खनन कार्य बंद होने से एशिया का सबसे अच्छा और कीमती सिलिका सैंड का व्यापार खत्म होने के कगार पर, क्षेत्र की जनता बेरोजगार होकर पलायन करने को मजबूर

प्रयागराज

प्रयागराज, नावेद खान। जनपद के यमुनापार के बारा तहसील क्षेत्र का सिलिका सैंड देश मे ही नही पूरे एशिया में सबसे कीमती और अच्छा माना जाता है। लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण सिलिका सैंड का खनन कार्य बन्द हो गया जिसके कारण यहाँ की गरीब जनता बेरोजगार होकर भुखमरी के कगार पर पहुंच गई है। युवा वर्ग पलायन करने को मजबूर हो गए हैं।

आपको बता दे बारा तहसील के शंकरगढ़ विकासखंड का 70% इलाका पहाड़ी और पथरीला होने के कारण यहां वर्षो से सिलिका सैंड,पत्थर, और गिट्टी का कार्य जोरों पर होता था,इस क्षेत्र की 90% आबादी इस खनन कार्य पर निर्भर थी। शंकरगढ़ उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर है जिससे मध्यप्रदेश के रीवा,सतना सीधी और शहडोल जिले से आदिवासी लोग यहां रोजगार की तलाश में कई पीढ़ियों से आकर बस गए और यहां के निवासी भी बन गए। लेकिन लगभग दस वर्ष पूर्व सरकार की गलत नीतियों के कारण यहां के आदिवासियों के साथ साथ और भी बहुत लोग बेरोजगार हो गए। यहां के युवा वर्ग दूसरे प्रदेशों में जाकर मजदूरी करने को मजबूर हो गए है।

2017 से पहले से पहले सिलिका सैंड को मेजर मिनरल (मुख्य खनिज) में आता था लेकिन 2017 के बाद इसे माइनर मिनरल (उपवखनिज) में तब्दील कर दिया गया। जिससे पुराने पट्टे निरस्त कर दिये गए और नए पट्टे नही बन सके। जिससे यहां की जनता बेरोजगार हो गई।

सिलिका सैंड है क्या और किस काम मे आता है

सिलिका सैंड बहुत कीमती खनिज है जो सिर्फ शंकरगढ़ इलाके के पहाड़ों और जमीनों के अंदर से निकलता है ये एशिया का सबसे अच्छा और कीमती खनिज का दर्जा मिला था। ये इसे लोहा बनाने के लिए मिक्स किया जाता है क्योंकि लोहा एक ऐसा खनिज है इसे पिघलाने में बहुत ही मुलायम हो जाता है,जब इस सिलिका सैंड को मिक्स कर दिया जाता है तो लोहा हार्ड हो जाता है। सबसे बड़ी बात पूरे देश में ग्लास (शीशा) भी सिलिका सैंड से बनाया जाता है। टाइल्स बनाते समय चमक लाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। इसी सिलिका सैंड से वाशिंग पाउडर,वासिंग सोप, टेलकम पाउडर और भी कई महत्वपूर्ण चीजों में भी इस्तेमाल किया जाता है।

सिलिका सैंड क्या है और कैसे तैयार किया जाता है

सिलिका सैंड पहाड़ों और जमीनों के अंदर के पत्थरों को फोड़कर बालू बनाया जाता है,उस बालू को वाशिंग प्लांटों में लाकर वाश किया जाता है,फिर धूप में या मशीनों के माध्यम से सुखाकर बड़े बड़े चलनी से चालकर फिर बोरियो में पैकिंग करके देश के बड़े बड़े शहरों में सप्लाई किया जाता है। ये सिलिका सैंड भिलाई,रायपुर छतीसगढ़, इंदौर, गुजरात,पंजाब,हरिद्वार, कोलकाता कानपुर और देश के कई बड़े शहरों की फैक्ट्रियों में सप्लाई किया जाता है। क्षेत्र में सिलिका सैंड कई प्रकार का पाया जाता है जैसे नाला, मोटा दाना और महीन दाना का जिसमे नाला बालू को सबसे कीमती माना जाता है।

सरकार के गलत नीतियों के कारण आज इस कारोबार को ने बड़े उद्योग पतियों और बड़े कारोबारियों के हाथों दे दिया जिससे यहां के गरीब आदिवासी और किसान बेरोजगार हो गए जिससे यहां का व्यापार ठप होने के साथ साथ यहां की जनता पलायन करने को मजबूर हो गई है।

इस व्यापार से यहां का राजघराना भी जुड़ा था

शंकरगढ़ एक स्टेट स्टेट हुआ करता था यहां का राजघराना भी इस व्यापार से जुड़ा था। शंकरगढ़ राजघराने की रानी साहिबा स्व.राजेन्द्र कुमारी बा के नाम से पूरे इलाके की लीज थी,जिससे यहां की गरीब आदिवासी और आम जनता हैंड ब्रोकिंग ( हाथो से ) से खनन करके राजा को रायल्टी देकर अपनी रोजी रोटी चलाता था। लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण कानूनी पेज फंस गया जिससे यहां के वर्तमान राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने सारी लीजों को सरेंडर कर दिया जिसके कारण शंकरगढ़ क्षेत्र की जनता भुखमरी के कगार पर पहुंच गई।

खनन बन्द होने से यहां का बाजारों का हाल बेहाल

खनन कार्य बंद होने बारा तहसील के कई बाजारों ही हालात खराब हो गई ग्राहक बाजारों में नही दिखते। एक समय था बारा तहसील के मुख्य बाज़ारो में शंकरगढ़,शिवराजपुर जसरा,घूरपुर लोहगरा, एवं बारा खास की बाज़ारो से रौनक चली गई। एक समय था हर पन्द्रह दिनों में तेरस होता था जिससे यहां के ठीकेदार अपने मजदूरों का जब पेमेंट करते थे तो बाज़ारों में मेला लग जाता है हर पन्द्रह दिन में सिर्फ शंकरगढ़ बाजार में एक करोड़ से ज्यादा का व्यापार होता था। मजदूरों को पेमेंट मिलने के बाद अपनी गृहस्थी और राशन खरीदने के लिए एक दिन की छुट्टी मिलती थी जिससे बाज़ारो में रौनक बनी रहती थी। लेकिन आज इन बाज़ारो की रौनक चली गई क्योंकि मजदूर यहां से पलायन कर गए।

यहां के दर्जनों छोटे किसानों पर एनजीटी द्वारा मुकदमा दर्ज किया गया

एक बात और बता देना चाहता हूं कि शंकरगढ़ विकासखण्ड क्षेत्र के 70% जमीने पहाड़ी और पथरीली होने के कारण फसल की पैदावार कम होती है,यहां के किसान अपने जीविकोपार्जन के लिए अपनी जमीनों में खनन करके छोटी छोटी चरही बनाकर सिलिका सैंड को वाश (धुलाई) करके बड़े उद्योगपतियों और सप्लायरों को बेचते थे लेकिन एनजीटी द्वारा पानी का दोहन दिखाकर लगभग दो दर्जन किसानों के खिलाफ मुकदमा लिखवा दिया और लम्बा जुर्माना भी लगा दिया गया, जिससे बड़े सप्लायरों और उद्योगपतियों का इस व्यापार में एकछत्र राज हो गया।

बारा क्षेत्र में एक दर्जन के आसपास पट्टेधारक हैं लेकिन शायद ही किसी के पट्टे पर खनन कार्य होता हो,सभी पट्टेधारक अवैध खनन का कच्चा सिलिका सैंड खरीदकर अपने वासिंग प्लांटो पर वाश करके सप्लाई करते हैं। आज भी क्षेत्र के दर्जनों गांवों में अवैध खनन होता है लेकिन प्रशासन मौन बना बैठा रहता है।