’बदलो बिहार विमर्श’ में बदलाव की दिशा पर हुई व्यापक चर्चा

पूरे देश को बिहार से उम्मीद, भविष्य तय करने का वक्त
पटना, डेस्क। पटना के नागरिक समाज द्वारा आयोजित ‘बदलो बिहार विमर्श’ के अंतर्गत ‘गणतंत्र के 75 साल: बिहार में बदलाव की चुनौती’ विषय पर एक व्यापक परिचर्चा हुई, जिसमें शहर के नागरिक समाज की बड़ी भागीदारी रही।

इस परिचर्चा को मुख्य रूप से भाकपा (माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रो. रतनलाल, दिल्ली वि.वि. के पूर्व सहायक प्राध्यापक डॉ. लक्ष्मण यादव, आर्टिकल 19 के पत्रकार नवीन कुमार, प्रो. चिंटू कुमारी, सामाजिक कार्यकर्ता वंदना प्रभा, इंसाफ मंच के अध्यक्ष गोपाल रविदास, प्रो. शमीम आलम आदि ने संबोधित किया।
परिचर्चा का संचालन विधायक व बीपूटा के संरक्षक संदीप सौरभ ने किया, जबकि अध्यक्ष मंडल में कमलेश शर्मा, गालिब, विश्वनाथ चौधरी, पंकज श्वेताभ, मंजू शर्मा आदि शामिल थे।
बिहार में बदलाव की चौतरफा उठ रही मांग: दीपंकर भट्टाचार्य
दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार में बदलाव की मांग पूरे राज्य में जोर पकड़ रही है। यह चर्चा 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद शुरू हुई थी, लेकिन भाजपा इसे अपने हित में हड़पने की कोशिश कर रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्ता बचाने और दिल्ली में कब्जा जमाने के बाद अब भाजपा की निगाहें पूरी तरह बिहार पर हैं। लेकिन बिहार की जनता ठोस और व्यापक आधार पर बदलाव की दिशा में आगे बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि 90 के दशक में भी भाजपा ने बिहार में सत्ता हथियाने की कोशिश की थी, लेकिन जनता ने उसे नाकाम किया। अब जब 20 वर्षों की सरकार के बाद नीतीश कुमार एक थके हुए प्रतीक बन गए हैं, तो भाजपा फिर से बिहार को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है। लेकिन बिहार आगे बढ़ेगा, पीछे नहीं जाएगा।
उन्होंने बढ़ते पुलिस राज का उदाहरण देते हुए मधुबनी (बेनीपट्टी) और मुजफ्फरपुर (कांटी) में पुलिस क्रूरता की घटनाओं को उजागर किया। साथ ही, उन्होंने संविधान और लोकतंत्र पर मंडरा रहे खतरों की ओर ध्यान आकर्षित किया।
दीपंकर ने कहा कि शाहीनबाग आंदोलन ने लोकतंत्र और संविधान पर खतरे को सबसे पहले पहचाना था। 2024 के चुनावों में भी यह मुद्दा प्रमुख था। भाजपा यह सोच रही थी कि वे अंबेडकर और भगत सिंह को अपने अनुसार ढाल लेंगे, लेकिन जब यह संभव नहीं हुआ तो वे बौखला गए। अमित शाह डॉ. अंबेडकर पर आपत्तिजनक बयान देते हैं और मोहन भागवत कहते हैं कि राम मंदिर बनने के बाद ही देश को आज़ादी मिली।
उन्होंने सामाजिक न्याय, आरक्षण और जाति आधारित गणना के मुद्दे उठाते हुए कहा कि बिहार में तमिलनाडु की तर्ज पर 65% आरक्षण लागू होना चाहिए, और जाति गणना को पूरे देश में लागू करना चाहिए। बिहार का आगामी चुनाव सिर्फ राजनीतिक साजिशों के खिलाफ नहीं होगा, बल्कि जनता के असली मुद्दों पर केंद्रित होना चाहिए। 2 मार्च को गांधी मैदान में होने वाला ‘महाजुटान’ इस बदलाव का एक अहम पड़ाव होगा।
नवीन कुमार (आर्टिकल 19) ने कहा कि यह संकट सिर्फ बिहार या भारत का नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का है। यह किसी एक सरकार को हटाने की नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की लड़ाई है। उन्होंने बिहार में शिक्षा, रोजगार और मीडिया की स्थिति पर सवाल उठाए और कहा कि उच्च शिक्षा का निजीकरण वंचितों को शिक्षा से वंचित करने की साजिश है।
डॉ. लक्ष्मण यादव (पूर्व सहायक प्राध्यापक, दिल्ली वि.वि.) ने कहा कि 75 वर्षों में हमने जो हासिल किया, वह अब खतरे में है। यूपी में संविधान की हत्या हो रही है, लेकिन बिहार से पूरे देश को उम्मीद है। यह सामाजिक न्याय और किसान आंदोलन की धरती रही है, इसलिए यह तय करना जरूरी है कि बिहार यूपी की राह पर जाएगा या एक नई राह बनाएगा।
प्रो. रतनलाल (दिल्ली वि.वि.) ने एनडीए में शामिल दलित नेताओं पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि इन नेताओं को दलितों की शिक्षा-रोजगार की बेहतरी से कोई मतलब नहीं है। वे तथाकथित हिंदू राष्ट्र की पालकी ढो रहे हैं। उन्होंने चेताया कि यदि व्यापक एकता नहीं बनी, तो गुलामी का एक नया दौर शुरू होगा।
गोपाल रविदास (माले विधायक) ने अपनी आपबीती साझा करते हुए कहा कि आज भी दलित होने के कारण अपमान सहना पड़ता है। उन्होंने सवाल उठाया कि नीतीश कुमार के 20 वर्षों के राज में विकास की बातें तो हुईं, लेकिन रोजगार कहां है?
प्रो. चिंटू कुमारी ने बिहार में कामकाजी महिलाओं और स्कीम वर्कर्स की बदतर स्थिति पर बात की। वंदना प्रभा (सामाजिक कार्यकर्ता) ने कहा कि सरकार नागरिकों को योजनाओं के महज लाभार्थी तक सीमित करना चाहती है, और महिलाओं को कर्ज के जाल में फंसाया जा रहा है।
प्रो. शमीम आलम ने कहा कि देश की गंगा-जमुनी तहजीब को बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है।
परिचर्चा में व्यापक भागीदारी
परिचर्चा में विश्वविद्यालयों के शिक्षक, बुद्धिजीवी, विभिन्न आंदोलनों के कार्यकर्ता, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए।