पटना, अशोक “अश्क” बिहार की राजनीति में 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले ही गरमागरम बहस शुरू हो गई है। इस बार चर्चा का केंद्र बने हैं राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव, जिनके समर्थक उन्हें भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं। राजद कार्यकर्ताओं ने पोस्टर लगाकर इस मांग को हवा दी, जिससे बिहार की राजनीति में नया भूचाल आ गया है।

सत्ता पक्ष एनडीए ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। राजद कार्यकर्ताओं ने पटना सहित कई जिलों में पोस्टर लगाए हैं, जिनमें लालू यादव को सामाजिक न्याय का मसीहा बताते हुए उन्हें भारत रत्न देने की अपील की गई है। इन पोस्टरों में लालू यादव के राजनीतिक करियर और सामाजिक योगदान को उजागर किया गया है।
सत्ताधारी एनडीए ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया है। बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने राजद पर हमला बोलते हुए कहा, लालू यादव जंगलराज के प्रतीक हैं। उनके कारण बिहार पिछड़ा और भ्रष्टाचार का गढ़ बना। ऐसे व्यक्ति के लिए भारत रत्न मांगना शर्मनाक है।
इसके जवाब में राजद नेता सुधाकर सिंहनने पलटवार करते हुए कहा, लालू यादव को किसी से प्रमाणपत्र लेने की जरूरत नहीं है। उन्होंने पिछड़ों और दलितों को अधिकार दिलाए। वे खुद भारत रत्न हैं।दिलचस्प बात यह है कि लालू यादव पहले ही कांशीराम और राम मनोहर लोहिया को भारत रत्न देने की मांग कर चुके हैं।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के बाद से बिहार की राजनीति में यह मुद्दा और गरमा गया है। तेजस्वी यादव भी इस विवाद में कूदते हुए कहा, जो लोग एक समय कर्पूरी ठाकुर को गाली देते थे, उन्होंने ही उन्हें भारत रत्न दिया। आज जो लोग लालू यादव को गाली दे रहे हैं, वे भी एक दिन यही करेंगे। कुछ वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि यह मांग लालू यादव को नीतीश कुमार के सामने खड़ा करने की रणनीति है।
उनका कहना है कि भाजपा सरकार में अभी तक दिए गए भारत रत्नों पर कोई सवाल नहीं उठा सकता, लेकिन सजायाफ्ता और आर्थिक अपराध में संलिप्त लालू यादव को भारत रत्न देने की मांग तर्कसंगत नहीं लगती। इस मुद्दे ने बिहार की सियासत को गर्मा दिया है। आगामी चुनावों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि लालू यादव का नाम चुनावी चर्चा के केंद्र में रहेगा और यह बहस आने वाले महीनों में और तेज होगी।