प्रयागराज, आर पांडेय। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में धारा 506 (आपराधिक धमकी) के अन्तर्गत किया गया अपराध संज्ञेय व गैर जमानती है। ऐसे में इस धारा के अन्तर्गत पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल करने पर केस का ट्रायल संज्ञेय अपराध के रूप में ही होगा, न कि बतौर कम्प्लेन्ट केस।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने बांदा के राकेश कुमार शुक्ल की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। मामले के अनुसार पीड़ित ने मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी देकर कहा था कि याची राकेश कुमार शुक्ल ने उस पर फायर किया और जब क्षेत्र के कई लोग आ गये तो जान से मारने की धमकी देता हुआ भाग गया। सीजेएम बांदा के आदेश से मुकदमा दर्ज हुआ।
पुलिस ने विवेचना में फायर करने ( धारा 307 ) को झूठा मानते हुए हटा दिया, परन्तु धारा 504 व 506 भादंसं के अंतर्गत याची के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। याचिका में कहा गया था कि चूंकि चार्जशीट केवल धारा 504, 506 में लगी है और दोनों असंज्ञेय अपराध है, इस कारण यह मामला बतौर कम्प्लेन्ट केस ही चल सकता है।
हाईकोर्ट ने याची के इस दलील को सही नहीं माना और कहा कि यूपी में 31 जुलाई 1989 की अधिसूचना से राज्यपाल ने धारा 506 आईपीसी को संज्ञेय व गैर जमानती घोषित कर दिया है, तो अब यह अपराध यूपी में असंज्ञेय नहीं रहा।