पटना: कौन लोग हैं जो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की फिरकी ले रहे हैं! राजनीतिक गलियारे में इस पर खूब चर्चा हो रही है! पूछा जा रहा है कि कौन है जो नीतीश की फिरकी ले रहा है! लेकिन यह जानना उतना जरूरी नहीं है जितना यह समझना जरूरी है कि किसी की फिरकी पर नीतीश ‘घुड़की’ क्यों दिखा रहे हैं!

पटना में स्वास्थ्य विभाग के एक कार्यक्रम में भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के साथ मंच साझा कर रहे नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ जाने को लेकर चल रही चर्चा पर सफाई दी,’हमसे गलती हुई जो दो-दो बार उनके साथ चले गये। अब इधर-उधर नहीं करना है।’ सार्वजनिक मंच से नीतीश को यह सफाई क्यों देनी पड़ी? क्या उन्होंने अपनी मर्जी से या अपनी पार्टी के ‘ग्रुप ऑफ फोर’ की सलाह पर अथवा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के दबाव पर सफाई दी।

बताया जा रहा है कि नीतीश को भाजपा नेतृत्व की हिदायत पर सफाई देनी पड़ी। सवाल उठता है कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि नीतीश को ‘मोदी भक्ति’ साबित करनी पड़ गयी! इसे नीतीश संग तेजस्वी की बैठक और फिर नीतीश का लालू के घर जाने को लेकर गढ़ी गयी खबर का असर कहें या नीतीश को घुटनों पर लाने की भाजपाई चाल समझें! पहली नजर में तो यह भाजपाई चाल ही दिख रहा है।

क्योंकि तेजस्वी संग नीतीश की बैठक दो सूचना आयुक्तों के नाम तय करने को लेकर हुई थी,यही सच है। नेता प्रतिपक्ष के तौर पर तेजस्वी उस बैठक का अनिवार्य हिस्सा थे। रही बात नीतीश का लालू से मिलने जाने को लेकर वायरल वीडियो की तो जब नीतीश लालू से मिलने गये ही नहीं तो उनको सफाई क्यों देनी पड़ी या उनसे सफाई क्यों दिलाई गयी? जिस वीडियो को वायरल किया गया था ,वह 5 सितंबर, 2022 का है। तब लालू का हाल-चाल जानने नीतीश उनके घर गये थे।

उस पुरानी मुलाकात के वायरल वीडियो की सच्चाई तत्काल सामने आ गयी थी। तब क्या चूक नीतीश के सलाहकारों या मीडिया मैनेजरों ने की जो उनको बेवजह सफाई देनी पड़ गयी? इस खेल को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलें। संसद के पिछले सत्र में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक, ब्रॉडकास्ट विधेयक सरकार को वापस लेने पड़े।

केंद्र सरकार की अपर लेबल ब्यूरोक्रैसी में लैटरल एंट्री के जरिए नियुक्ति की प्रक्रिया रोकनी पड़ी। एससी-एसटी आरक्षण में उप-वर्गीकरण और क्रीमी लेयर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सफाई देनी पड़ी। इसके जरिए एक धारणा बनने लगी कि नरेंद्र मोदी विपक्ष ही नहीं बल्कि अपने सहयोगी दलों के आगे लगातार झुक रहे हैं।

गाहे-बगाहे इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के साथ -साथ एलजेपी-रामविलास के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की प्रमुखता से चर्चा होने लगी। संदेश यह जाने लगा कि ये तीनों नेता मोदी की बांह मरोड़ रहे हैं! उनको झुका रहे हैं।

नीतीश और चिराग अलग-अलग अवसरों पर राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना का मुद्दा सतह पर ले आ रहे हैं। जाति जनगणना का मुद्दा तो मोदी के लिए निजी दुख का कारण-सा बना हुआ है। ऐसे में मोदी के दबदबे को मिल रही चुनौती को दबाने के लिए जरूरी था कि चिराग और नीतीश को उनकी लक्ष्मण रेखा दिखाई जाये! चिराग के खिलाफ कभी उनकी ही पार्टी विधायक प्रत्याशी रहे चुके एक भाजपाई ने शिकायत दर्ज करा दी।

जिसमें कहा गया है कि दिल्ली में रेप के एक केस में सह आरोपित चिराग ने चुनावी हलफनामे में इस केस का जिक्र नहीं किया है। खगड़िया में चिराग के पैतृक गांव सहरबन्नी की 80 एकड़ जमीन की जानकारी छिपाई गयी है। चिराग की इंजीनियरिंग की डिग्री भी फर्जी बताई गयी है। अगर ये आरोप साबित हुए तो चिराग की सदस्यता जानी तय है। इन आरोपों की चर्चा पूरे देश की मीडिया में हुई। उसके बाद से चिराग के स्वर धीमे मद्धिम पड़ गये हैं। अमित शाह और जेपी नड्डा के दरबार में उनकी हाजिरी लग चुकी है।

चिराग को साधने के बाद नीतीश कुमार की बारी थी। बस मौके की तलाश थी। वह मौका नीतीश के साथ तेजस्वी की मीटिंग के बहाने मिल गया। मीडिया के बड़े हिस्से ने एक सामान्य किंतु अनिवार्य बैठक को राजनीति का मुद्दा बना दिया। इसे नीतीश के राजद से गठजोड़ का संकेत बताया गया। जानकारों का मानना है कि ऐसा यों ही नहीं हुआ बल्कि इसे टेस्ट केस के तौर पर मीडिया का विमर्श बनने दिया गया। यह तो सबको पता है कि ‘मेन स्ट्रीम मीडिया’ का विमर्श न्यूज रूम में नहीं बल्कि भाजपा का आइटी सेल तय करता है! नीतीश संग तेजस्वी मुलाकात की खबर गरमाई हुई थी,इसी बीच नीतीश का लालू को घर जाने का वीडियो आ गया। इस फेक न्यूज ने भी सुर्खियां बटोरी। ऐसे माहौल में नीतीश से ‘मोदी भक्ति’ साबित कराना जरूरी माना गया। नीतीश ने सार्वजनिक मंच से साबित किया कि वे ‘बड़े वाले’ मोदीभक्त हैं! इससे पहले भाजपा के कहने पर नीतीश ने जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी की बलि ली थी। त्यागी जेडीयू की बात जिस तरह से मीडिया के सामने रख रहे थे, उससे भ्रम हो रहा था कि वह 2017 से पहले वाले जेडीयू के प्रवक्ता हैं, जब नीतीश भाजपा को आंख दिखाने की हैसियत रखते थे।

अब जो अहम सवाल है,वह यह है कि क्या नीतीश मोदी से डर कर ‘बंदर घुड़की’ दिखा रहे हैं या इसमें भी पेंच है! पेंच तो है। क्योंकि नीतीश अपनी ही बनायी छवि भंग करने के लिए जाने जाते हैं। राजद और भाजपा के पाले में एक नहीं बल्कि दो-दो बार आ-जा चुके नीतीश अगर बार-बार कहना पड़ रहा है कि हमसे गलती हो गयी,अब कहीं नहीं जायेंगे। इधर-उधर नहीं करेंगे। इसका मतलब यह कत्तई नहीं लगाया जाना चाहिए कि नीतीश अब कहीं नहीं जायेंगे। नीतीश ने 2013 में भाजपा से 17 साल पुराना नाता तोड़ दिया था. तब इसे नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्षता को लेकर प्रतिबद्धता के रूप में देखा गया था। उसी दौर में नीतीश ने ‘संघ मुक्त भारत’ नारा दिया। भाजपा से रिश्ता भंग करने से पहले पटना में अपने आवास पर भाजपा के शीर्ष नेताओं का भोज रद्द कर दिया था। 2010 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार करने से रोक दिया था। कहा था,हमारे पास पहले से एक मोदी (सुशील मोदी) हैं। 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़कर बुरी तरह पराजित हुए नीतीश ने अपनी जगह जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया था। मांझी जब भाजपा से सांठ-गांठ कर के नीतीश की नाव डुबोने लगे तो पिछले दरवाजे लालू की मदद लेकर नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बन गये। 2015 का चुनाव राजद के साथ महागठबंधन बना कर लड़ा। जबरदस्त कामयाबी मिली। सबसे बड़ा दल होकर भी राजद ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया। क्योंकि चुनाव से पहले तय यही हुआ था। दो साल बीतते – बीतते 2017 की जुलाई में नीतीश पलट कर भाजपा के संग हो गये। तब लालू यादव ने नीतीश को ‘पलटूराम’ कहा था। सियासी गलियारे में पलटूराम मुहावरा बन गया। लेकिन पांच साल बाद 2022 में नीतीश फिर लालू के दरवाजे पर दस्तक देने पहुंच गये। पार्टी और सरकार बचाने की गुहार लगाई! तेजस्वी की असहमति को दरकिनार कर लालू मान गये। नीतीश की सरकार और पार्टी बच गयी। लेकिन 2023 का अंत होते-होते नीतीश फिर भाग खड़े हुए। लोकसभा चुनाव में भाजपा को सौ सीटों से नीचे समेटने का ऐलान करने वाले नीतीश मोदी को ‘चार हजार’ सीटें दिलवाने लगे! लेकिन जनता ने मोदी के ‘अबकी बार ,चार सौ पार’ के नारे की हवा निकाल दी। अपनी छाती ठोककर एक अकेला सब पर भारी का दंभ भरने वाले मोदी घुटनों पर आ गये। नीतीश और नायडू की बैसाखी के सहारे सरकार बनी! चुनाव प्रचार के दौरान मोदी के चरणों में झुके दिखे नीतीश, चुनाव के नतीजे आने के बाद भी मोदी चरण छूते नजर आये! इतिहास ने बार बार साबित किया है कि नीतीश अपनी छवि खुद भंग करते रहे हैं। धूर मोदी विरोधी छवि उन्होंने खुद बनायी थी और अब ‘बड़ा वाला मोदीभक्त’ खुद बने हैं। यह बात भी सच है कि लालू या तेजस्वी ने नीतीश को कभी सरकार बनाने या साथ-साथ चुनाव लड़ने का न्योता नहीं दिया था। 2015 और 2022 में नीतीश खुद चल कर लालू के घर गये थे। इसलिए अपनी छवि और अपनी मूर्ति बार बार भंग करने वाले नीतीश चाहे जितनी कसमें खा लें। दुहाई दे लें। लेकिन नीतीश फिर राजद से हाथ नहीं मिलायेंगे,इस बात की गारंटी नीतीश भी नहीं दे सकते हैं। इसी वजह से भाजपा नीतीश को लेकर भ्रम में नहीं हैं। वह छवि भंजक,पक्षद्रोही,वादा पलट नीतीश की घेराबंदी में दिन-रात लगी हुई है।