डेस्क। कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह के मार्गदर्शन में, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर “कोई पीछे न छूटे” के सिद्धांत पर कार्य कर रहा है, जिसका एक महत्वपूर्ण लक्ष्य बिहार के आदिवासी क्षेत्रों का समावेशी विकास है। इसी दिशा में, बिहार के संथाल और खैरा जनजातीय समुदायों के विकास हेतु “बिहार एग्रीकल्चरल टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन (BATI) हब” की स्थापना की जा रही है।

इस पहल को “बिहार में आदिवासी समुदाय की सतत आजीविका और पोषण सुरक्षा के लिए बिहार एग्रीकल्चरल टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन ‘BATI'(बाती) हब की स्थापना एवं प्रमाणीकरण” परियोजना के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसकी परियोजना अन्वेषक डॉ. प्रीति प्रियदर्शिनी हैं।
बाती हब: एक संक्षिप्त परिचय
जिस प्रकार बाती का उद्देश्य प्रकाश फैलाना होता है, उसी तरह बाती हब का उद्देश्य आदिवासी समुदाय के जीवन में उजाला लाना है। यह हब आदिवासी समुदायों की सतत आजीविका और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है। इसका फोकस पोषण जागरूकता, उत्पादकता वृद्धि और स्थानीय संसाधनों के प्रभावी उपयोग पर है, जिससे आदिवासी परिवारों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
श्रीनगर गांव में प्रशिक्षण और संसाधन वितरण
आज, परियोजना के अंतर्गत बांका जिले के श्रीनगर गांव (बेलहर प्रखंड) में स्थानीय आदिवासी समुदाय के लिए “सब्जियों के महत्त्व एवं गृहवाटिका विकास” पर एक दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया।
इस अवसर पर 60 आदिवासी परिवारों को गृहवाटिका विकसित करने हेतु सब्जी बीज किट प्रदान की गई। साथ ही, 500 सहजन (मोरिंगा) के बीज एवं पौध तैयार करने की तकनीक सिखाई गई, ताकि इनका रोपण कर पोषण और आजीविका दोनों को सशक्त किया जा सके।
बाती हब का उद्देश्य
बाती हब का लक्ष्य आदिवासी समुदायों के सामाजिक, पोषण एवं आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त कृषि तकनीकों का विकास, प्रसार और संवर्धन करना है। यह हब स्थानीय जरूरतों के अनुसार कृषि नवाचारों को बढ़ावा देकर सतत विकास को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्यरत है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर आदिवासी समुदायों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु प्रतिबद्ध है और इस प्रकार की पहल आगे भी जारी रहेगी।