कोर्ट ने कहा,शराबबंदी की आड़ में चांदी कूट रहे हैं पुलिस, उत्पाद, स्टेट टैक्स और परिवहन विभाग के पदाधिकारी – कर्मचारी !
पदावनति की सजा झेल रहे पुलिस निरीक्षक मुकेश कुमार पासवान की याचिका की सुनवाई करते हुए कहा,निस्संदेह, इस अधिनियम का खामियाजा राज्य के गरीबों को भुगतना पड़ रहा है। पदावनति आदेश किया रद्द
हेमंत कुमार/पटना : बिहार में शराबबंदी कानून पर पटना हाईकोर्ट की बहुत सख्त टिप्पणी आयी है। कोर्ट ने कहा है कि शराबबंदी ने बिहार में शराब और अन्य प्रतिबंधित पदार्थों की तस्करी जैसे अपराध को प्रभावी ढंग से बढ़ावा दिया है। इस कानून की वजह से पुलिस, उत्पाद, स्टेट कमर्शियल टैक्स और परिवहन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी मौज कर रहे हैं।
चांदी कूट रहे हैं! जस्टिस पुर्णेंदु सिंह की सिंगल बेंच की यह टिप्पणी शराबबंदी कानून पर गाल बजाने वाली नीतीश सरकार और सरकार की प्रमुख सहयोगी भारतीय जनता पार्टी की भजन मंडली के लिए करारा तमाचा की तरह देखा जा रहा है।
जस्टिस सिंह की सिंगल बेंच ने पदावनति झेल रहे पुलिस निरीक्षक मुकेश कुमार पासवान की याचिका पर सुनवाई करते कहा, सरकार ने बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 लोगों के जीवन स्तर और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के अपने संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करने के महान उद्देश्य से लागू किया था।
हालांकि, इस कानून ने “कई कारणों से” बिहार को “इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया है! निस्संदेह, इस अधिनियम का खामियाजा राज्य के गरीबों को भुगतना पड़ रहा है।”
जस्टिस सिंह के 24 पृष्ठ के फैसले में यह भी कहा गया है, “शराबबंदी कानून के गंभीर प्रावधान पुलिस के लिए सुविधाजनक उपकरण बन गये हैं, जो अक्सर तस्करों के साथ मिलीभगत करके काम करते हैं। कानून प्रवर्तन से बचने के लिए नई रणनीतियां विकसित हुई हैं, जिससे बिहार में प्रतिबंधित वस्तुओं के परिवहन और वितरण में सुविधा हो रही है।”
जस्टिस सिंह पुलिस पदाधिकारी मुकेश पासवान के खिलाफ जारी पदावनत आदेश को खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा कि राज्य के शराबबंदी कानून ने बिहार में शराब और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी के एक नये अपराध को प्रभावी ढंग से बढ़ावा दिया है।
पुलिस निरीक्षक मुकेश पासवान पटना बाईपास थाने में स्टेशन हाउस ऑफिसर (एस एच ओ ) के रूप में कार्यरत थे। आबकारी अधिकारियों ने मुकेश के थाने से लगभग 500 मीटर की दूरी पर छापेमारी की जिस्म विदेशी शराब पाई गयी। उसके बाद मुकेश को निलंबित कर दिया गया था।
विभागीय जांच के दौरान विश्वसनीय बचाव प्रस्तुत करने और अपनी बेगुनाही का दावा करने के बावजूद, 24 नवंबर, 2020 को राज्य सरकार द्वारा जारी एक सामान्य निर्देश के अनुपालन में पासवान को पदावनत कर दिया गया। यह निर्देश किसी भी पुलिस अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का आदेश देता है, जिसके अधिकार क्षेत्र में शराब बरामद होती है।
हाईकोर्ट ने पाया कि यह सजा पहले से तय थी, जिससे विभागीय कार्यवाही औपचारिकता बनकर रह गई। नतीजतन, कोर्ट ने न केवल सजा के आदेश को रद्द कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई पूरी विभागीय कार्यवाही को भी रद्द कर दिया।
जस्टिस सिंह की बेंच ने 29 अक्टूबर को अपना फैसला सुनाया था जिसे हाइकोर्ट की वेबसाइट पर 13 नवंबर को अपलोड किया गया। उसके बाद अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर छपी। लेकिन कथित मुख्यधारा के अन्य भाषायी अखबारों और न्यूज चैनलों पर यह खबर दिखी ही नहीं।
- शराबबंदी पर कोर्ट ने पहले भी की है तल्ख टिप्पणियां
*फरवरी 2022 * हाइकोर्ट की एकल पीठ ने गंगाराम नामक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को बिहार में शराब तस्करी सिंडिकेट को खत्म करने का निर्देश दिया। यह मामला उन शुरुआती उदाहरणों में से एक है, जिसमें उच्च न्यायालय ने अपना ‘विचारित दृष्टिकोण’ व्यक्त किया कि अवैध शराब का व्यापार संगठित अपराध में तब्दील हो चुका है।
- 12 अक्टूबर, 2022 * एक अन्य एकल पीठ ने नीरज सिंह की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार की कड़ी आलोचना की। हाईकोर्ट ने आपराधिक गतिविधि की नौ श्रेणियों की पहचान की।
7 नवंबर, 2023 एक खंडपीठ ने शराब की कुछ बोतलों की बरामदगी के आधार पर पूरी संपत्ति जब्त करने की प्रथा पर असंतोष व्यक्त किया। पीठ ने जब्ती आदेश को रद्द कर दिया