अनुसंधान क्षेत्र में कुलपति ने की वरिष्ठ वैज्ञानिकों से चर्चा।
कहा – किस्मों के प्राकृतिक गुणों को बरकरार रखते हुए बढ़ायें गुणवत्ता
जोधपुर। राजस्थान की आर्थिकी में इजाफा करने व मारवाड़ के किसानों की आय बढ़ाने के लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर पैदा होने वाली फसलों की किस्मों पर अनुसंधान को बढ़ावा देवें। मारवाड़ की स्थानीय फसलें जीरा, रायड़ा व मथानिया मिर्च राजस्थान की जलवायु के अनुरूप होने के साथ किसानों के लिए पारंपरिक व परिचित फसल है। ऐसे में बाहरी किस्म के बजाय स्थानीय फसल किस्म पर नए वैज्ञानिक अनुसंधान अत्यंत फायदेमंद रहेंगे।
यह बात कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अरुण कुमार ने वरिष्ठ वैज्ञानिकों से विश्वविद्यालय के विभिन्न फसलों के अनुसंधान क्षेत्र में भ्रमण कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने विभिन्न वैज्ञानिक ट्रायल्स का जायजा लेते हुए कहा कि रिसर्च के दौरान कृषि वैज्ञानिक शुरुआती दौर से ही फसल पौध का बारीकी से निरीक्षण करते हुए बिमारियां व अन्य जेनेटिक परिवर्तनों का जायजा लेवे, ताकि किसानों को इन फसलों की खेती में आ रही समस्या को उचित सलाह देकर समय रहते दूर किया जा सके।
किसान की मांग वाली वैरायटी पर हो फोकस
रिसर्च क्षेत्र में तैयार की गई विभिन्न फसलें चना, लहसुन, जीरा, राजगीरा, रायड़ा, चिया, सरसों, प्याज, मिर्च, गेहूं, टमाटर व गोभी की विभिन्न किस्मों के ट्रायल्स का जायजा लेते हुए उन्होंने वैज्ञानिकों को सलाह देते हुए कहा कि जिन किस्मों की किसानों के बीच अधिक मांग है उन किस्मों के प्राकृतिक गुणों को बरकरार रखते हुए उनकी गुणवत्ता को और बढ़ानें के लिए रिसर्च करें।
उन्होंने किसानों को फसल ट्रायल्स का अवलोकन व वैज्ञानिक सलाह देने हेतु किसान मेले, प्रदर्शनी, संगोष्ठी जैसी गतिविधियों का आयोजन अधिक से अधिक करवाने के लिए विश्वविद्यालय के अधिकारियों को निर्देश दिए।
वैज्ञानिक परीक्षण में आ रही विभिन्न समस्याओं पर चर्चा कर तुरंत समाधान के आदेश भी कुलपति ने इस मौके पर दिए। इस दौरान निदेशक अनुसंधान, डॉ एम एम सुंदरिया, डीन व अधिष्ठाता डॉ एस आर कुम्हार, डॉ प्रदीप पगारिया, डॉ चंदन राय, डॉ एस के मूंड सहित विभिन्न फसल परीक्षणों के कृषि वैज्ञानिक मौके पर मौजूद रहे।